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याद पर कविता ‘ यादों की शाम ‘ दोहों में एक मरणासन्न व्यक्ति को, अंतिम क्षणों में याद आ रही यादों का चित्रण है। मृत्यु – शैय्या पर लेटे व्यक्ति को अपना बचपन याद आता है जब वह माँ की उँगली थाम कर चला करता था। उसे लगता है कि अंतिम क्षणों में पिता उसके पास ही खड़े हैं। भाई – बहिन भी एक – एक कर स्मृति में उभर रहे हैं। नाते – रिश्तेदार, बिछुड़े साथी, गाँव की छूटी गलियाँ उसको रह-रहकर याद आते हैं। इन सब बातों को याद करते हुए उसकी आँखों से आँसू ढुलक पड़ते हैं और वह शान्ति से मौत की गोद में सो जाता है।
याद पर कविता
दिन जीवन का ढल गया,
घिरी याद की शाम।
लगता मैं फिर चल रहा,
माँ की उँगली थाम।।
पिता खड़े हैं पास में,
जैसे तो थकहार।
मुझे मौत की सेज पर,
देख रहे लाचार।।
भाई – बहिनों का रहा,
हर सुख – दुःख में साथ।
एक – एक वे आ रहे,
पकड़ याद का हाथ।।
धुँधले – धुँधले दीखते,
नाते – रिश्तेदार।
आँसू भर वे आँख में,
मुझको रहे दुलार।।
बिछुड़े साथी आ रहे,
अंतिम पल में याद।
मिलना इनसे हो रहा,
बड़े दिनों के बाद।।
छूटी गलियाँ गाँव की,
फिर से उठीं पुकार।
कहतीं खोये थे कहाँ,
भूल हमारा प्यार।।
ढुलक रहीं यादें कई,
बन आँसू की बूँद।
मैं भी अब चिर नींद में,
लूँगा आँखें मूँद।।
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धन्यवाद।