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मुकद्दर एक ऐसी चीज है जो जब तेज होती है तो आपका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। परन्तु यह मुकद्दर बनता कैसे है? ये वो खुदा की रहमत होती है जो हमने हमारे किये गए कर्मों के अनुसार मिलती है। जब हम संघर्ष की आँधियों में पल कर सफलता प्राप्त करते हैं तो हमारा मुकद्दर खुद-ब-खुद तेज हो जाता है। आइये इसी सन्दर्भ में पढ़ते हैं मुकद्दर पर कविता :-
मुकद्दर पर कविता
बढ़ना है आगे हमको
इस जग पर छा जाना है
अपनी ही मेहनत से हमको
अपना मुकद्दर बनाना है।
न डरना है तूफानों से
हमें जाना है आसमानों पे
न देखें किसी का साथ कभी
न जियें किसी के अहसानों पे,
इस जग को बस अब हमको
अपना हर हुनर दिखाना है
अपनी ही मेहनत से हमको
अपना मुकद्दर बनाना है।
गर हार हुयी तो गम कैसा
जो छूट गया वो दम कैसा
जो भाग गया मैदान से है
वो जीतने में सक्षम कैसा,
रणक्षेत्र में रहकर हमको
दुश्मन को मार भागना है
अपनी ही मेहनत से हमको
अपना मुकद्दर बनाना है।
धीमी न हो रफ़्तार कभी
होगी अपनी जीत तभी
क़दमों में दुनिया होगी
अपने होंगे लोग सभी,
मंजिल पाने की खातिर
संघर्ष का राह अपनाना है
अपनी ही मेहनत से हमको
अपना मुकद्दर बनाना है।
नदिया की भांति बहना है
हमें बस चलते ही रहना है
कितनी भी मुसीबत आये पर
किसी से कुछ न कहना है,
पाकर के सफलता हमको
जग में अपना यश फैलाना है
अपनी ही मेहनत से हमको
अपना मुकद्दर बनाना है।
बढ़ना है आगे हमको
इस जग पर छा जाना है
अपनी ही मेहनत से हमको
अपना मुकद्दर बनाना है।
पढ़िए :- मुकद्दर पर बेहतरीन शायरी
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धन्यवाद।
2 comments
very nice , superb . : 0)
धन्यवाद R.K. जी…