सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रभाव
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दुनिया बहुत छोटी हो गयी है भैया। और ये सब सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रभाव ही है। एक जमाना था जब दूर रहने वाले रिश्तेदार, दोस्त और जान-पहचान वाले लोगों को जरूरी बातें चिट्ठी में लिख कर भेजा करते थे। उसके बाद जमाना आया फैक्स का और फिर टेलीफोन का फिर मोबाइल का।
इसके साथ ही चल रहा था दौर कंप्यूटर क्रांति का। कंप्यूटर बड़ी तेजी से सभी देशों की रीढ़ की हड्डी बनता जा रहा था। आज ज्यादातर कामकाज कंप्यूटर के जरिये ही किया जाता है। यहाँ तक की मै खुद ये लेख भी मै कंप्यूटर में ही लिख रहा हूँ।
इन्हीं सब के बीच 2004 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक विद्यार्थी के दिमाग में ऐसी योजना चल रही थी, जिसने लोगों की जिंदगी में ऐसी जगह बनाई जिसने उनकी असली जिंदगी की जगह ले ली। जी हाँ, मार्क जुकरबर्ग, वो शख्स जिसने अपनी पढ़ाई के दौरान एक ऐसी वेबसाइट बनायी जिससे वह अपने दोस्तों के साथ संपर्क में रह सके।
धीरे-धीरे यह वेबसाइट पूरी दुनिया में फैल गयी। सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रभाव इस कदर फ़ैल गया है की, आज आलम ये है इंसान धूम्रपान तो छोड़ सकता है लेकिन सोशल नेटवर्किंग साइट्स नहीं। पहले के समय में लोग अपने दिल की भावनाएं एक डायरी में लिखा करते थे। जिसे सिर्फ वही पढ़ सकता था जिसे लिखने वाला इज़ाज़त दे। आज तो सब कुछ सरेआम लिखा पढ़ा जाता है।
इसका निर्माण तो दूसरों के साथ संपर्क बनाने के लिए हुआ था और हुआ ये कि हम अपनों से ही दूर हो गए। घर का दूसरा सदस्य क्या कर रहा है इसका पता भी फेसबुक के स्टेटस से ही चलता है। हद तो ये है कि अगर किसी को जरा सा जुकाम भी हुआ तो डाल दिया स्टेटस फेसबुक पर मानो जैसे अंदर कोई दवाई भेजने वाला बैठा है।
हर तरह की भावनाएं यहाँ पर देखने को मिल जाती है। खबर आयी की एक लड़की को सरेआम एक लड़के ने कत्ल कर दिया। बस फिर क्या था, एक से एक पोस्ट तैयार कर दी सब ने। लड़के को इतनी गन्दी-गन्दी गलियां दीं की कोई सोच भी नहीं सकता। सब लोगों ने अपना गुस्सा उतारना शुरू कर दिया। कुछ तो उस कत्लेआम को रिकॉर्ड कर के अपलोड करने लगे। कुछ ही देर में सबकी प्रोफाइल पिक्चर पर एक मोमबत्ती नजर आने लगी। ऐसा लगा देश बदल रहा है। अगले ही दिन फिर वही सब चलने लगा।
कुछ ही देर में एक नोटिफिकेशन देखा। एक दोस्त ने किसी की पिक्चर पर कमेंट किया :- Nice pic
जब पिक्चर देखी तो एक लड़का, आँखों में आंसू, पीछे किसी का अंतिम संस्कार हो रहा था और स्टेटस था :- Felling Sad death of Dada ji
अरे अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाली पीढियां तेरहवीं भी फेसबुक पर ही कर दिया करेगी।
ये सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रभाव ही है की कल तक सर उठा कर चलने वाले लोग अब सर झुका के चलने लगे है। इसका प्रयोग एक नशीली वस्तु की तरह हो रहा है। इस हिसाब से फेसबुक वालों को लॉगिन पेज पर वार्निंग लिख कर डालनी चाहिए :- Facebook is dangerous for your personal life. इसकी वास्तविकता का अंदाजा आप यहाँ से लगा सकते हैं कि एक पति पत्नी सात फेरों के हो जाने पर भी एक दूसरे को फेसबुक का पासवर्ड देने की हिम्मत नहीं रखते।
वैसे तो लगभग सब जान-पहचान वाले ही मिलते हैं लेकिन कुछ नाम ऐसे होते हैं जो पूरे फेसबुक पर छाये होते हैं। उन्हीं में से एक नाम है एंजेल प्रिया। ये है कौन इसके बारे में आज तक पता तो नहीं चला लेकिन अगर कभी फेसबुक पर पुलिस स्टेशन खुला तो इसकी जांच जरूर की जाएगी। इनमें से आधे तो एंजेल प्रिया के रूप में वो शख्स होते हैं अपनी ही बिरादरी के लोगों में दिलचस्पी रखते हैं।
एक आम आदमी से लेकर महान ज्ञानी तक फेसबुक पर अवेलेबल हैं। जहाँ इसके फायदे हैं वहीं इसके कुछ लोगों के लिए स्पेशल फायदे हैं। एक दिन जब मैं फेसबुक चेक कर रहा तो पता चला हमारे पड़ोसी शर्मा जी के यहाँ कुछ दिन पहले चोरी हो गई। चोरी पूरी तसल्ली से की गयी थी। शर्मा जी उस समय सपरिवार नैनीताल गए हुए थे। जब वापस आये तो देख कर बहुत दुःख पहुंचा उनको। हैरानी तो तब हुयी जब उन्होंने पुलिस स्टेशन जाने से पहले फसबुक पर स्टेटस डाला :-
Thief stole everything. Feeling frustrated.
ये तो कुछ भी नहीं फिर जो कमेंट आये वो तो स्टेटस से भी ज्यादा खतरनाक थे :-
1. Sharma ji keep patience and go to police station.
2. Kab hua sharma ji aapne pahle kyun nhi bataya.
3. Sab achhe ke liye hota hai sharma ji…..
अब समझ ये नहीं आ रहा था कि लोग दर्द बाँट रहे थे या शर्मा जी को बेवक़ूफ़ साबित जार रहे थे। खैर जैसे तैसे चोर पकडे गए तो बहुत ही हैरानीजनक खुलासा हुआ।
चोरों ने बताया कि उन्होंने चोरी की योजना तब बनायीं थी जब उन्होंने ने शर्मा जी के फेसबुक स्टेटस को देखा था :-
Enjoying in Nainital with whole family.
उधर शर्मा जी एन्जॉय कर रहे थे इधर चोरों ने एन्जॉय करने का प्लान बनाया। लेकिन पकडे गए अपनी गलती से। जज़्बाती होकर चोरों ने भी फेसबुक कर चोरी करते समय की पिक्चर अपलोड कर दी थी।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रभाव के हालात अब कण्ट्रोल से बाहर हो गए हैं। अब तो अगर बाबा रामदेव कोई आयुर्वेदिक एप्प निकालें तभी कोई हल निकल सकता है। हो सकता है आने वाले समय में डिजिटल इंडिया के तहत फसबुक वालों के लिए कोई स्कीम चला दी जाये।
ऐसा भी हो सकता है कि आधार कार्ड, वोटर कार्ड की जगह फेसबुक की आई डी ही लेले। लेकिन मैं ये सब क्यों सोच रहा हूँ। याद आया मुझे तो फेसबुक का स्टेटस चेक करना है। मिलता हूँ बाद में।
उम्मीद है ये मजेदार व्यंग्य आपको पसंद आई होगी।
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धन्यवाद।
1 comment
Great work sir jee 🙏🙏🙏🙏