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ज्ञान की कविता :- मूर्खों का अनुसरण | Gyan Ki Hindi Kavita

by Praveen
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आप पढ़ रहे हैं ज्ञान की कविता “मूर्खों का अनुसरण” :-

ज्ञान की कविता

ज्ञान की कविता

भोलेपन सा जीना जीवन
और मूर्ख बने रहना तुम,
कल्याण छिपा है इसमें तेरा
और मूक बने रहना तुम।

जितनी मस्ती गढ़ी मूर्खता में
उतनी न मिलेगी विद्वता में,
ज्ञानी-ध्यानी की बड़ी गलतियां
सर्वव्याप्त है कपटता में।

दंगे फ़साद हुए अब तक जो
बुद्धिमानों के कर्म कण है,
भाषा मज़हब का ज्ञान नहीं
परोपकार मूर्खो के आभूषण है।

कलयुग के सारे बाशिंदे आज
मूर्खों के भोलेपन के कायल है,
बुद्धिमानों के “भोलेपन” से या
धोखाधड़ी से घायल है।

लाख टके की बात बतादुं
आक़िल बदनाम कर देता है,
मूर्ख भले ही ज्ञानी ना हो
झुक कर प्रणाम कर लेता है।

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Praveen kucheriaमेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।

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