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गुरु और शिष्य की कहानी :- अमीर खुसरो की गुरु भक्ति और विश्वास की एक कहानी

by Sandeep Kumar Singh
4 minutes read

क्या आप जानते हैं अमीर खुसरो के गुरु कौन थे ? अमीर खुसरो के गुरु का नाम क्या था ? जानिए इन सवालों के जवाब अमीर खुसरो की इस गुरु और शिष्य की शिक्षाप्रद कहानी में।

इस दुनिया में सबसे बड़ा गुरु को माना गया है। गुरु की महिमा शब्दों की मोहताज नहीं होती। भारतीय साहित्य गुरु और शिष्य की कथाओं से परिपूर्ण है। चाहे वो कबीर-रामानन्द हों , एकलव्य-द्रोणाचार्य हों या विवेकानंद-रामकृष्ण  हों। गुरु और शिष्य का संबंध बहुत पवित्र माना गया है। जिसने भी अपने गुरु की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन मन लगा करे किया है। उनका सदा ही उद्धार हुआ है।

सच्चा शिष्य वही है जो गुरु की हर बात को सत्य माने और उनके किये गए कार्यों पर प्रश्न न उठाये। इस तरह वो गुरु की नजरों में भी सच्चे शिष्य बन जाते हैं और गुरु को उसे अपना शिष्य बताने में गर्व महसूस करते हैं। ऐसी ही एक घटना अमीर खुसरो के साथ भी हुयी थी। जिसके बाद हजरत निजामुद्दीन को औलिया अमीर खुसरो की गुरु भक्ति देख कर बहुत प्रसन्नता हुयी। आइये पढ़ते हैं गुरु और शिष्य की कहानी :-

गुरु और शिष्य की कहानी

गुरु और शिष्य की कहानी

हजरत निजामुद्दीन औलिया के कई हजार शागिर्द थे। लेकिन जैसा कि हर गुरु के साथ होता है कि कोई न कोई उनका प्रिय शिष्य होता है। ऐसे ही हजरत निजामुद्दीन औलिया के 22 बहुत ही करीबी शिष्य थे। वो शिष्य अपने गुरु को अल्लाह का ही एक रूप मानते थे।

एक बार हजरत निजामुद्दीन औलिया के मन में आया कि क्यों न इन सब की परीक्षा ली जाए और देखा जाए कौन मेरा सच्चा शिष्य साबित होता है।

इसी विचार से वो अपने 22 शिष्यों को लेकर दिल्ली भर में घूमने लगे। घुमते-घुमते रात हो गयी। तब हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने शिष्यों को लेकर एक वैश्या के कोठे पर गए। वहां उन सब को नीचे खड़े रहने के लिए कहा और खुद ऊपर कोठे पर चले गए।

वैश्या ने जब उन्हें देखा तो वो बहुत प्रसन्न हुयी और बोली,

“आपके आने से मेरा तो जीवन धन्य हो गया। कहिये मैं आपकी किस प्रकार सेवा कर सकती हूँ?”

औलिया ने उस वेश्या से कहा,

“तुम मेरे लिए भोजन का प्रबंध करो और बाहर से एक शराब की बोतल में पानी ऐसे मंगवाना कि नीचे खड़े मेरे शिष्यों को वो शराब लगे।”

वेश्या ने औलिया के हुक्म का पालन किया।

जब बाहर से भोजन और शराब की बोतल जाने लगी तो सरे शिष्य बहुत अहिरन हुए। उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। सब सोचने लगे कि ऐसा कैसे हो गया? जो गुरु हमें सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। वो खुद ही ऐसे काम कर रहे हैं।

अब धीरे-धीरे रात बीतने लगी। गुरु जी को बाहर न आते देख धीरे-धीरे एक-एक कर सभी शिष्य वहाँ से चले गए। लेकिन एक शिष्य अपनी जगह से हिला तक नहीं और वो थे – अमीर खुसरो।

सुबह जब औलिया नीचे उतरे तो देखा की सब चेलों में से बस अमीर खुसरो ही वहां मौजूद थे। उन्हें वहाँ देख औलिया ने उनसे पुछा,

“हमारे साथ आये बाकी चेले कहाँ गए?”

“रात को इन्तजार करते-करते भाग गए सब।”

“तू क्यों नहीं भागा? क्या तूने नहीं देखा कि मैंने सारी रात वैश्या के साथ बितायी और शराब भी मंगवाई थी?”

तब अमीर खुसरो ने जवाब दिया,

“भाग तो जाता, लेकिन भाग कर जाता कहाँ? आपके क़दमों के सिवा मुझे कहाँ चैन मिलता। मेरी सारी जिंदगी तो आपके चरणों में अर्पण है।”

यह सुन कर हजरत निजामुद्दीन औलिया को बहुत प्रसन्नता हुयी। उन्होंने अपने इस गुरु भक्त शिष्य को बहुत आशीर्वाद दिए।

उस दिन के बाद खुसरो की गुरु भक्ति ऐसी सिद्ध हुयी की आज अमीर खुसरो की मजार उनके गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया के पास ही बन गयी। और इस तरह आज भी गुरु-शिष्य साथ ही रहते हैं।


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सच्चे शिष्य की पहचान ही यही है कि वो अपने आपको गुरु के चरणों में समर्पित कर दे। तभी उसकी जिंदगी सफल हो सकती है।

आपको गुरु और शिष्य की कहानी कैसी लगी? अपनी कमेंट बॉक्स में जरूर व्यक्त करें।

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धन्यवाद।


Image Source: inquiriesJournal

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6 comments

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Pandit Balkrishna Iyer मई 16, 2022 - 7:33 अपराह्न

bahut sundr isi tarah likhte rahiye sahab. bhagwan apka bhala kare. Namaskar Pt Balkrishna Iyer Mumbai

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अज्जु मार्च 18, 2022 - 7:53 अपराह्न

सभी सच्चे गुरु और उनके शिष्यों को कोटि कोटि वंदन
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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JESANGBHAI B VAGHELA अक्टूबर 16, 2020 - 11:28 अपराह्न

बहुत बहुत धन्यवाद

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Sahil फ़रवरी 17, 2019 - 9:46 पूर्वाह्न

Very very interesting

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh फ़रवरी 19, 2019 - 12:29 अपराह्न

Thanks Sahil…

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संदीप सितम्बर 8, 2018 - 12:12 अपराह्न

उत्कृष्ट संकलन. कबीर की तरह इसे सकल विश्व को समर्पित करें, दूसरों से अपनी नजर बटे, और अपने पर टिके यही कबीर की वाणी है.

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