वो भारतीय मूल का व्यक्ति
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आये दिन ही अख़बार वाले या टीवी न्यूज़ चैनल वाले ऐसी ख़बरें पेश करते है। भारतीय मूल के “फलाना राम” ने ये बड़ा काम कर दिया की अब सारी दुनिया में भारत का नाम रोशन हो गया है। भारतवंसी अमुक महिला-पुरुष ने ऐसा काम करके दुनिया में भारत का गर्व बढ़ा दिया। जिसने फला-फला काम किया वो भारतीय मूल का व्यक्ति है। इसके बाद हम भारतवासी सीना तान के फेसबुक में जय हिन्द के नारों के साथ रैलियाँ निकाल आते है।
आज के ज़माने में भारतवासी होते हुए नाम रोशन करना बहुत मुश्किल है। कुछ लोग बहुत कोशिश करते है भारत का नाम रोशन करने की मगर कर नही पाते। जब कोई नाम रोशन करने जाता है तो सरकार, समाज, गली -मोहल्ले के लोग, पडोसी या उनके ही परिवार का कोई सदस्य उसका टांग खींच देता है। कभी-कभी इस चक्कर में पड़ के उनकी जिंदगी जिल्लत भरी हो जाती है। महान गणितज्ञ रामानुजन ने गणित में नाम रोशन करने की कोशिश की थी। भारतवासी होते हुए। लेकिन उसे बहुत गरीबी में दिन बिताने पड़े थे। जब इंग्लैंड गये और भारतवंसी बने तब जाके नाम रोशन हो पाया।
कुछ लोग अपना काम करते रहते है और अचानक भारत का नाम रोशन हो जाता है। लेकिन ये लोग अक्सर भारतीय मूल के विदेशी होते है। मतलब की भारतवंसी। भारतवासी और भारतवंसी में यही फर्क होता है। भारतवासी हम है जो यहाँ टिके हुए है। भारतवंसी वो है जो कहीं और जा के बस गये है। अगर नाम ही रोशन करना है तो ये लोग यही रह के क्यों नही कर देते। इस काम के लिए इतना दूर जाने की क्या जरुरत है? यहाँ किस बात की कमी है भला? अपने ज्ञान और कमाई से दुसरे देश को फ़ायदा देके भला किस प्रकार से भारत का नाम रोशन होता होगा? ज्यादातर देखने में आता है की वो लोग खुद जान बुझ के ऐसा नही करते है। दरअसल हमारी मीडिया जबरदस्ती उनका नाम घसीट के ला देती है।
उदहारण के रूप में एक इंटरनेशनल मीडिया dw ने हमारी मीडिया के बारे में कुछ यूँ लिखा था,
स्रोत: DW हिंदी
एक दिन ऐसे ही एक भारतवंशी को टीवी में बोलते देख रहा था मै। उसे ना ही हिंदी आती थी और ना ही वो भारत के बारे में बोल रहा था। उसे तो ये भी पता नहीं था की उसने भारत का नाम रोशन कर दिया है। ये मीडिया वाले जबरदस्ती नाम घसीट देतें हैं। भारतवंशी और भारतवासी में फर्क होता है। आजकल नाम रोशन करने के लिए आपको भारतवंशी होना जरुरी है। भारतवासी होने पर ज्यादा चांसेस है की आपका नाम भ्रष्टाचार, घोटाला, मूक दर्शक और भेडचाल आदि-आदि में जोड़ा जाये। अगर इनमे भी नही तो फिर किन्ही में नही। देश को आप चाहे खाना दे, पैसा दे या ज्ञान दे मगर इससे देश का गर्व नही बढ़ता।
हम भारतवंसी बड़े ही शर्मीले होते है। हालात ये है की शायद कुछ सालों बाद हमें एक नया देश खरीदना पड़े रहने के लिए। लेकिन यहाँ से कोई भी नाम रोशन नही करता। अगर कोई करना चाहे तो दूसरे उसका टांग खींच देते हैं और सरकार सर में लाठी मार देती है। हमारा इतिहास बहुत ही भव्य था। अब अगर इतना तेजमय इतिहास होके भी उस तेज को बनाये रखने के लिए कोई नाम रोशन ना करे, ये तो लज्जा की बात होगी हमारे लिए। इसीलिए हम और हमारी मीडिया ऐसे मुर्गे ढूंढते रहते है जिसने कोई बड़ा काम किया हो और उसे भारतीयता से हम पोत सके।
आखिर ऐसे भारतवंसी आते कहाँ से है? मेरे ख्याल से कहानी कुछ यूँ हुआ होगा। “एक लड़का है जो बहुत हुनरमंद है। लेकिन उसे वैसा माहोल और शिक्षा नही मिल पता जिससे उसका हुनर उभर सके। जैसे-तैसे हमारी शिक्षा पद्धति का शिकार बनके वो बाहर दुनिया में आता है तब कुछ अलग करना चाहता है। लेकिन सरकार और समाज हर मोड़ में लठ्ठ लेके खड़े रहते है रस्ता रोकने। अंत में वो अपने हुनर को कचरे के डिब्बे में डाल के नौकरी ढूंढता है। लेकिन यहाँ उसके लिए भी भेदभाव होता है। अंत में जब उसे यहाँ की कोई चीज रास नही आती तब वो विदेश जाने का फैसला लेता है। वहाँ जाके कुछ समय बाद जब वो या उसके बेटे-बेटी, पोते-पोती कोई भी किसी काम के कारन प्रसिद्धि पाने लगता है। तब हम ये चिल्लाते है, “देखो, इस भारतीय मूल के व्यक्ति ने हमारे देश का नाम रोशन किया है। आईएम प्राउड तो बी एन इंडियन।”
कभी-कभी मै सोचता हूँ, क्या सच में ये गर्व की बात है? हम यहाँ अपने देश में हुनर की कदर नही करते। उनके हुनर को फलने फूलने का माहोल नही देते। उन्हें देश छोड़ बाहर जाने पर मजबूर करते है। जब वहाँ जाके वो अपना हुनर दिखाता है तब हम उसे भारतीय बताने में गर्व से सीना फुलाते है। क्या ये गर्व की बात है? हमारा देश गरीबी, पिछड़ेपन, अपराध, अत्याचार, और जाने कितने समस्याओ से घिरा हुआ है। जहां जरुरत है ऐसे हुनरो की। वहा हम उन्हें बाहर भेज देते है ताकि अपना ज्ञान से वो लोग दुसरो को हमसे आगे ले जाये। और जब वो ऐसा करे तो हम मूर्खो की तरह ताली बजाये। क्या आपके लिए ये गर्व की बात है?
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