पुस्तक समीक्षा

जिंदगी इतनी सस्ती क्यों ? – एलोपैथी के उलझे जाल से सुलझाती किताब


जिंदगी इतनी सस्ती क्यों

 

जिंदगी इतनी सस्ती क्यों ?
एलोपैथी के उलझे जाल से सुलझाती किताब

आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने जितना लाभ पहुंचाया है उतना ही उसने चिकित्सीय उद्देष्यों को नुकसान भी पहुंचाया है। भारतीय संदर्भ में सदियों से चली आ रही आयुर्वेद पद्धति के प्रति तो एलोपैथिक पद्धति ने इतना भ्रम या नकारात्मकता आम जनसमूह में भर दी कि वे आयुर्वेदिक पद्धति को हेय दृष्टि से देखने लगे। जब भी शारीरिक उपचार की बात आती है तो प्रत्येक की पहली प्राथमिकता एलोपैथिक चिकित्सा ही होती है। पर आमजन किस तरह संगठित रूप से एलोपैथिक चिकित्सा के जाल में फंस रहे हैं। ये वे जानते ही नहीं। वर्तमान में एलोपैथिक चिकित्सा के रहस्यों को खोलने और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर पुनः विश्वास जागृत करने का काम करती है पुस्तक जिंदगी इतनी सस्ती क्यों..?

पुस्तक के लेखक डा. अबरार मुल्तानी स्वयं एक आयुर्वेद चिकित्सक हैं। इससे पहले स्वास्थ्य पर बेहद ज्ञानवर्धक पुस्तकें ‘बीमारियां हारेंगी’ और ‘बीमार होना भूल जाइये’ लिख चुके हैं। ‘जिंदगी इतनी सस्ती क्यों?’ का पहला संस्करण 2017 में आया था अब 2020 में इसका द्वितीय संस्करण प्रकाषित हुआ है। यह बताता है कि पुस्तक की पाठकों में मांग है। पाठक भी डा. मुल्तानी द्वारा एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के संबंध में बताये गये भ्रमजाल संबंधी तथ्यों से सहमति व्यक्त करते हैं। कुल 21 अध्यायों में बंटी इस किताब में क्रमवार एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के फैलाये गये जाल को परत-दर-परत खोला गया है। डा. मुल्तानी पुस्तक में उपर्युक्त उदाहरण देते हुये अपनी बात पूरे तथ्यों के साथ रखते जाते हैं।

उन्होंने बताया कि कैसे 1997 तक फास्टिंग ब्लड शुगर 140 एमजी/डी.एल. तक सामान्य थी। पर आगे चलकर इसका स्तर 126 एम.जी./डी.एल. कर दिया गया। इस एक निर्णय से ही 14 प्रतिषत लोग डायबिटिक की श्रेणी में आ गये। यह स्तर आज 110 एम.जी./डी.एल. कर दिया गया है।

1997 में ही सिस्टोरिक हाइपरटेंषन की सीमा 160 एम.एम.एच.जी. से घटाकर 140 एम.एम.एच.जी. और डायस्टोलिक की सीमा 100 एम.एम.एच.जी. से 90 एम.एम.एच.जी. कर दी गई। इससे हाइपरटेंषन के रोगी 35  प्रतिशत तक बढ़ गये। इसी तरह 1998 में ही कोलेस्ट्राल का लेवल 240 से 200 कर दिया गया।
इन सभी का निर्णय उन समितियों द्वारा लिया गया जिनमें ज्यादातर फार्मा कंपनी के प्रतिनिधि थे।

इसी तरह ‘शीतल जहर है एंटासिड्स’, ‘बोटोक्स: जहर एक दवा’, ‘जान लेते जिम और मिलावटी सप्लीमेंट्स’, ‘कमीशन से गिरता डाक्टरों का सम्मान’ जैसे अध्यायों में उन सभी तथ्यों को उद्घटित किया गया है जो एलोपैथिक चिकित्सकों द्वारा भ्रमजाल के रूप में स्थापित हुआ है।

एलोपैथिक चिकित्सक, फार्मा कंपनियां, पैथोलाजी टेस्ट मिलकर किस तरह से आम आदमी को रोगी बनाने और उनसे अनावश्यक खर्चे कराने में लगे हुये हैं। वह सब जानने के लिये सभी एक बार यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिये। साथ ही आयुर्वेद के रूप में कम से कम भारतीय संस्कृति में अनमोल खजाना है जिस पर विश्वास कर और सही मार्गदर्शन में अपनाकर असाध्य रोगों को भी साधा जा सकता है। यह तथ्य भी इस पुस्तक के माध्यम से उद्घटित होते हैं।

भोपाल के मांड्रिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक कुल 204 पेज की है। प्रकाषन सज्जा इसे और भी आकर्षक बनाती है। विषेष रूप से इसमें लिखे गये सारगर्भित अध्यायों को एक ही बार में पाठक द्वारा पढ़ा जा सकता है। जैसा कि इस पुस्तक में एक बयान है ‘‘ डाक्टर के दो कर्तव्य हैं – पहला लोगों को बीमार होने से बचाना और दूसरा बीमार को फिर से स्वस्थ्य करना।’’ आज डाक्टर अपने इसी कर्तव्य को तिलांजलि दे चुके हैं।

पुस्तक – जिंदगी इतनी सस्ती क्यों?
लेखक – डा. अबरार मुल्तानी
प्रकाशक – मांड्रिक प्रकाशन, भोपाल, मप्र
मूल्य – 195/-
पुस्तक लिंक: https://amzn.to/3md1Kpm

समीक्षक एवं सह-संपादक
मनीष श्रीवास्तव।

पढ़िए जिंदगी से संबंधित यह बेहतरीन रचनाएं :-

धन्यवाद।

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *