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Kachhua Aur Khargosh Ki Kahani In Hindi – दोस्तों आप सबने कछुआ और खरगोश (Tortoise And Rabbit) की Famous Motivational Story तो पढ़ी ही होगी। कैसे खरगोश अपने Over Confidence और लापरवाही के कारण एक कछुए से Race में हार जाता है। और एक नियमित चाल से चलते रहने के कारण कछुआ जीत जाता है। पर उसके बाद क्या? क्या खरगोश चुप बैठता है? आगे की कहानी आपको नही पता होगा। यहा आप उसके आगे की कहानी ही पढेंगे, पर कहानी आज के परिपेक्ष्य पर आधारित है। तो आगे पढ़े कहानी – कछुआ और खरगोश- Race Once Again.
कछुआ और खरगोश कहानी – Race Once Again.
जंगल में बहुत चहल पहल थी। जंगल के सभी जानवर एक जगह एकत्रित हो गए थे। सभी आपस में किसी प्रतियोगिता के बारे में बात कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो कोई पर्व मनाया जा रहा हो। तभी स्पीकर से काले कौवे की आवाज आती है –
“आज छोटू खरगोश और मोटू कछुए के बीच जंगल के इतिहास में दूसरी बार फिर एक बार प्रतियोगिता होने वाली है। किंतु यह कोई साधारण दौड़ प्रतियोगिता नहीं अपितु जंगल के रक्षा विभाग में नौकरी प्राप्त करने के लिए है।”
इस प्रतियोगिता के मुख्य अतिथि राजा शेर व हाथी थे। दोनों मैदान के एक किनारे बने मंच पर बैठे थे। सभी दर्शकों का ध्यान मंच की ओर था। दौड़ का समय हो रहा था।
तभी दोनों मैदान में आ गए। मैदान में आते ही सारे दर्शकों का ध्यान दोनों ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया। इन दोनों के पूर्वजों के बीच हुयी दौड़ प्रतियोगिता तो विश्व विख्यात है। जिसमें खरगोश जरा सी लापरवाही के कारन साधारण सी प्रतियोगिता में हार गया था।
अपने पूर्वज द्वारा की गयी गलती को सुधारने का खरगोश के पास यही सही मौका था। खरगोश अपने पूर्वजों की हार का बदला लेने को आतुर था। वहीं कछुए के मुख पर अद्भुत सी मुस्कान थी। इसका कारन किसी को नहीं पता था। दोनों दर्शकों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। दौड़ का समय हो गया था। कौए ने स्पीकर पर मुख्य मेहमान राजा शेर को सिग्नल देने का आग्रह किया। शेर महाशय के सिगनल देने पर दौड़ आरंभ हुई।
यह खरगोश के लिए कोई साधारण प्रतियोगिता नहीं थी उसने इसके लिए महीनों से अभ्यास किया था। दिन रात उसे यही बात सताती रहती की कहीं एक बार फिर से ऐसी कोई गलती ना हो जिस कारण वह आज फिर अपने वंश की बदनामी की वजह बने। वह किसी भी कीमत पर हारना नहीं चाहता था।
वहीं कछुआ बिलकुल शांत था मानो उसे कोई फिक्र ही नहीं। जबसे उसे प्रतियोगिता के बारे में पता चला उसने कोई भी ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दी जिस से यह प्रतीत हो की उसे अपनी जीत में कोई कष्ट अथवा संशय है। कछुआ बिना किसी अभ्यास के ही इस प्रतियोगिता में भाग लेने आ गया था।
दौड़ आरम्भ हुयी खरगोश और कछुए ने दौड़ना प्रारंभ किया। खरगोश जीतने की चाह में बहुत तेज दौड़ा आधे रास्ते में पहुँच कर उसे थकावट महसूस होने लगी। उसके मन में विश्राम करने का विचार आया पर तभी उसे अपने उस पूर्वज की याद आ गयी जो आराम करने के चक्कर में हार गया था। ये बात समझने के बाद उसने ना रुकने का फैसला किया और पहले से भी ज्यादा उत्साह में भागने लगा। वहीं कछुआ बिना किसी परेशानी के अपनी धीमी चाल से चला जा रहा था। मानो प्रतियोगिता में भाग ना लेकर सैर कर रहा हो और कुदरत के अद्भुत नजारों का आनंद ले रहा हो।
कौवा पल-पल की जानकारी दर्शकों को दे रहा था। दौड़ में जिस रोमांच की दर्शक अपेक्षा कर रहे थे वह कहीं भी नहीं दिखा। खरगोश और कछुए की यह दौड़ पूरी तरह से एक तरफ़ा हो चुकी थी। क्योंकि खरगोश इस बार ये मौका किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहता था। आज खरगोश जीत कर जंगल के इतिहास में अपना नाम सुनहरी अक्षरों में लिखवाने वाला था। वह अपने पूर्वजों की इज्जत में चार चाँद लगाने वाला था। सब दर्शक खरगोश को जीतता देख उसका हौंसला बढ़ाने लगे। खरगोश खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था।
कछुआ अभी आधे रास्ते में भी नहीं पंहुचा था और खरगोश जीत की रेखा के पास पहुँच चुका था। सबको इस दौड़ का नतीजा लगभग पता लग गया था। इस सब के बीच खरगोश निश्चित स्थान पर पहुंच गया। अब सब कछुए के पहुँचने का इंतजार करने लगे।
धीमी चाल के कारण कछुए को खरगोश से चार गुना ज्यादा समय लगा। सभी जंगल वासी जान गए थे कि खरगोश ही विजेता है परंतु औपचारिकता के लिए विजेता का नाम घोषित होने का इंतजार करने लगे।
थोड़े ही समय में फैसला आया कि यह एक बहुत ही रोमांचक प्रतिस्पर्धा थी। खरगोश ने बहुत अच्छा प्रयास किया और कछुए ने अपना पूरा समर्पण दिया। अंत में खरगोश ने जीत रेखा पर पहले पहुँच कर कछुए को पीछे छोड़ दिया, पर कछुए ने हिम्मत ना हारते हुए अपनी जीतने की कोशिश जारी रखी। अंततः हमारे मुख्य अतिथि व प्रतिस्पर्धा नियंत्रकों द्वारा किये गए फैसले की घोषणा करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि जंगल के आरक्षण कोटा के लाभ स्वरूप व नियमों के अनुसार कछुए को विजेता घोषित किया जाता है।
अब सारा जंगल दुविधा में था कि आज आरक्षण कोटे के कारन एक हरे हुए प्रतियोगी को जीता हुआ करार दे दिया गया। कहीं कल आरक्षण कोटे के कारण कल शेर की जगह गधे को राजा न घोषित कर दिया जाए। इसी के साथ सब अपने घरों को चल दिए और खरगोश बेचारा अपनी गलतियों से सीख लेने के बावजूद नहीं जीत सका। पर आज इसका कारन जंगल का नियम था।
शिक्षा :- जंगलराज में कुछ भी असंभव नहीं है।
दोस्तों आज के परिपेक्ष्य में लिखी गयी ये कछुआ और खरगोश की कहानी आपको कैसी लगी? हमें जरुर बताये, अगर पसंद आया तो शेयर करने में कंजूसी ना करे।
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