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पिता का दर्द पर कविता – बंजर है सपनों की धरती | Ek Pita Ke Dard Par Kavita

by Sandeep Kumar Singh
2 minutes read

पिता का दर्द पर कविता :- हमें जन्म देने वाले हमारे पिता जो हमारे लिए अपना सारा जीवन दुखों और परेशानियों में बिता देते हैं। पर बदले में आज की युवा पीढ़ी क्या कर रही है? आज बस अपने स्वार्थ के लिए घर में बूढ़े बाप को अनदेखा किया जाता है और उन्हें वो प्यार नहीं दिया जाता जिसके वो हकदार हैं।

ऐसा करते समय शायद यह पीढ़ी ये भूल जाती है कि उनके जीवन में भी एक ऐसा दिन आएगा। ऐसा ही कुछ मैंने इस कविता में अपने शब्दों द्वारा कहने की कोशिश की कि कैसे एक पिता के सपनों की धरती को बेटों ने बंजर बना दिया है और पिता प्यार की फसल के बिना कैसे लाचार है कविता ‘ बंजर है सपनों की धरती ‘ में :-

पिता का दर्द पर कविता

पिता का दर्द पर कविता

चेहरे की इन झुर्रियों के पीछे
कई हसीन दास्तान हैं,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

बीते वक़्त का कारवां साथ चलता है
दिल में कहीं एक छोटा सा दर्द पलता है,
ख्वाहिशों का बोझ लिए जिंदगी में
एक-एक कर हर अरमान जलता है,
बोझिल सा लगता है जीवन
हर पल सब्र का इम्तिहान है,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

कभी जो परिवार के बाग़ का माली था
आज उसकी झोली खली है,
न जाने कैसी सभ्यता है
अनपढ़ बाप अब लगता गाली है,
एक वक़्त की रोटी देना भी
अब तो समझते एहसान हैं,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

कभी खांसी, कभी बुखार,
कभी मौसम की मार है,
थोड़ी बहुत तसल्ली छीने
अपनों का अत्याचार है,
जिसे पालने में जान लगा दी
उसे न जाने किस बात का गुमान है,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

दौलत के नहीं है प्यार के भूखे
हर पल अपनों का रास्ता देखे,
खली पेट रहकर थे पाले
आज वही देते हैं धोखे,
खून का रिश्ता था जिनसे
वो आज बने अनजान हैं,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

फ़िक्र न कर सब ढल जाएगा
तेरा भी ऐसा कल आएगा,
याद करेगा बीते लम्हे
कोसेगा खुद को पछताएगा,
उस वक़्त लगेगा तुझको कि
इससे बेहतर श्मशान है,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

आपको यह कविता कैसी लगी हमें जरूर बताएं।

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धन्यवाद।

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13 comments

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Yunik rani मार्च 16, 2023 - 11:26 अपराह्न

Sandeep sir jo pitaji apne baccho ke bachpan ki khushiya bhi le jate hai waise pitaji ke liye bhi sayri likhiye ga na

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Sumitra chhetri जून 23, 2021 - 1:15 अपराह्न

Bohot hi sachi or achi kavita hai… Ajj k bacho ki sachai deakhati… Bohot uttam ????

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Vikas Rana मई 1, 2020 - 10:56 अपराह्न

बहुत अच्छी यह कविता मेरी आई डी पर भेज दो धन्यवाद

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 2, 2020 - 11:16 पूर्वाह्न

विकास जी ये कविताएँ आप यहीं पढ़ सकते हैं।

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Dev Saheb फ़रवरी 25, 2020 - 4:36 अपराह्न

बहुत बढ़िया थैंक्स

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Kranti bhai Badamiya मार्च 12, 2019 - 12:36 अपराह्न

Realy Salute sir.
Abhi ke navjavano ko ye Sikh leni chahiye.
Against salute.

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मार्च 12, 2019 - 3:50 अपराह्न

धन्यवाद क्रांति भाई।

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Hemant Tamboli फ़रवरी 27, 2019 - 1:32 अपराह्न

बहुत अच्छी ओर पिता के मर्म को समझाती हुई ओर दिल को छूती हुई रचना हैं…..

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मार्च 2, 2019 - 5:25 अपराह्न

Thanks Hemant Tamboli ji…

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Vishavjeet Bishnoi जून 17, 2018 - 11:20 अपराह्न

बहुत खूब

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जून 18, 2018 - 7:32 पूर्वाह्न

धन्यवाद विश्वजीत बिश्नोई जी।

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समित राज रौशन जनवरी 18, 2018 - 11:30 अपराह्न

हमे आपका कविता बहुत बढियं लगा

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जनवरी 19, 2018 - 10:00 पूर्वाह्न

धन्यवाद समित राज रौशन जी।

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