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हरियाली पर कविता

” हरियाली पर कविता ” में वर्षा ऋतु के बाद छाई हरियाली का वर्णन करते हुए हरियाली का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। बरसात की बूँदें पड़ते ही धरती पर हरियाली छाने लगती है। पर्वत हरियाली से ढक जाते हैं। मैदानों में हरी – हरी घास फूटने लगती है। खेतों में फसलें लहराने लगती है। पेड़ – पौधों पर फिर से निखार आ जाता है। हरियाली के इन दृश्यों को देखकर आँखें शीतलता का अनुभव करने लगती है और मन प्रसन्नता से भर जाता है। हरे पेड़-पौधों के कारण ही धरती पर जीवन का अस्तित्व है, अतः हमें हरियाली की रक्षा करना चाहिए। ” हरियाली पर कविता ” बच्चों और बड़ों के लिए समान रूप से उपयोगी है।

हरियाली पर कविता

रिमझिमरिमझिम बरसा पानी
धरती पर छाई हरियाली,
हरे  हो गए रूखे पर्वत
झूम उठी पेड़ों की डाली।

नन्हीनन्ही घास झूमती
झिलमिल जलबूँदें इठलाती,
हरियाली की फैली चादर
मन को कितना खूब लुभाती।

खेतों में अंकुर फूटे हैं
फिर से फसलें लहराएँगी,
मन में होंगी नई उमंगें
घरघर में खुशियाँ छाएँगी। 

पेड़ोंपौधों की हरियाली
आँखों को है कितनी भाती,
उजड़े मन के बागों में यह
आशाओं के फूल खिलाती। 

हरियाली बनकर आई है
जीवों के सुख की सहयोगी,
भूल गए हैं सारे प्राणी
गर्मी की जो पीड़ा भोगी। 

हरियाली से जीवन हँसता
धरती
का कण-कण मुस्काता,
हरियाली
आधार जगत का
कभी
इससे टूटे नाता।

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