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नारी पर बढ़ रहे अत्याचार से चिंतित सच्चे मर्द के दिल का हाल शब्दों में बयान करती नारी शोषण पर कविता :- कैसे धीरज धर लूं मैं
नारी शोषण पर कविता
मुट्ठी में स्वप्नि आकाश लिए
बेटी तो पैदा कर लूं मैं,
हर एक मर्द से हारी हूँ
कैसे धीरज धर लूं मैं।
कुछ कोख में मारी जाती है
कुछ जन्मोपरांत मर जाती है
जब रखा जाता है अशिक्षित
जीवन भर सताई जाती है,
कुछ दहेज प्रथा से मर जाती
कुछ जिंदा जला दी जाती है
कुछ तीन तलाक के कहर
तले, खूनी आँसू बहाती है
कुछ नामर्दों के एसिड से
चेहरे की आब गंवाती है
घुट-घुट कर जीवन जी कर
आखिर अबला बन जाती है
मर्दो की नपुंसकता देखो
बलात्कारी बन कहर ढहाते है
अपमानित कर नारी जाती को
जला जिंदा मार जाते है
नहीं सुरक्षित इस कलयुग में
नारी का अस्तित्व यहाँ
अब मन करता खोल कोख
बेटी को अंदर कर लूं मैं
हर एक मर्द से हारी हूँ
कैसे धीरज धर लूं मैं।
मुट्ठी में स्वप्नि आकाश लिए
बेटी तो पैदा कर लूं मैं,
हर एक मर्द से हारी हूँ
कैसे धीरज धर लूं मैं।
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मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।
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