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रहिमन धागा प्रेम का : रहिमन (रहीम) के 45 दोहे अर्थ सहित

by Sandeep Kumar Singh
22 minutes read

रहिमन धागा प्रेम का : परिचय

रहिमन धागा प्रेम का – रहीम जी का एक बहुत ही प्रसिद्ध दोहा है। रहीम जी का पूरा नाम अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ था। उन्होंने अपने दोहों की रचना में अपना नाम ” रहीम ” और ” रहिमन ” दोनों प्रयोग किया है। उनके कुछ दोहे रहीम के नाम से प्रसिद्ध है और कुछ दोहे रहिमन के नाम से प्रसिद्ध है। जैसे की, रहिमन धागा प्रेम क्या, रहिमन पानी रखिये, आदि।

इस दोहा संग्रह जिसको हमने नाम दिया है “रहिमन धागा प्रेम का” में हमसे रहीम जी के रहिमन नाम वाले 40 दोहों का सग्रह किया है जो आप पढ़ सकते है हिंदी अर्थ के साथ। उनके बारे में अधिक जानने के लिए रहीम दास की जीवनी पढ़े।

रहिमन के दोहे अर्थ सहित

रहिमन धागा प्रेम का : रहिमन के दोहे

दोहा 1 – 5 : Rahiman Dhaga Prem Ka

1.
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

अर्थ :- रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।

2.
‘रहिमन’ पैड़ा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
बिलछत पांव पिपीलिको, लोग लदावत बैल॥

अर्थ : प्रेम की गली में कितनी ज्यादा फिसलन है! चींटी के भी पैर फिसल जाते हैं इस पर। और, हम लोगों को तो देखो, जो बैल लादकर चलने की सोचते है!

3.
‘रहिमन’ प्रीति सराहिये, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥

अर्थ : सराहना ऐसे ही प्रेम की की जाय जिसमें अन्तर न रह जाय। चूना और हल्दी मिलकर अपना-अपना रंग छोड़ देते है।

4.
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।

अर्थ :- यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।

5.
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं।
रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलिबो पाठक माहिं।।

अर्थ :- प्रेम का मार्ग हर कोई नहीं तय कर सकता। बड़ा कठिन है उस पर चलना, जैसे मोम के बने घोड़े पर सवार हो आग पर चलना।

दोहा 6 – 10 : Rahiman Pani Rakhiye

6.
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

अर्थ :- इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है।

रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।

7.
करम हीन रहिमन लखो, धँसो बड़े घर चोर।
चिंतत ही बड़ लाभ के, जागत ह्वै गो भोर।।

अर्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि कर्महीन व्यक्ति सपने में एक बड़े घर में चोरी करने जाता है। वह सोचता है कि उस संपन्न घर से काफ़ी धन-दौलत पर हाथ साफ़ कर लेगा। वह मन-ही-मन इस बात पर अत्यंत प्रसन्न होने लगा, परंतु सपना देखते देखते सुबह हो गई, अर्थात जाग जाने से उसका सपना टूट गया। इस तरह उसकी सारी ख़ुशी काफ़ूर हो गई। कोरे सपने देखने से नहीं, बल्कि कर्म करने से ही मनचाहा फल मिलता है।

8.
अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि।।

अमरबेल की जड़ नहीं होती, वह बिना जड़ के फलती फूलती है। प्रभु बिना जड़ वाली उस लता का पालन पोषण करते हैं। ऐसे प्रभु को छोड़कर अपनी रक्षा के लिए किसी और को खोजने की क्या आवश्यकता है! उस पर ही विश्वस रखना चाहिए।

9.
कागद को सो पूतरा, सहजहिं में घुल जाय।
‘रहिमन’ यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत जाय।।

अर्थ :- शरीर यह ऐसा हैं, जैसे काग़ज़ का पुतला, जो देखते-देखते घुल जाता है। पर यह अचरज तो देखो कि यह साँस लेता है, और दिन-रात लेता रहता हैं।

