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महाभारत कौरवों और पांडवों के बीच हुए धर्मयुद्ध की कहानी है। इस युद्ध में कौरवों की तरफ से पांडवों के सबसे बड़े भाई ने कर्ण ने हिस्सा लिया था। लेकिन क्या आप जानते हैं इस युद्ध में कौरवों का एक भाई ऐसा भी था जिसने पांडवों की तरफ से युद्ध किया था। सिर्फ युद्ध ही नहीं किया था बल्कि युद्ध के बाद जीवित भी था। आइये जानते हैं उसी वीर योद्धा के बारे में इस लेख ( Yuyutsu Kaun Tha ) “ युयुत्सु कौन था ” :-
युयुत्सु कौन था
ये तो सभी जानते हैं कि धृतराष्ट्र के 100 पुत्र और एक पुत्री थी। लेकिन सभी लोग यह नहीं जानते होंगे कि उनका एक और पुत्र था। जिस समय धृतराष्ट्र की पत्नी 2 साल तक गर्भवती थी। उस समय सुगधा ( Sugadha ) नाम की एक दासी उनकी सेवा में लगी हुयी थी। उसके गर्भ से धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सु का जन्म हुआ। युयुत्सु का जन्म भी उसी दिन हुआ था जिस दिन दुर्योधन का जन्म हुआ था।
युयुत्सु एक धर्मप्रिय व्यक्ति था। वह अन्याय के विरुद्ध था और सच का साथ देता था। जबकि एक और कौरव भाई विकर्ण को छोड़कर सभी कौरव अधर्म के मार्ग पर चलते थे। दासी पुत्र होने और सच का साथ देने के कारण सभी कौरव युयुत्सु को कोई खास महत्त्व नहीं देते थे।
भीम को विष से मारने की योजना जब एक बार विफल हो गयी थी तब दुर्योधन ने एक बार फिर भीम को विष देकर मारने की योजना बनायी थी। उस समय युयुत्सु ने जाकर पांडवों को सब बता दिया था औए भीम के प्राण बचाए थे।
युयुत्सु कौरवों की तरफ से लड़ने वाले 11 महारथियों ( एक साथ 720,000 योद्धाओं से लड़ने में सक्षम ) में से एक था। युयुत्सु ने अपने स्तर पर युद्ध रोकने की पूरी कोशिश की थी। मगर उसकी तो पहले भी कोई नहीं सुनता था। इसलिए सभी कोशिशें बेकार हो गयी।
जब महाभारत का युद्ध आरंभ होने को ही था। उस समय रणक्षेत्र में ही युधिष्ठिर व उनके सभी छोटे भाई भीष्म, द्रोणाचार्य आदि वृद्धजनों का आशीर्वाद लेने गये। आशीर्वाद लेकर लौटते समय युधिष्ठिर ने ऊंची आवाज में कहा की कौरवों की तरफ से कोई भी यदि धर्म की रक्षा की खातिर हमारा साथ देना चाहे तो उसका स्वागत है। यह सुनते ही युयुत्सु कौरवों का पक्ष त्याग कर पांडवों के पक्ष में चला गया।
युद्ध समाप्त होने के बाद बचे हुए योद्धाओं में से एक युयुत्सु भी था। या यूँ भी कह सकते हैं कि युद्ध के बाद कौरवों में से कोई बचा था तो वो युयुत्सु ही बचा था। जिस इन्द्रप्रस्थ की मांग पांडव कौरवों से कर रहे थे। युद्ध समाप्ति के बाद युयुत्सु को इन्द्रप्रस्थ का शासन सौंप दिया गया।
जब पांडवों ने संसार त्यागने के विचार से हिमालय की यात्रा आरंभ की। उस समय हस्तिनापुर का शासन अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को दे दिया गया। और परीक्षित का ध्यान रखने की जिम्मेदारी युयुत्सु को सौंपी गयी।
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