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नये साल का उत्सव – नव वर्ष की कहानी | Nav Varsh ki Kahani

by Sandeep Kumar Singh
4 minutes read

नये साल का उत्सवलोगों के नये वर्ष को देखने और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है। इसी पर एक छोटी सी कहानी नये साल का उत्सव पढ़िए।

नये साल का उत्सव

नये साल का उत्सव - नव वर्ष की कहानी | Nav Varsh ki Kahani

आज नव वर्ष का पहला दिन था। और तैयारियां तो एक दिन पहले से ही शुरू कर दी गई थीं। सब अपने अपने स्तर पर सब बंदोबस्त कर लिए थे। हमारे एक मित्र ने तो हद ही कर दी। सर्दियों के सबसे ठंडे दिनों में मनाली जाने का प्रोग्राम बना लिया। अब बताओ ऐसा भी होता है क्या, कि दिमाग इतना गर्म हो जाए की ठंडा करने के लिए और ठंडे इलाके में जाया जाए। सबके अलग-अलग फंडे हैं।

31 की शाम को देखा तो सामने वाले घर में किसी पार्टी की तैयारियां चल रही थी। किसी पड़ोसी ने बताया कि आज यहाँ जगराता है। ऐसा लग रहा था जैसे आज इनकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी। पर 1 जनवरी को नये साल का उत्सव तो यीशु मसीह के जन्म दिवस के कारण मनाया जाता है। ऐसा लग रहा था मानो सब इसी दिन का इंतजार कर रहे थे हर काम को शुरू करने के लिए।

खैर रात को जगराता आरंभ हुआ और धार्मिक संगीत के ऊंचे स्वर में जैसे तैसे खुद को नींद के सुपुर्द किया ही था, अचानक रात के 12बजे जब मैं आराम से सो रहा था। उसी समय कानों में एक तेज ध्वनि आई। नींद के नशे से थोड़ा बाहर आया तो देखा कि दूर के एक रिश्तेदार का फोन आया था। मैंने आंखें बंद करते हुए फोन उठा कर कान से लगाया। “हैप्पी न्यू ईयर ” की एक जोरदार आवाज कानों से होती हुई सीधे सिर से जा टकराई। मन में आये क्रोध पर नियंत्रण करते हुए मैंने भी जवाब दिया।

अगला सवाल उसी समय आ गया-“सो रहे थे क्या? ” अब पता नहीं ये कैसा प्रश्न था। फिर भी मैंने जवाब दिया- ” जी सो रहा था। “
“मुझे लगा जगराता कर रहे हो। ” उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा।

यह सुन सर्दी की उस रात में गर्मी पूरे बदन पर हावी हो गई।  इससे पहले मैं कुछ बोलता वो बोले कि पीछे से आवाज आ रही है इसलिए पूछा। फिर हालचाल पूछने के बाद फोन काट दिया। और फिर एक और फोन आ गया।  कुछ देर तक फोन का आना बंद हुआ तो फिर से सोने की कोशिश करने  लगा। और सोचने लगा अगर इतनी शिद्दत से  लोग अपने काम करते तो कहां से कहां पहुंच जाते। इन्हीं खयालों में कब सो गया पता ही नहीं चला।

सुबह उठा तो टीवी में देखा नव वर्ष के  आगमन का उत्सव दिखाया जा रहा था।  मैंने देखा कि ढेर सारी आतिशबाजी की गई। पर कहीं भी वो लोग नहीं दिखे जो  दीवाली या दशहरे के दिन वायु प्रदूषण की दुहाई देते हैं। शायद वो भी नव वर्ष के उत्सव में मशगूल थे। विद्यालय में अवकाश होने के कारण मैं एक मित्र से  मिलने  के लिए निकला तो रास्ते में मिलने वाले हर इंसान ने “हैप्पी न्यू ईयर” को बंब की तरह मेरी ओर उछाल दिया। मैंने भी जवाबी कार्यवाही करते हुए ” सेम टू यू” का रटा रटाया शब्द बोल दिया।



किसी तरह इन सब के बीच जब मित्र के घर पहुंचा तो पता चला की नव वर्ष के आगमन पर वह किसी धार्मिक स्थल पर गया है। मुझे ऐसा लगा जैसे प्रभु आज ही दर्शन देने वाले हैं वर्ना उसने तो गत वर्ष ऐसा कुछ भी नहीं किया था। मुझे तो ऐसा प्रतीत होने लगा  जैसे आज सबको कोई ऐसी बीमारी लग गई है जो बस आज के दिन ही रहेगी। तभी मेरी नजर रास्ते में खड़ी भीड़ पर पड़ी ।

पास  जाकर देखा  तो एक भिखारी की मृत देह पर पड़ी थी। जिसे देखने से ऐसा लग रहा था कि उसने सर्द रात में खुद को गर्म रखने की कोशिश में हार के अपनी आत्मा को शरीर से अलग कर हर तकलीफ से मुक्ति पा ली हो। न जाने वो लोग उस वक्त कहां थे। जो अपने जन्म दिवस पर, किसी धार्मिक उत्सव या चुनाव के दिनों में मुफ्त कंबल और कपड़े बांटते थे। अगर उस गरीब भिखारी की सहायता पहले किसी ने की होती तो शायद ऐसा न होता।

पर अफसोस कि वर्ष में ही बदलाव आया था। इंसान अभी भी स्वार्थी ही था। और आज भी जो कुछ कर रहा था वह मात्र अपनी उपस्थिति और अस्तित्व सिद्ध करने के लिए। आज का इंसान अपनी आवाज तभी उठता है जब उसे अपना कोई लाभ नजर आता है। यदि हम यथार्थ में नये साल का उत्सव मनाना चाहते हैं तो हमें अपना हर दिन किसी की सहायता करने, सद्भावना बढ़ाने और देश की उन्नति के लिए समर्पित करना चाहिए। इस प्रकार हम हर दिन नव वर्ष की अनुभूति कर पाएंगे।

आप इस कहानी ” नये साल का उत्सव “से कितने सहमत है? अपने विचार हम तक जरुर पहुंचाए। आप भी ऐसा कुछ लिख के यहाँ इस ब्लॉग में पब्लिश करवाना चाहते है तो आपका स्वागत है।

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