10.
अरज गरज मानैं नहीं, रहिमन ए जन चारि।
रिनिया, राजा, माँगता, काम आतुरी नार॥

अर्थ :- ऋणी, राजा, भिखारी और कामातुर नारी ये चार लोग न तो विनती से मानते हैं और न ही धमकाने से मानते हैं।

दोहा 11 – 15 : Rahiman Is Sansar Me

11.
काज परे कछु और है, काज सरे कछु और।
रहिमन भंवरी के भए, नदी सिरावत मौर।।

अर्थ :- काम पड़ने पर लोग कुछ दूसरी तरह व्यवहार करते हैं, और काम निकलते ही बदल जाते हैं, रहीमदास जी इस व्यवहार की तुलना शादी के समय सर पर लगाए हुये मौर यानी मुकुट से करते हैं जिसके बगैर शादी का होना संभव नहीं था, लेकिन विवाह सम्पन्न होते ही उस मुकुट को जो सर पर विराजमान था, नदी की धारा में प्रवाहित कर दिया जाता है।

12.
कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छाँह।
रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम बाँह।।

अर्थ :- मुझे स्वर्ग का सुख नहीं चाहिए और कल्पवृक्ष की छाँव से भी कोई लेना-देना नहीं है। रहीम कहते हैं, मुझे वह ढाक का वृक्ष अति प्रिय है, जहाँ मैं अपने प्रीतम के गले में बाँह डालकर बैठ सकूँ।

13.
काह कामरी पामड़ी, जाड़ गए से काज ।
‘रहिमन’ भूख बुताइए, कैस्यो मिले अनाज।।

अर्थ :- क्या तो कम्बल और क्या मखमल का कपड़ा। असल में काम का तो वही है, जिससे कि जाड़ा चला जाय। खाने को चाहे जैसा अनाज मिल जाय, उससे भूख बुझनी चाहिए।

14.
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।

अर्थ :- खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।

15.
‘रहिमन’ कोऊ का करै, ज्वारी, चोर, लबार।
जो पत-राखनहार है, माखन-चाखनहार।।

अर्थ :- जिसकी लाज रखनेवाले माखन के चाखनहार अर्थात रसास्वादन लेनेवाले स्वयं श्रीकृष्ण हैं,उसका कौन क्या बिगाड़ सकता है? न तो कोई जुआरी उसे हरा सकता है, न कोई चोर उसकी किसी वस्तु को चुरा सकता है और न कोई लफंगा उसके साथ असभ्यता का व्यवहार कर सकता है। 

दोहा 16 – 20 : Rahiman Dekhi Baden Ko

16.
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

अर्थ :- रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए। जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहां तलवार बेचारी क्या कर सकती है?

17.
‘रहिमन’ गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं।
आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहिं।।

अर्थ : जबकि गली सांकरी है, तो उसमें एक साथ दो जने कैसे जा सकते है? यदि तेरी खुदी ने सारी ही जगह घेर ली तो हरि के लिए वहां कहां ठौर है? और, हरि उस गली में यदि आ पैठे तो फिर साथ-साथ खुदी का गुजारा वहां कैसे होगा? मन ही वह प्रेम की गली है, जहां अहंकार और भगवान् एक साथ नहीं गुजर सकते, एक साथ नहीं रह सकते।

18.
रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

अर्थ :- रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।

19.
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥

अर्थ :- एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है। वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है।

20.
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ :- मनुष्य को सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।

दोहा 21 – 25 : Rahiman Nij Sampati Bina

21.
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।

अर्थ :- रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।

22.
गहि सरनागति राम की, भव सागर की नाव। 
रहिमन जगत उधार कर, और न कछु उपाव।। 

अर्थ :- रहीम कहते हैं की इस संसार रूपी सागर को पार करने के लिए नाव की आवश्यकता होती है। जिसे राम के शरण में जाकर ही प्राप्त किया जा सकता है। इसका कोई और दूसरा उपाय नहीं है।

23.
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस।
जा पर बिपदा परत है, सो आवत यह देश।।

