अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2019
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योग का भारतीय संस्कृति में एक प्रमुख स्थान है। जब से भारत की सभ्यता पायी जाती है, वेदों और पुराणों में तब से योग की महिमा गाई गयी है। योग मात्र कोई शारीरिक गतिविधि नहीं है। यह एक ऐसी शक्ति है जो कई असाध्य रोगों को जड़ से ख़त्म करने की क्षमता रखते हैं। आज तो योग पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है। इसी कारण ही 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाना प्रारंभ हुआ। इस वर्ष भी 21 जून, 2019 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। आइये विस्तार से जानते है योग और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के बारे में।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की शुरुवात-
21 जून वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान करता है।
पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण देकर योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाये जाने की पहल की। जिसके संबंध में दिए गए भाषण में उन्होंने कहा:
“योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है। विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है।
यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।”—नरेंद्र मोदी, संयुक्त राष्ट्र महासभा
11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को ” अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। जिसके बाद 21 जून को ” अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया गया।
⇒पढ़िए- भारत की पौराणिक संस्कृति | भारतीय संस्कृति की पहचान
योग क्या है? योग की परिभाषा-
योग भारत और नेपाल में एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। योग की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ जोड़ना है। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
पहला है- समाधि अर्थात् चित्त वृत्तियों का निरोध और दूसरा जोड़। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा। योग का अर्थ परमात्मा से मिलन है। गीता में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ योग से कर्मो में कुशलता आती हैं। योग की उच्चावस्था समाधि, मोक्ष, कैवल्य आदि तक पहुँचने के लिए अनेकों साधकों ने जो साधन अपनाये उन्हीं साधनों का वर्णन योग ग्रन्थों में समय समय पर मिलता रहा। उसी को योग के प्रकार से जाना जाने लगा।
योगासन के प्रकार-
योग की प्रमाणिक पुस्तकों में शिवसंहिता तथा गोरक्षशतक में चार प्रकार के योग का वर्णन मिलता है –
मंत्रयोगों हष्ष्चैव लययोगस्तृतीयकः। चतुर्थो राजयोगः (शिवसंहिता , 5/11)
मंत्रो लयो हठो राजयोगन्तर्भूमिका क्रमात् एक एव चतुर्धाऽयं महायोगोभियते॥ (गोरक्षशतकम् )
ऊपर दिए गए दोनों श्लोकों से योग के चार प्रकार इस तरह हैं :- मंत्रयोग, हठयोग लययोग व राजयोग। इनका विश्लेषण इस प्रकार है।
मन्त्रयोग
‘मंत्र’ का समान्य अर्थ है- ‘मननात् त्रायते इति मंत्रः’। मन को त्राय (पार कराने वाला) मंत्र ही है। मंत्र योग का सम्बन्ध मन से है, मन को इस प्रकार परिभाषित किया है- मनन इति मनः। जो मनन, चिन्तन करता है वही मन है। मन की चंचलता का निरोध मंत्र के द्वारा करना मंत्र योग है। मंत्र से ध्वनि तरंगें पैदा होती है मंत्र शरीर और मन दोनों पर प्रभाव डालता है। मंत्र में साधक जप का प्रयोग करता है मंत्र जप में तीन घटकों का काफी महत्व है वे घटक-उच्चारण, लय व ताल हैं। तीनों का सही अनुपात मंत्र शक्ति को बढ़ा देता है।
हठयोग
हठ का शाब्दिक अर्थ हटपूर्वक किसी कार्य करने से लिया जाता है। हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ का अर्थ इस प्रकार दिया है- ह का अर्थ सूर्य तथ ठ का अर्थ चन्द्र बताया गया है। सूर्य और चन्द्र की समान अवस्था हठयोग है।
लययोग
चित्त का अपने स्वरूप विलीन होना या चित्त की निरूद्ध अवस्था लययोग के अन्तर्गत आता है। साधक के चित्त् में जब चलते, बैठते, सोते और भोजन करते समय हर समय ब्रहम का ध्यान रहे इसी को लययोग कहते हैं।
राजयोग
राजयोग सभी योगों का राजा कहलाया जाता है क्योंकि इसमें प्रत्येक प्रकार के योग की कुछ न कुछ समामिग्री अवश्य मिल जाती है। राजयोग में महर्षि पतंजलि द्वारा रचित अष्टांग योग का वर्णन आता है। राजयोग का विषय चित्तवृत्तियों का निरोध करना है।
⇒पढ़िए- योग दिवस पर स्लोगन
महर्षि पतंजलि और अष्टांग योग
महर्षि पतंजलि ने समाहित चित्त वालों के लिए अभ्यास और वैराग्य तथा विक्षिप्त चित्त वालों के लिए क्रिया योग का सहारा लेकर आगे बढ़ने का रास्ता सुझाया है। पतंजलि, व्यापक रूप से औपचारिक योग दर्शन के संस्थापक माने जाते है। पतंजलि के योग, बुद्धि का नियंत्रण के लिए एक प्रणाली है,राज योग के रूप में जाना जाता है।
पंतजलि उनके दूसरे सूत्र में “योग” शब्द का परिभाषित करते है, जो उनके पूरे काम के लिए व्याख्या सूत्र माना जाता है। पंतजलि का लेखन ‘अष्टांग योग”(“आठ-अंगित योग”) एक प्रणाली के लिए आधार बन गया।
ये आठ अंग इस प्रकार हैं:-
1. यम (पांच “परिहार”) :- अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति और गैर स्वामिगत।
2. नियम (पांच “धार्मिक क्रिया”) :- पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान को आत्मसमर्पण।
3. आसन :- मूलार्थक अर्थ “बैठने का आसन” और पतांजलि सूत्र में ध्यान।
4. प्राणायाम (“सांस को स्थगित रखना”) :- प्राणा, सांस, “अयामा “, को नियंत्रित करना या बंद करना। साथ ही जीवन शक्ति को नियंत्रण करने की व्याख्या की गयी है।
5. प्रत्यहार (“अमूर्त”) :- बाहरी वस्तुओं से भावना अंगों के प्रत्याहार।
6. धारणा (“एकाग्रता”) :- एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना।
7. ध्यान (“ध्यान”) :- ध्यान की वस्तु की प्रकृति गहन चिंतन।
8. समाधि(“विमुक्ति”) :- ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना। इसके दो प्रकार है – सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प समाधि में संसार में वापस आने का कोई मार्ग या व्यवस्था नहीं होती। यह योग पद्धति की चरम अवस्था है।
अंततः योग के बारे में पढ़कर यही निष्कर्ष निकलता है कि हमें अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर अपने मन को ताकतवर बनाना, शरीर को बलवान बनाना। मन को अपना गुलाम बनायें, मन के गुलाम न बनें। और ये सब योग द्वारा ही मुमकिन है। फिर आपकी जिंदगी बहुत ही आसान हो जाती है।
“योग अपनाये और अपने जीवन में खुशियां लाएं।“
∗इस लेख के अधिकांश भाग यहाँ से लिया गया है।
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2 comments
Bahut hi accha
धन्यवाद देवांश शुक्ला जी….