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समय की पहचान कविता – हमारे जीवन में हम जो कुछ भी प्राप्त करत हैं उसकी कीमत हमारा समय ही होता है। अगर हम कमाते भी हैं तो अपना समय बेच कर। इसलिए यदि हम समय का सदुपयोग करें तो हम अपने जीवन में बड़े से बड़ा लक्ष्य भी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा ही संदेश दे रही है कवि सियारामशरण गुप्त जी की ” समय की पहचान कविता ” :-
समय की पहचान कविता
उद्योगी को कहाँ नहीं सुसमय मिल जाता,
समय नष्ट कर कहीं सौख्य कोई भी पाता।
आलस ही यह करा रहा है सभी बहाने,
जो करना है, करो अभी, कल हो क्या जाने?
पा सकते फिर नहीं कभी तुम इसको खोके
चाहो तुम क्यों नहीं चक्रवर्ती भी होके।
कर सकता कब कौन द्रव्य है इसकी समता,
फिर भी तुमको नहीं ज़रा है इसकी चिंता।।
समय ईश का दिया हुआ अति अनुपम धन है,
यही समय ही अहो तुम्हारा शुभ जीवन है।
तुच्छ कभी तुम नहीं एक पल को भी जानो,
पल-पल से ही बना हुआ जीवन को मानो।।
करना है जो काम, उसी में चित्त लगा दो,
आत्मा पर विश्वास करो, संदेह भगा दो।।
ऐसा सुसमय भला और कब तुम पाओगे,
खोकर पीछे इसे सर्वथा पछताओगे।।
– कवि सियारामशरण गुप्त
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