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सत्य की कहानी :- डाकू वीरभद्र के जीवन की अवधी लोक कथा

by Sandeep Kumar Singh
7 minutes read

सत्य की कहानी :- सत्य का मार्ग कठिन अवश्य होता है लेकिन यह सदैव ही जीवन को सुखदायी बनाता है। सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं, यह पंक्ति तो आपने कई बार सुनी होगी। आइये आज पढ़ते हैं इसी वाक्य को चरितार्थ करती यह अवधी कथा “सत्य की कहानी ”:-

सत्य की कहानी

सत्य की कहानी

किसी राज्य में वीरभद्र नाम का एक डाकू रहता था। उसका आतंक दूर-दूर तक फैला था। इसका कारन यह था कि वह डाका डालते समय सबको बड़ी क्रूरता से मार देता था। फिर चाहे वो औरत हो, बच्चा हो या बूढ़ा हो। राजा के आदेश पर उसे पकड़ने का कई बार प्रयास किया गया लेकिन हर बार यह प्रयास असफल हुआ। इस से डाकू वीरभद्र का हौसला और भी बढ़ गया।

यह सभी जानते थे की डाकू वीरभद्र एक बहुत ही क्रूर डाकू है मगर इसके साथ ही उसमें इसके विपरीत एक अच्छा गुण भी था। उसके द्वार पर आने वाला कभी खाली हाथ वापस नहीं जाता था। वह दिल खोल कर सबकी सहायता करता था। लोग यह देख हैरान होते थे कि एक ही व्यक्ति में दो विपरीत गुण कैसे हो सकते हैं। एक हत्यारे के हृदय में प्रेम भी होता है क्या?

उन्हीं दिनों एक साधु चारों धाम की यात्रा करते हुए उस राज्य में पहुंचे। रात होने वाली थी तो उन्होंने उसी राज्य में रुकना उचित समझा।

एक घर का दरवाजा खटखटाया तो अन्दर से एक व्यक्ति आया। बात करने पर पता चला कि वह एक ब्राह्मण है। ब्राह्मण को इस बात की बहुत ख़ुशी हुयी कि साधु उनके घर एक रात्रि के लिए रुकना चाहते हैं।

ब्राह्मण अपनी पत्नी के पास गया और साधु के लिए भोजन लाने को कहा। लेकिन जैसे नियति आज उस ब्राह्मण के विरुद्ध थी। पता चला कि घर में बस दो ही रोटी हैं और वो भी बच्चों के लिए रखी थीं।

साधु ने उन पति-पत्नी की बात सुन ली थी। वो बच्चों के हिस्से का भोजन कर पाप के भागी नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने ने उस दंपति से कहा,

“आपके आतिथ्य से मैं संतुष्ट हूँ। परन्तु मैं इन बालकों के हिस्से का भोजन नहीं कर सकता। बच्चे तो प्रभु का रूप होते हैं। ऐसे में अगर प्रभु ही भूखे रह जाएँ तो भक्त का क्या ही भला होगा। आप मुझे यहाँ किसी धनी व्यक्ति का पता बताएं। आज हम उसी के यहाँ रुकेंगे।”

गरीब ब्राह्मण यह सुनते ही हाथ जोड़ संकोच करते हुए बोला,

“महाराज……यहाँ वीरभद्र डाकू ही सबसे धनी व्यक्ति है। आप उसके यहाँ कैसे रुकेंगे। वह बहुत ही खतरनाक डाकू है। बहुत पाप किये हैं उसने। कृपया आप यहीं रुक जाएं।”

साधु ने उस ब्राह्मण की बात सुन कहा,

“तुम चिंता मत करो। आज हम उसी के यहाँ ठहरेंगे। तुम्हारे घर मैं फिर कभी आऊंगा।”

इतना कह कर वह साधु उस ब्राह्मण को आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गए।

साधु वीरभद्र के दरवाजे पर जाकर दरबान से अपने मालिक को बुलाने के लिए बोले। दरबान वीरभद्र के पास उस साधु का सन्देश लेकर पहुंचा। वीरभद्र सोच में पड़ गया था। संत महात्मा उसके पास भी नहीं आते थे। दान-दक्षिणा लेना तो दूर की बात थी।

वीरभद्र जब दरवाजे पर पहुंचा तो साधु बोले,

“बेटा चार धाम की यात्रा कर लौटा हूँ रात हो रही है। इसलिए बस आज रात तुम्हारे घर रुकना चाहता हूँ।”

वीरभद्र उन्हें सम्मान पूर्वक अन्दर ले गया और उनके भोजन की व्यवस्था की। भोजन सामने था लेकिन साधु ने वीरभद्र की ओर देखा और कहा,

“बेटा, मैं किसी के यहाँ बिना दक्षिणा के भोजन नहीं करता।”

डाकू वीरभद्र को लगा कि एक साधु भला क्या मांग सकता है। यह सोचते हुए वह दक्षिणा देने के लिए तैयार हो गया।

साधु ने वीरभद्र से कहा,

“ऐसे नहीं पहले वचन दो। जो मांगू वो दोगे।”

वीरभद्र छाती चौड़ी करते हुए बोला,

“वीर भद्र ने आज तक किसी को अपने घर से असंतुष्ट नहीं जाने दिया। आप निश्चिंत होकर मांगिये जो मांगना है। मैं वचन देता हूँ आपको आप जो कहेंगे मैं वही दूंगा।”

