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अहंकार पर कविता में अहंकार से बचने की सलाह दी गई है। संसार में छोटे-बड़े सभी प्राणियों और पदार्थों का महत्त्व होता है, अतः हमें अपने को ही सर्वश्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। जुगनू, तारे, चन्द्रमा, सूरज सभी अपनी अपनी क्षमता के अनुसार जगत को प्रकाशित कर रहे हैं। किसी का यह सोचना अनुचित है कि उसका ही प्रकाश सबसे अच्छा है और दुनिया केवल उसके प्रकाश से ही रोशन हो रही है। हमें घमण्ड से दूर रहकर सबको महत्व प्रदान करना चाहिए।
अहंकार पर कविता
सोच रहा था बैठा जुगनू
अपने मन ही मन,
करे उजाला उसका ही बस
दुनिया को रोशन।
जहाँ पहुँचता उसी जगह को
कर देता उजली,
अपनी जगमग करती दुनिया
लगती उसे भली।
तभी निकलते आसमान में
टिमटिम कर तारे,
बाँट रहे हल्का उजियारा
मिल जग को सारे।
रहा न जुगनू का प्रकाश अब
वैसा चमकीला,
और न ही पहले -सा था वह
जुगनू गर्वीला।
बड़ा समझ अब खुद को तारे
फिरते थे फूले,
हुए घमण्डी अपने आगे
वे सबको भूले।
निकल गई पर अकड़ शीघ्र ही
जब आया चन्दा,
रूप हो गया सब तारों का
पल भर में मन्दा।
चमक रहा अब नभ में चन्दा
बनकर अभिमानी,
लगा सोचने नहीं चमक में
उसका है सानी।
मद में डूबा रहा लगाता
वह नभ में फेरा,
पूर्व दिशा में तभी सूर्य ने
आ डाला डेरा।
हुआ सवेरा रूप चन्द्र का
लगता था फीका,
खिली धूप ने दिन के माथे
लगा दिया टीका।
जान चुका था सूरज अब तक
सबकी है सीमा,
आज चमकता तेज वही कल
हो जाता धीमा।
दिन भर चमका सूर्य शाम को
पश्चिम में डूबा ,
कर्तव्यों के पालन में पर
तनिक नहीं ऊबा।
क्या जुगनू क्या सूरज सबका
निश्चित परिसीमन,
अहंकार फिर बिना बात क्यों
पाले मानव -मन।
कुछ दूरी तक सभी उजाले
खींच रहे रेखा,
किन्तु घमण्डी का सिर हमने
नीचा ही देखा।
इस कविता का विडियो यहाँ देखें :-
पढ़िए :- अहंकार पर कहानी | एक सेठ की गुजराती लोक कथा
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