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एक चीज हमारी दुनिया में ऐसा है जिसके प्रति हमारा नजरियाँ मौसम के साथ बदलता है। जीहाँ और वो है सूरज से आने वाली किरने मतलब धूप। गर्मियों में यही तपती धूप हो जाती है और किसी को नहीं भाती, बारिश में तो बादलों के पीछे ही छिपी रहती है, और ठण्ड के दिनों में यहीं सुनहरी धूप बन जाती है जो सबको भाती है। इसी धूप पर हम एक कविता प्रस्तुत कर रहें है।
ये हमारी भारतीय संस्कृति है की हम प्रकृति को अध्यात्म से जोड़ते रहते है। इस कविता के रचनाकार अपने कविता के बारे में कहते है: “इस कविता में आध्यात्मिक दृष्टि से धूप का महत्त्व बतलाया गया है। सभी जीवों के लिए धूप का अत्यंत महत्त्व है। जब धूप के रूप में ज्ञान की किरणें मन में प्रवेश करती हैं तो सारा अज्ञान – अंधकार दूर हो जाता है और जीवन खुशियों से भर जाता है। धूप का सुनहरा प्रकाश मन में भरने के लिए आवश्यक है कि हम अपने विचारों की खिड़की खुली रखें।”
धूप पर कविता
उतरी है मन के आँगन में
आज सुनहरी धूप,
अँधियारे कोनों का फिर से
लगा निखरने रूप।
बरसों के सोये सपने भी
आज रहे हैं जाग,
डूबे सुर का पहले – सा अब
दिखता नहीं विराग।
मुरझाई आशा में होता
जीवन का संचार,
चेतनता को मिला हृदय का
एक नया संसार।
चटक उठी भावों की कलियाँ
अपने रंग बिखेर,
अवसादों के घेरों ने भी
लिया चेहरा फेर।
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आज धूप आकर अनजाने
लगी खेलने खेल,
सात रंग से करा रही है
धूसर मन का मेल।
धूप घुसे यह अंतरतम में
जब खिड़की दें खोल,
खुलकर डोले अगर प्यार के
दो अक्षर दें बोल।
एक एक टुकड़े में इसके
है नभ का आभास,
किरण किरण इसकी ले आती
सूरज अपने पास।
सोना बनकर चमक उठी है
मन – दर्पण की धूल,
जीवन के पथरीले पथ पर
लगे झूमने फूल।
भोर गुलाबों – सी अब लगती
चम्पा जैसी शाम,
धूप सुनहरी ने लिख दी है
पाती सुख के नाम।
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धन्यवाद।