“आज के बाद तुम कभी भी झूठ नहीं बोलोगे। बस यही मेरी दक्षिणा है।”

वीरभद्र मन ही मन मुस्कुरा रहा था कि कितना मूर्ख साधु है। चाहता तो मेरी सारी सम्पति मांग लेता। उसने हँसते हुए साधु की बात मान ली।

सुबह हुयी साधु तो चले गए लेकिन वीरभद्र के जीवन में समस्याओं ने डेरा डाल लिया। सत्य बोलने की वजह से अब वो डाका डालने नहीं जाता था। उसके सरे साथियों ने उसका साथ छोड़ अपना-अपना गिरोह बना लिया था। जमा किया धन भी धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा था। वीरभद्र कंगाली की कगार पर आ खड़ा हुआ था।

कोई रास्ता न सूझता देख एक दिन उसने फिर से डाका डालने का मन बनाया। वह लूट में लाये हुए एक राजा के कपड़े पहन कर निकल पड़ा डाका डालने। और वो गया भी तो कहाँ राजा के महल में।

पहरेदारों ने उसे रोकते हुए पूछा, “कौन हो तुम?”

वीरभद्र ने सत्य बोलते हुए बताया,

“मैं डाकू हूँ और यहाँ चोरी करने आया हूँ।”

राजा अक्सर ही अपने भेष बदल कर राज्य का हाल-चाल पता किया करते थे। पहरेदारों ने सोचा शायद राजा स्वयं ही भेष बदल कर आये हैं और उनकी परीक्षा ले रहे हैं। इसलिए उन्होंने बिन कुछ कहे वीरभद्र को अन्दर जाने दिया।

अन्दर जाते ही वीरभद्र ने सभी मूल्यवान रत्न और गहने एकत्रित किये और बहार आ गया । इस बार पहरेदारों ने बिना कुछ कहे उसे चले जाने दिया।

सुबह हुयी तो सारे राज्य में यह बात फ़ैल गयी कि राजा के महल में चोरी हो गयी। पहरेदारों को बुलाया गया। पूछने पर उन्होंने बताया,

“महाराज, रात में आपके जैसे ही वस्त्र पहने एक व्यक्ति आया था। पूछने पर उसने बताया कि वह डाकू है। हमें लगा आप ही भेष बदल कर हमारी परीक्षा ले रहे हैं। वैसे भी चोरी करने आया इन्सान क्यों बताएगा कि वह चोरी करने आया है। बस इसीलिए हमने उसे नहीं रोका।”

राजा उस व्यक्ति को देखना चाहता था जिसने इतना साहस किया कि राजा के महल में ही चोरी कर ली। वो भी इतनी चालाकी से कि किसी  को पता भी नहीं चला। उसने तुरंत मंत्री को आदेश दिया कि राज्य में सबको सूचित कर दो कि हम उस व्यक्ति से मिलना चाहते हैं जिसने कल रात हमारे महल  में चोरी की है।

सूचना पाकर वीरभद्र अगले ही दिन दरबार में पहुंचा। वीरभद्र को देख सभी दरबारी दंग रह गए। राजा को बहुत गुस्सा आया। वे गुस्से में बोले,

“तुम यहाँ क्या करने आये हो?”

वीरभद्र नम्रतापूर्वक बोला,

“राजन मैं वही चोर हूँ जिसे आप सब ढूंढ रहे हैं। असहाय होने पर ही मैंने ये कार्य किया।”

“असहाय होने पर?”

राजा ने उसे रोकते हुए पूछा।

“जी हाँ महाराज, मैंने एक साधु को वचन दिया था कि मैं सदैव सत्य ही बोलूँगा। जिस कारण मैं कहीं भी चोरी नहीं कर सकता था। इससे मैं निर्धन होता चला गया। जब मेरे पास कोई विकल्प न रहा तो मैंने महल में चोरी की योजना बनाई। इसीलिए आपके पहरेदारों को भी मैंने सत्य ही बताया।“

वीरभद्र की बात सुन कर राजा को बहुत प्रसन्नता हुयी। इस बात से वो बहुत ज्यादा ही प्रसन्न थे कि एक क्रूर डाकू एक सच्चा इन्सान बन गया था।

राजा ने भरे दरबार में वीरभद्र को सात गाँव जागीर में दे दिए। जिस से भविष्य में उसे चोरी न करनी पड़े और वह मेहनत कर के अपना पालन-पोषण कर सके।

वीरभद्र ने राजा को भी वचन दिया कि वह आज के बाद कोई गलत काम नहीं करेगा और ईमानदार व्यक्ति बन कर जीवन बिताएगा।

तो दोस्तों इस तरह एक डाकू ने जब सत्य का मार्ग अपनाया तो उसका जीवन ही बदल गया। जहाँ पहले वह छिप-छिप कर जीवन बिताता था। वहीं अब वह पूरे सम्मान के साथ अपना जीवन जी रहा था। उसने समस्याओं का सामना किया लेकिन सत्य से पीछे नहीं हटा। जिसके फलस्वरूप उसके सारे दुःख दूर हो गए।

इसी तरह सत्य का साथ निभाते हुये जीवन व्यतीत करने वाले लोग सम्मानपूर्वक अपना जीवन जीते हैं।

“ सत्य की कहानी ” आपको कैसी लगी? अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

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धन्यवाद।

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