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Ped Se Lipti Bel Par Kavita बालोपयोगी ” पेड़ से लिपटी बेल पर कविता ” में पेड़ से लिपटी एक बेल के माध्यम से जीवन को उल्लास और उमंग के साथ जीने की सीख दी गई है। एक पतली – सी बेल,बदलते मौसम की मार सहकर भी जीवन को हँसते – हँसते बिताती है। यह अपने जीवन के छोटे होने की चिन्ता कभी नहीं करती और जब तक जीवित रहती है औरों को फूल और छाया के रूप में प्रसन्नता देने का प्रयास करती है। बेल को देखकर हमें नए विश्वास के साथ जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।
Ped Se Lipti Bel Par Kavita
पेड़ से लिपटी बेल पर कविता
देखो ! कैसे लिपट पेड़ से
ऊपर बढ़ती जाती बेल,
नहीं देखती पीछे मुड़कर
नभ से हाथ मिलाती बेल।
सर्दी गर्मी वर्षा से भी
तनिक नहीं घबराती बेल,
तेज हवा के झोंकों में तो
मस्ती से लहराती बेल।
चिड़िया आ जब नीड़ बनाती
तब मन में हर्षाती बेल,
मधुमक्खी भँवरे जब आते
फूली नहीं समाती बेल।
थोड़ी – सी भी जगह मिले तो
अपने को फैलाती बेल,
जिधर मोड़ दो मुड़े उधर को
बच्ची – सी मुस्काती बेल।
हाथ हिला कोमल पत्तों के
हमको पास बुलाती बेल,
शीतल छाया से तन मन की
सारी थकन मिटाती बेल।
इसको काटो – छाँटो तो भी
फिर से है हरियाती बेल,
चार दिनों के जीवन में भी
हँस – हँस फूल खिलाती बेल।
मुरझाने से कभी न डरती
गीत खुशी के गाती बेल,
जीवन को जी – भर जीने का
नव विश्वास जगाती बेल।
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