अर्थ :- रहीमदास जी कहते हैं कि चित्रकूट में अयोध्या के राजा राम आकर रहे थे जब उन्हें 14 वर्षों के वनवास प्राप्त हुआ था। इस स्थान की याद दुःख में ही आती है, जिस पर भी विपत्ति आती है वह शांति पाने के लिए इसी प्रदेश में खिंचा चला आता है।

24.
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।

अर्थ: छोटों को उत्पात (बदमाशी) करने पर बड़ों को उन्हें क्षमा करना ही शोभा देता है और अर्थात अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। भृगु ने भगवान् विष्णु को लात मारी तो भगवान् विष्णु का कुछ घटा नहीं अपितु उनकी महानता के ही दर्शन हुए ।

25.
जब लगि वित्त न आपुने , तब लगि मित्र न होय ।
‘रहिमन’ अंबुज अंबु बिनु, रवि नाहिंन हित होय ।।

अर्थ :- जब तक हमारे पास धन नहीं होता है तब तक हमारा कोई मित्र नहीं होता। इसी तरह बिना जल के सूर्य भी कमल से अपनी मित्रता तोड़ लेता है।

दोहा 26 – 30 : Rahiman Chup Ho Baithiye

26.
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ।।

अर्थ :- रहीम दास जी कहते हैं जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।

27.
अधम वचन काको फल्यो, बैठि ताड़ की छांह।
रहिमन काम न आय है, ये नीरस जग मांह।।

अर्थ :- संत रहीम दास जी कहते हैं जैसे ताड़ की छाया में बैठने से कोई फल नहीं मिलता, इसी प्रकार निंदनीय वचन फलदायी नहीं होते। जो मनुष्य संसार में आकर किसी के काम नहीं आते, वे मनुष्य संसार में रसहीन होते हैं।

28.
अनकीन्हीं बातें करै, सोवत जागे जोय।
ताहि सिखाये जगायेबो, रहिमन उचित न होय।।

अर्थ :- रहीम जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अकथनीय वार्तालाप करे और जागता हुआ भी सोता हो, ऐसे मनुष्य को जागने की शिक्षा देना सही नहीं है।

29.
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।

अर्थ :- कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है।

30.
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।।

अर्थ :- दुनिया जानती है कि खैरियत, खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और मदिरा का नशा छुपाए नहीं छुपता है।

दोहा 31 – 35 : Rahiman Nij Man Ki Vyatha

31.
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।।

अर्थ :- अपने दुख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दुख को कोई बांटता है।

32.
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह​।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह।।

अर्थ :- इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। वो कहते हैं मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं सकता और वह पानी से अलग होते ही मर जाता है।

33.
रहिमन असमय के परे, हित अनहित ह्वै जाय ।
बधिक बधै मृग बान सों, रूधिरै देत बताय ॥

अर्थ :- समय विपरीत होने पर हित भी अनहित में बदल जाता है। जैसे एक शिकारी के बाण से घायल हिरन अपनी जान बचाने के लिए जंगल में छिप जाता है लेकिन उसके बहता हुए खून के निशान से शिकारी  को उसका पता चल जाता है। इस तरह प्राणों के लिए जरूरी खून भी उसके लिए जानलेवा साबित होता है।

34.
समय दशा कुल देखि कै, सबै करत सनमान ।
‘रहिमन’ दीन अनाथ को, तुम बिन को भगवान ॥ 

अर्थ :- समय और आपकी अच्छी दशा देखा कर सभी आपको मान-सम्मान देते हैं। वहीं दीन और अनाथ लोगों का भगवान् के सिवा कोई नहीं होता और न ही कोई उनका सम्मान करता है।

35.
समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक नहिं चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।

अर्थ :- रहीमदास जी कहते हैं कि समय जैसा लाभप्रद कुछ भी नहीं है और न ही इससे चूकने से बड़ी कोई चूक है। यदि बुद्धिमान व्यक्ति समय से चूक जाए अर्थात समय का सही लाभ न उठा पाए तो उसका दुःख उसे हमेशा लगा रहता है।

दोहा 36 – 40 : Rahiman Ve Nar Mar Chuke

36.
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।।

अर्थ :- जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगने के लिए जाता है वो तो मरे हुए हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुंह से कुछ भी नहीं निकलता है।

