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सिकंदर महान एक ऐसा राजा जो अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध था। उसने जीवन में कभी हार नहीं मानी और जो प्राप्त करना चाहा उसे प्राप्त किया। सिकंदर ने बहादुरी की एक ऐसी मिसाल पेश की जो शायद आज तक कोई नहीं कर सका। उसने अपने जीवन में ऐसे-ऐसे कार्य किये जिसकी कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था। उसमें एक असीम शक्ति थी जिसके कारन उसने अपना एक विशाल साम्राज्य तो स्थापित किया ही साथ ही कई लोगों के दिलों में एक खास जगह भी बनायीं। आइये जानते हैं उसी सिकंदर की जिंदगी से कुछ दिलचस्प किस्से :-
सिकंदर की जिंदगी से कुछ दिलचस्प किस्से
सिकंदर का एक प्रिय घोड़ा था बुसिफेलस। सिकंदर की जिंदगी में यह घोड़ा हर महत्वपूर्ण क्षणों में सिकंदर के साथ रहा। लेकिन सिकंदर का यह प्रिय घोड़ा ऐसे ही नहीं बन गया था।
एक बार कुछ घोड़े के व्यापारी अपने घोड़े बेचने फिलिप के पास आये। फिलिप को यह घोडा बहुत पसंद आया परन्तु कोई भी घुड़सवार इस घोड़े को काबू न कर पाया। काफी प्रयास के बाद अब सब असफल रहे तो घोड़े के व्यापारी घोड़ों को लेकर वापिस जाने लगे। तभी सिकंदर बोला,
“बड़े शर्म की बात है कि इतने शानदार घोड़े को काबू में न पाने के कारन हमें खोना पड़ रहा है।”
सिकंदर की इस बात पर राजा फिलिप ने कोई ध्यान न दिया। सिकंदर बार-बार इसी बात पर जोर देने लगा तो उसके पिता फिलिप बोले,
“जब इतने कुशल लोगों में से कोई इस घोड़े पर नियंत्रण नहीं पा सका तो तुम ये दिखने का प्रयास कर रहे हो कि तुम ही श्रेष्ठ हो और तुम्हारे जैसा कोई नहीं?”
“यकीनन, मैं इस घोड़े को काबू में कर सकता हूँ और इस पर सवारी भी कर सकता हूँ।”
यह सुन कर सब हंस पड़े। घोड़े की कीमत की शर्त लगा कर सिकंदर ने अपनी ताकत और कुशाग्रता आजमाने का मौका पा लिया।
सिकंदर ने ध्यान दिया तो पाया की बुसिफेलस अपनी ही परछाईं से डर रहा था। सिकंदर ने उसको उठा कर उसका मुंह उस तरफ कर दिया जहाँ से उसे अपनी परछाईं न दिखाई दे। धीरे-धीरे उसके साथ चलने लगा। जब भी घोड़ा बेचैन होता या डरता तो सिकंदर प्यार से उसे थपथपा देता।
ऐसा करते-करते अचानक से सिकंदर उस घोड़े की पीठ पर बैठ गया और मजबूती से उसकी लगाम पकड़ ली। वह उस पर तब तक सवारी करता रहा जब तक घोड़े ने सिकंदर को अपना स्वामी स्वीकार न कर लिया।
सिकंदर के घोड़े पर बैठ कर दूर चले जाने के कारन सब घबरा रहे थे। लेकिन जैसे ही सबने सिकंदर को घोड़े पर वापस आते देखा सब हैरान रह गए और सिकंदर के पिता की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए।
बचपन से ही इतना दृढ निश्चयी होने के कारन ही सिकंदर एक महान राजा बनने की ओर अग्रसर हो सका। सिकंदर कभी भी किसी भी परिस्थिति में घबराता नहीं था और कोशिश करता था की वह खुद दूसरों के लिए मिसाल पेश करे। किसीको खतरे में डालने से पहले उसे अपनी उदाहरण दे सके। ऐसी ही एक घटना है जब एक दिन सिकंदर अपने पुराने अध्यापक लाइसीमाकस की वजह से अपनी बाकी फ़ौज से पीछे छूट गया।
फ़ौज से अलग हो जाने के बाद सिकंदर का सामना सर्दी से हुआ और उसके पास खुद को बचाने के लिए कोई आग भी नहीं थी। तभी उसकी नजर दूर जलती आग पर गयी। पर बाद में उसे पता चला की वो आग दुश्मनों ने जला रखी थी। सिकंदर को उस आग तक पहुंचना था। सिकंदर ने अपने साथ वाले आदमी को वहीं खड़ा किया और खुद चला गया आग लेने।
सिकंदर हवा की तरह वहां पहुंचा और अपने चाक़ू से दो दुश्मनों को मार गिराया। उनको मरने के बाद सिकंदर ने एक जलती हुयी लकड़ी उठायी और अपन आदमी के पास वापस आ गया। सिकंदर हमेशा अपने सैनिकों और दूसरे लोगों को अपनी उदाहरण देकर ही प्रोत्साहित करता था।
प्रतिनिधि होना भी ऐसा ही चाहिए जो अपने लोगों से काम न करवा के उनके साथ काम करे। आगे बढ़ कर नहीं उनके साथ कंधे से कन्धा मिला कर चले। ऐसा ही था सिकंदर तभी उसकी सेना के आगे कोई भी दुश्मन टिक नहीं पाता था।
