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शिक्षाप्रद बाल कहानी :- सकारात्मक सोच रखने की शिक्षा देती कहानी

by Sandeep Kumar Singh
6 minutes read

जिंदगी में एक सच्चे दोस्त का होना बहुत जरूरी है। एक ऐसा दोस्त जो हमें गलत रास्ते पर जाने से रोके। एक ऐसा दोस्त जो ये चाहे की हम कभी कुछ गलत न करें। लेकिन अगर हम उसकी सही बातों का बुरा मान जाए तो? क्या ये सही है या गलत? ये सब निर्भर करता है हमारी सोच पर। अगर सोच सकारात्मक होगी तो हम सही सोचेंगे और अगर नकारत्मक होगी तो गलत। कैसे? आइये जानते हैं इस शिक्षाप्रद बाल कहानी के जरिये :-

शिक्षाप्रद बाल कहानी

शिक्षाप्रद बाल कहानी

निखिल आज स्कूल से कुछ उदास सा घर लौटा था।

“क्या हुआ बेटा?”

ऐसा पहले कभी नहीं होता था। इसलिए चिंतित होते हुए माँ ने पूछा। तो जवाब में निखिल बोला।

“कुछ नहीं माँ बस आज मूड कुछ ठीक नहीं है।”

“चलो ठीक है मैं खाना निकलती हूँ। तुम तब तक फ्रेश हो जाओ।”

इसके बाद निखिल ने खाना खाया और आराम करने लगा। निखिल अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके दादा जी उसे बहुत प्यार करते थे। अक्सर वो खाली समय में अपने दादा जी के पास ही बैठता था। अगर उसे कोई परेशानी होती तो वो दादा जी के पास जाता और उसके दादा जी उसकी परेशानी को चुटकियों में दूर कर देते।

“क्यों नहीं बताया तुमने कि तुम्हें टीचर ने मारा? अपना होमवर्क क्यों नहीं पूरा किया तुमने?”



अचानक ही निखिल के कमरे से उसकी माँ की आवाजें आने लगी। लहजे से पता चल रहा था कि निखिल की माँ गुस्से में उससे ये सवाल कर रही थीं। तभी निखिल के दादा जी निखिल के कमरे में पहुंचे और पूछा,

“क्या बात है बहू? क्या कर दिया इसने?”

“पिता जी आज ये जब स्कूल से आया तो इसका मुंह उतरा हुआ था। पूछा तो इसने कुछ बताया नहीं। फिर जब मैंने आर्यन के घर फ़ोन किया तो पता चला आज इसे होमवर्क न करने के कारण मार पड़ी।”

निखिल सिर झुकाए हुए खड़ा था। दादा जी ने निखिल से पूछा,

“क्या ये सच है निखिल?”

निखिल कुछ नहीं बोला। उसकी ख़ामोशी इस बात की गवाही दे रही थी कि उस पर जो आरोप लगाया गया है। वो बिलकुल सही है। इसके साथ ही उसे अपने दोस्त आर्यन पर गुस्सा भी आ रहा था। निखिल उसे अपना सच्चा दोस्त मानता था। लेकिन नकारत्मक सोच हो जाने के कारण आज वही दोस्त उसे दुश्मन नजर आ रहा था।

“बहू तुम जाओ मैं इस से बात करता हूँ।”

निखिल की माँ जानती थी कि वो अपने दादा जी की बात आसानी से समझ लेगा। इसलिए बिना कुछ बोले वो कमरे से बाहर चली गयी।

“निखिल, ये क्या सुन रहा हूँ मैं बेटा?”

“दादा जी आज पहली बार ही मैंने होमवर्क नहीं किया था। ऊपर से आर्यन ने मेरी शिकायत लगा दी। आज से वो मेरा दोस्त नहीं है।”

“मैंने भी ऐसा ही कहा था।”

दादा जी की ये बात सुन कर निखिल एक दम दादा जी के चेहरे की तरफ देखने लगा। जैसे उसे वो चीज मिल गयी हो जिसका उसे कब से इंतजार था। इतनी डांट पड़ने के बाद ये शब्द उसके लिए संजीवनी का काम कर गए थे।



“कब दादा जी?”

