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हमारे जीवन में हमारी संगति का बहुत प्रभाव होता है। हम जिस संगति में रहते हैं वैसे ही स्वाभाव के बन जाते हैं। इस बात को और अच्छी तरह जानते हैं ” संगति का असर कहानी ” में :-
संगति का असर कहानी
एक गुरु अपने शिष्यों के साथ एक बगीचे में घूम रहे थे । रास्ते में वे अपने शिष्यों को अच्छी संगत में रहने के विषय के बारे में बता रहे थे । लेकिन शिष्य उस बात को समझ ही नहीं पा रहे थे। तभी गुरु जी ने पूरे बगीचे में नजर घुमाई और उन्होंने फूलों से भरा एक गुलाब का पौधा देखा।
उन्होंने पास खड़े शिष्यों में से एक शिष्य से उस गुलाब के पौधे के नीचे से थोड़ी सी मिट्टी लाने को कहा। शिष्य उसी समय गया और गुलाब के पौधे के नीचे से मिट्टी लेकर आया। जैसे ही वह मिट्टी गुरु के हाथ में थमाने को आगे बढ़ा, गुरु जी बोले,
” वत्स ये मिट्टी मैंने अपने लिए नहीं मंगवाई।”
सभी शिष्य गुरु की तरफ देखने लगे। तभी गुरु जी ने फिर से बोलना शुरू किया,
” इस मिट्टी को सूंघ कर देखो।”
गुरु का आदेश मानते हुए शिष्य ने मिट्टी को अपने नाक से लगाया और बोला
“ गुरु जी इसमें से तो गुलाब की बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है।”
तब संतजी बोले
“ बच्चो ! जानते हो इस मिट्टी में इतनी सुन्दर खुशबु क्यों आ रही है ? इस लिए क्योंकि इस मिट्टी पर गुलाब के फूल, टूट-टूटकर गिरते रहते हैं। धीरे-धीरे ये इसी मिट्टी के साथ घुल-मिल जाते हैं। तभी मिट्टी में भी गुलाब की खुशबु आने लगती है।
ऐसा ही हमारे जीवन में होता है जब हम अच्छे लोगों के साथ रहते हैं तो उनकी अच्छी बातें हमारे अन्दर आने लगती हैं। जैसे गुलाब की पंखुड़ियों की पास रहने के कारण इस मिट्टी में से गुलाब की खुशबु आने लगी उसी प्रकार जो व्यक्ति जैसे व्यक्ति के साथ में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं।”
संगति का असर कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपनी संगति अच्छे लोगों के साथ रखनी चाहिए। जिस से हम भी एक अच्छे इन्सान बन सकें।
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यह संगति का असर कहानी हमें भेजी है प्रकाश रंजन मिश्र जी ने जिनका परिचय इस प्रकार है।
नाम :- प्रकाश रंजन मिश्र
पिता :- श्री राज कुमारमिश्र
माता :- श्रीमती मणी देवी
जन्मतिथि :- 05/05/1996
पद-: सहायकप्राध्यापक, वेद-विभाग(अ.), राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर परिसर, जयपुर (राजस्थान)
अध्यायन स्थल-: श्रीसोमनाथसंस्कृतविश्वविद्यालय,वेरावल, (गुजरात)
आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान वेद विद्यालय मोतिहारी (बिहार)
वेद विभूषण वेदाचार्य(M.A), नेट, गुजरात सेट, लब्धस्वर्णपदक, विद्यावारिधि(ph.d) प्रवेश
डिप्लोमा कोर्स :- योग, संस्कृतशिक्षण,मन्दिरव्यवस्थापन,कम्प्युटर एप्लिकेशन।
प्रकाशन :- 7 पुस्तक एवं 15 शोधपत्र,10 कविता
सम्मान :- ज्योतिष रत्न, श्री अर्जुन तिवारी संस्कृत साहित्य पुरस्कार से सम्मानित
स्थायीपता :- ग्राम व पोस्ट – डुमरा, थाना -कोटवा ,जिला- पूर्वी चंपारण ( बिहार )
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धन्यवाद।
1 comment
Bahot achhi kahani..prakash ranjan ji…can i publish your story in my journal…plz send ur mob.num.on [email protected]