इतना ही नहीं बहादुर होने के साथ-साथ सिकंदर एक दयालु किस्म का इन्सान भी था। वह अपने सैनिकों और दूसरे लोगों के साथ दयाभाव से ही पेश आता था। जिसकी जानकारी इस घटना से मिलती है।
एक बार सिकंदर का एक सैनिक एक घोड़े को लेकर चला रहा था। उस घोड़े पर खजाना लदा हुआ था। काफी चलने के बाद घोड़ा थक गया। अब उस सैनिक को यह महसूस हुआ तो उसने घोड़े पर से थोड़ा सा खजाना उतार कर खुद उठा लिया। लेकिन कुछ दूर जाने के बाद वह खुद भी थक गया और उसके कदम लड़खड़ाने लगे। यह देख सिकंदर ने उस से इस हालत का कारन पूछा।
उस सैनिक ने सब कुछ बता दिया कि घोड़े के थक आने के कारन उसने कुछ खाजन खुद उठा लिया था और इस वजह से वह भी थक गया है। सैनिक की इस बहादुरी पर प्रसन्न होकर सिकंदर ने कहा,
“धैर्य मत छोड़ो, तुम जितना भी खजाना ले जा सकते हो ली आओ और अपने कैंप में अपने लिए रख लो।”
इस तरह की घटनाओं से सैनिकों का उत्साह ही बढ़ जाता था। यहाँ से एक सिक्षा यह भी मिलती है कि जीवन में सब कुछ धन ही नहीं होता। इस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है दयाभावना।
जैसा की हम पहले ही बता चुके हैं की सिकंदर हमेशा अपने सैनिकों के साथ ही चलता था। जिस परिस्थिति में उसके सैनिक रहते थे वह भी उसी परिस्थिति में रहना स्वीकार करता था। वह राजा होने का कभी भी अनुचित लाभ नहीं उठाता था।
एक बार सिकंदर को 11 दिन में 400 मील की यात्रा करने के बाद कहीं पीने के लिए पानी न मिला। सभी सैनिकों और जानवरों न की मरने वाली हालत हो गयी। तभी कुछ लोग एक हेलमेट में सिकंदर के लिए पानी लेकर आये।
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“यह पानी सबके लिए पर्याप्त न होगा और मैं पानी पी लूँगा तो दूसरे लोग बेहोश हो जाएँगे।”
बस फिर क्या था सिकंदर के मुंह से ये शब्द सुनते ही उसकी सेना में एक गज़ब की स्फूर्ति आ गयी और भूख प्यास भूल कर सब फिर से सिकंदर के साथ चलने लगे।
दोस्तों, जिंदगी में कुछ भी अगर आसानी से हासिल हो सकता तो शायद कोई मेहनत करने की सोचता ही नहीं। जिंदगी हमें कुछ नहीं देती। ये हम पर ही निर्भर करता है कि हम जिंदगी से क्या ले सकते हैं। सिकंदर चाहता तो अपने पिता की संपत्ति पर ऐशोआराम का जीवन व्यतीत कर सकता था। परन्तु फिर वो भी एक गुमनाम शासक की तरह ये दुनिया छोड़ जाता। उसने अपनी विजयगाथा अपने आप लिखी।
जब उसने देखा कि उसके पिता आस-पास के राज्य जीत चुके हैं तो उसने और आगे बढ़ कर जीत प्राप्त करनी शुरू की। इसी तरह हम भी चाहें तो किसी से भी आगे जा सकते हैं। इस जीवन में आगे बढ़ने के लिए रस्ते बहुत लम्बे हैं। आहार किसी चीज की जरूरत है तो वह है इच्छाशक्ति की।
अगर आप भी सिकंदर जैसा महान बनना चाहते हैं तो खुद को अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित कीजिये और अप्नेमन पर नियंत्रण प्राप्त कीजिये। दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं है जो असंभव हो। अगर किसी चीज की जरूरत है तो वह है आपके द्वारा उस लक्ष्य को प्राप्त करने की जिद।
दोस्तों आपको सिकंदर की जिंदगी से कुछ दिलचस्प किस्से कैसे लगे और आपने इन किस्सों से क्या सीखा हमें जरूर बताएं।
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धन्यवाद।
8 comments
Thanks for great think alecjender niketer of mesidoniya king
hme ye kahani padh kr hme kuchh krne ka junun sa lgne lga am so happy
बहुत ही अच्छे विचार दिए हैं ;जिसके आधार पर ज़िन्दगी का मक़सद समझ सके
good portal
Thanks Harendra yadav ji….
धन्यवाद मार्गदर्शन के लिए
बहुत ही बढ़िया article है ….. ऐसे ही लिखते रहिये और मार्गदर्शन करते रहिये ….. शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
धन्यवाद HindIndia जी……