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दीपों से जगमग होने वाली दिवाली के बाद की भावनाओं को व्यक्त करती दिवाली के बाद कविता :-
दिवाली के बाद कविता
दीवाली के दीप बुझ गए
दूर घना अंधेरा हुआ
इक बार हंसते हुए फिर
रोशन नया सवेरा हुआ,
फिर से रवि उदय हुवा है
कुछ नई उम्मीदें लाकर
ह्रदय तमस को दूर करें हम
प्रेम प्रणय का दीप जलाकर।
दूरियाँ थी जो आपस में वह
थोड़ा कम दीवाली से हों
प्यार बांटकर सब जन में
नेत्र भी नम खुशहाली से हों,
नये सूर्य का उदय हुआ हो
खुद में कुछ परिवर्तन लाकर
ह्रदय तमस को दूर करें हम
प्रेम प्रणय का दीप जलाकर।
समझो महत्ता त्योहारों की
कितनी खुशियां लाते हैं
भेदभाव मिटाकर सबके
मन का मैल मिटाते हैं,
कुछ सीखो इस दीवाली से
स्वयं में कुछ बदलाव लाकर
ह्रदय तमस को दूर करें हम
प्रेम प्रणय का दीप जलाकर।
कुछ सोचो उनके बारे में भी
जो घरों से दूर गए सीमा पर
छोड़कर अपने घर परिवार को
गोली खायी है सीने पर,
सोचो कुछ सैनिकों के हित भी
थोड़ी करुणा हृदय में लाकर
ह्रदय तमस को दूर करें हम
प्रेम प्रणय का दीप जलाकर।
इक बेटी अपना सब छोड़
अपने पिया के घर को आयी हो
इस दिवाली प्यार जताकर
उसकी आंखें भर आयी हों,
मन भी उसका हुआ हो सुखमय
प्यार पिया के घर में पाकर
ह्रदय तमस को दूर करें हम
प्रेम प्रणय का दीप जलाकर।
मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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धन्यवाद।
1 comment
Aprateem Kavita sangrah h aapka. aajkal yuva log mahattva nahi samajhte.