“जब मैं भी तुम्हारी तरह एक छोटा बच्चा था।”

“आपने भी होमवर्क नहीं किया था?” निखिल की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। जो अभी कुछ देर पहले ही उसके अन्दर जागृत हुयी थी।

“हाँ, होमवर्क भी नहीं किया था और मेरी शिकायत भी नहीं लगी थी। लेकिन मेरे एक दोस्त ने जब मुझे ये बताया की ये गलत है तो मैंने उस से अपनी दोस्ती तोड़ ली।”

“अच्छा! बिलकुल सही किया आपने। फिर क्या हुआ?”

“फिर…..फिर मैंने एक दिन और होमवर्क नहीं किया। इस तरह मैं कभी-कभी होमवर्क नहीं कर के जाया करता था।”

“तो आपकी भी शिकायत की थी आपके दोस्त ने?”

“नहीं…मैं उस से ज्यादा ताकतवर था। तो मैंने उसे डरा दिया था। उसके बाद मैंने उस से कभी बात नहीं की। फिर मैं अक्सर होमवर्क कर के नहीं जाता था।”

“आपके टीचर आपको कुछ नहीं कहते थे?” निखिल अब खुद को उस कहानी में देखता हुआ अपने दादा जी से पूछने लगा।

“कहते थे न, फिर तो पूरी क्लास के सामने मुझे डांटते थे। लेकिन मुझे आदत पड़ चुकी थी…..”

“फिर तो आप खूब मजे करते रहे होंगे।” बीच में टोकते हुए निखिल बोला। अब तक वो अपनी माँ की डांट भी भूल चुका था। उसके दादा जी ने आगे बताना शुरू किया,

“पूरा साल बीत गया और न पढ़ने की वजह से मैं फेल हो गया।”

“तब तो आपको घर से बहुत मार पड़ी होगी?” खुद को पड़ी डांट से अंदाजा लगते हुए निखिल बोल पड़ा।

– मार तो नहीं पड़ी। लेकिन पिता जी ने एक सबक जरूर दिया।

-क्या?

– यही कि मेरी इस असफलता की शुरुआत एक छोटी सी गलती से हुयी होगी। जो नकारत्मक सोच का नतीजा रही होगी। अगर उसी समय मैंने अपनी गलती सुधार कर सकारात्मक सोच और सही रास्ता अपनाया होता तो शायद ये दिन मेरी जिंदगी में कभी न आता। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि मेरे दोस्त ने भी मुझे इस गलत रस्ते पर जाने से रोका था। लेकिन मैंने उसकी बात नहीं सुनी और मैं फेल हो गया।

– मतलब मैं भी एक दिन फेल हो जाऊंगा?

खुद को उस दृश्य में देखते हुए निखिल ने घबराते हुए डर कर पूछा।

“हाँ अगर अब भी तुम समझते हो कि आर्यन ने गलत किया और तुमने सही। बेटा सच्चा दोस्त वही है जो तुम्हें गलत काम करने से रोकता है और तुम्हें सुधरने की कोशिश करता है। अब ये तुम्हारी सोच पर है कि तुम उस बात को सकारात्मक ढंग से लेते हो या नकारात्मक ढंग से।” दादा जी की ये बात सुन कर निखिल को अहसास हो गया था कि उसने गलती की है और उसे गलती मान कर उसे सुधारना चाहिए। इसके बाद वो अपनी माँ के पास गया और उनसे माफ़ी मांगी।

फिर आर्यन को फ़ोन कर उसे सॉरी और थैंक यू कहा। हाँ, वो बात अलग है कि आर्यन को कुछ समझ नहीं आया और इस बार निखिल क्लास में फर्स्ट भी आया। अब निखिल और आर्यन में दोस्ती पहले से भी गहरी हो गयी थी। आर्यन ने अनजाने में ही सही अपनी दोस्ती निभा दी थी।

तो दोस्तों, इस शिक्षाप्रद बाल कहानी से निष्कर्ष तो यही निकलता है कि हमें सकारत्मक सोच रखते हुए अपनी गलती को मान कर उसे समय रहते सुधार लेना चाहिए। नहीं तो, भविष्य में सिवाए पछतावे के हमारे हाथ और कुछ नहीं रह जायेगा।



ऐसा संभव है कि ये कहानी आप में से कई लोगों के साथ घटी हो। कुछ मौके पर संभल गए होंगे। कुछ असफल होकर और कुछ लोगों के पास तो बस पछतावा बचा होगा। आपने क्या सीखा? अपने साथ घटी घटना हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

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धन्यवाद।

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