37.
रहिमन’ कुटिल कुठार ज्यों, करि डारत द्वै टूक ।
चतुरन के कसकत रहै, समय चूक की हूक ॥

अर्थ :- जैसे एक कुठार ( कुल्हाड़ी ) लकड़ी के दो टुकड़े कर देती है। उसी तरह बुद्धिमान व्यक्ति जब समय चूक जाता है ( मौके का फायदा नहीं उठा पाता ), तो उसका पछतावा उसे हमेशा कष्ट देता रहता है। उसकी कसक कुठार बन कर कलेजे के दो टुकड़े कर देती है।

38.
दादुर, मोर, किसान मन, लग्यो रहै घन माहिं।
रहिमन चातक रटनिहुं, सरवर को कोउ नाहिं।।

अर्थ :- रहीम कहते हैं, मेढ़क, मोर और किसान का मन बादलों में लगा रहता है। जैसे ही गगन में मेघ छाते हैं, इन सबमें मानो नए प्राण आ जाते हैं। मेघों के प्रति लगन की इनकी तुलना चातक से नहीं की जा सकती। मेघ देखते ही चातक का विरही मन पिया की स्मृति में व्याकुल हो जाता है। उसकी व्याकुलता से सिद्ध हो जाता है कि मेघों में जितना उसका मन लगा होता है, किसी और का नहीं।

39.
आप न काहू काम के, डार पात फल फूल।
औरन को रोकत फिरै, ‘रहिमन’ पेड़ बबूल।।

अर्थ :- बबूल का पेड़ खुद अपने लिए भी किस काम का? न तो डालें हैं, न पत्ते हैं और न फल और फूल ही। दूसरों को भी रोक लेता है, उन्हें आगे नहीं बढ़ने देता।

40.
उरग तुरंग नारी नृपति, नीच जाति हथियार।
रहिमन इन्हें संभालिए, पलटत लगै न बार।।

अर्थ :- रहीम का सुझाव है कि मुसीबत में फंसे नाग, अधिक परेशान किए गए घोड़े, प्रताड़ित और पीड़ित स्त्री, मन ही मन क्रोध की आग की आग मे जल रहे राजा, सताए हुये नीच व्यक्ति और तेज धार वाला हथियार से हमेशा दूरी बनाये रखनी चाहिए। ये सभी घातक और खतरनाक होते हैं जो जानलेवा साबित हो सकते हैं। अतः प्रताड़ित और अपमानित प्राणी से सावधान रहें, ये मौका मिलते ही पलटकर बदले का वार करेंगें जो आपका अंत कर सकता है।

41.
अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय।
जिन आँखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय।।

अर्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि इन आँखों में काजल और सुरमा लगाने से कोई फ़ायदा नहीं है मैंने तो जब से इन आँखों में ईश्वर को बसा लिया है एवं इनसे ईश्वर के दर्शन किए हैं, तब से मैं धनी हो गया हूँ। अर्थात् व्यर्थ के सौन्दर्य प्रसाधन छोड़कर अपने नेत्रों में ईश्वर को बसाइए, यह जीवन धनी हो जाएगा।

42.
जे सुलगे ते बुझ गए, बुझे ते सुलगे नाहिं।
‘रहिमन’ दाहे प्रेम के, बुझि-बुझिकैं सुलगाहिं॥

अर्थ : आग में पड़कर लकड़ी सुलग-सुलगकर बुझ जाती है, बुझकर वह फिर सुलगती नहीं। लेकिन प्रेम की आग में दग्ध हो जाने वाले प्रेमीजन बुझकर भी सुलगते रहते है। 

43.
गरज आपनी आप सों, रहिमन कही न जाय। 
जैसे कुल की कुलवधू, पर घर जात लजाय
।।

अर्थ :- स्वाभिमानी व्यक्ति अपने घनिष्ठ मित्र या सम्बन्धी से भी जरुरत पड़ने पर कुछ मांग (कह) नहीं पाते. जिस प्रकार घर की बहू (कुलवधू) को किसी दूसरे के घर जाने में लज्जा (शर्म) महसूस होती है.

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