रिश्तों पर कविताएँ, हिंदी कविता संग्रह

सुबह के चार बजे थे – एक अनुभूति पर बेहतरीन कविता


जब हमारा कोई क़रीबी हमें छोड़ कर चला जाता है तो अक़्सर हमें उसके पास होने की अनुभूति-सी होती रहती है। ऐसा लगता है जैसे वो हमसे कुछ कहना चाहता है। हमारी स्मृतियों में से निकल कर हमें अपने साथ ले जाना चाहता है। परंतु बाद में आभास होता है कि यह सब मात्र स्वप्न ही था। ऐसे ही कुछ भाव कवयित्री प्रस्तुत कर रही हैं इस कविता ” सुबह के चार बजे थे ” में :-

सुबह के चार बजे थे

सुबह के चार बजे थे
मेरे कानों में
सदा की तरह
मधुर रस घोला
“आओ उठो चलें ”
आँख खुली
एक मीठी-सी थपकी थी
देखा ———
भोर के चार बजे थे
तुम्हारा प्रणय निवेदन था
मगर तुम न थे ।।

किसी अनचाहे दुख से
मेरी भरी हुई
आँखों के आँसू
पी लिए हैं सहसा तुमने
आँख खुली
तुम्हारे अधर सम्पुट थे
देखा—–
भोर के चार बजे थे
तुम्हारी निःस्पृह प्यास जगी थी
मगर तुम न थे ।।

“चल झूठी
ले लेकर मेरा नाम
सुबह और शाम
तूने बरस बिताये सोलह”
आँख खुली
तुम्हारा मदभरा उपालंभ था
देखा——–
भोर के चार बजे थे
तुम्हारी तारों से अनबन थी
मगर तुम न थे ।

” मत मुझको तुम
सिहराया करो
अपनी भीगी-भीगी
घनी रेशमी  कुंतल राशि से”
आँख खुली
तुम्हारी बाँकी चितवन थी
देखा——-
भोर के चार बजे थे
उच्छ्वासों में आवाहन था
मगर तुम न थे ।

तुम्हारे चिर संचित
नितांत एकांत पलों को
मधुर मिलन बनाकर
“आजीवन अब साथ रहूँगा”
आँख खुली
तुम्हारा सदा का प्रलोभन था
देखा—–
भोर के चार बजे थे
अंतरतम तक सब प्लावित था
मगर तुम न थे ।।

ऊन सलाई की उधेड़ बुन
रखती मुझको प्यार से वंचित
स्वेटर मफ़लर की गर्माहट
चाहे करदे कितना रोमांचित
आँख खुली—–
तुम्हारा झूठा गुस्साया मन था
देखा—–
भोर के चार बजे थे
सफ़ेद चादर में लिपटा तन था
मगर तुम न थे ।

✍ अंशु विनोद गुप्ता


anshu vinod guptaअंशु विनोद गुप्ता जी एक गृहणी हैं। बचपन से इन्हें लिखने का शौक है। नृत्य, संगीत चित्रकला और लेखन सहित इन्हें अनेक कलाओं में अभिरुचि है। ये हिंदी में परास्नातक हैं। ये एक जानी-मानी वरिष्ठ कवियित्री और शायरा भी हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें “गीत पल्लवी “,दूसरी पुस्तक “गीतपल्लवी द्वितीय भाग एक” प्रमुख हैं। जिनमें इनकी लगभग 50 रचनाएँ हैं ।

इतना ही नहीं ये निःस्वार्थ भावना से साहित्य की सेवा में लगी हुयी हैं। जिसके तहत ये निःशुल्क साहित्य का ज्ञान सबको बाँट रही हैं। इन्हें भारतीय साहित्य ही नहीं अपितु जापानी साहित्य का भी भरपूर ज्ञान है। जापानी विधायें हाइकु, ताँका, चोका और सेदोका में ये पारंगत हैं।

‘ सुबह के चार बजे थे ‘ के बारे में अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

धन्यवाद।

One Comment

  1. बहुत सुंदर कविता आदरणीय
    हमें भी कविता लेखन की टिप्स दे हम अभी अभी लिख रहे और सीख रहे अपना मार्ग दर्शन अवश्य करे धन्यावाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *