Home » Apratim Post » पृथ्वी और नारी कविता – यह धरती भी नारी है | Prithvi Aur Nari Kavita

पृथ्वी और नारी कविता – यह धरती भी नारी है | Prithvi Aur Nari Kavita

1 minutes read

धरती — जो बिना किसी शिकायत के, सदियों से हमें जीवन दे रही है। वह मौन रहकर भी सबकुछ सहती है, और जब वक्त आता है, तो विद्रोहिणी बनकर अपना अस्तित्व याद दिलाती है। यह “पृथ्वी और नारी कविता” उसी अदम्य शक्ति, सहनशीलता और सृजनशीलता को समर्पित है जो धरती और नारी — दोनों में समान रूप से विद्यमान है।

पृथ्वी और नारी कविता

Prithvi Aur Nari Kavita

पता नहीं कब से
घूम रही है पृथ्वी
बिना किए कोई शोर
चुपचाप,
रात – दिन लगी हुई
अपने काम में
न सुख की हँसी
और न
दुःख का विलाप।

घूम रही है
कोल्हू के बैल – सी
किसी अनजान के
इशारों पर
अपने को भूली,
ऋतुओं का
आना – जाना भी
नहीं बदलता
उसकी जीवन – चर्या
बस
होकर रह जाता है
स्पन्दन मामूली।

करते हैं उस पर
कभी अपने
तो कभी पराये
बार-बार प्रहार,
कभी सह जाती वह
सब कुछ हो मौन
तो कभी
बनकर विद्रोहिणी
करती भी है प्रतिकार।

कई कई बार
उजड़ी – बसी
उठी – धँसी
पर मानी नहीं
किस्मत से
अपनी हार,
दबाकर सीने में
ज्वालामुखियाँ
देती रही
हरियाली का
औरों को उपहार।

कभी – कभी-कभी
लगता है मुझको
यह धरती भी नारी है,
जो जीवन के
संघर्षों में
अब तक
कभी नहीं हारी है।

पढ़िए नारी को समर्पित यह रचनाएं :-

धरती हो या नारी — दोनों ही जीवन का आधार हैं। वे सहती हैं, सृजन करती हैं, और फिर भी अपने अस्तित्व की पहचान में कभी नहीं डगमगातीं। यह कविता हमें याद दिलाती है कि मौन भी एक शक्ति है — और सृजन, सबसे बड़ा प्रतिकार।

आपके लिए खास:

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.