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महाभारत में कौरवों और पांडवों के पितामह भीष्म पितामह के बारे में कौन नहीं जानता? लेकिन क्या आप जानते हैं कि भीष्म पितामह के जन्म का कारण क्या था? आज इस लेख में हम जानेंगे कि भीष्म पितामह कौन थे ? भीष्म पितामह का असली नाम क्या था ? भीष्म पितामह के पिता का नाम क्या था ? भीष्म पितामह का जन्म किस कारण हुआ और भीष्म पितामह कितने भाई थे ?
भीष्म पितामह कौन थे
भीष्म पितामह का असली नाम
भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत है।
भीष्म पितामह के पिता का नाम
भीष्म पितामह के पिता हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे।
भीष्म पितामह कितने भाई थे ?
भीष्म पितामह के बारे में जानने से यह जान लेते हैं कि भीष्म पितामह के कितने भाई थे? माता गंगा और पिता शांतनु से आठ पुत्रों ने जन्म लिया था। जिसमें से सात पुत्रों को गंगा जी ने गंगा की धारा में बहा दिया। आठवें पुत्र भीष्म पितामह थे।
इसके अलावा उनके भाई महर्षि व्यास भी उनकी सौतेली माँ सत्यवती के पुत्र थे।
भीष्म पितामह का जन्म किस कारण हुआ ?
हस्तिनापुर के राजा शांतनु एक बार शिकार करते हुए गंगा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने एक स्त्री को देखा जो कि स्वयं गंगा जी थीं। उनकी सुन्दरता पर मोहित होकर शांतनु ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा।
गंगा जी ने उनके सामने विवाह के लिए एक शर्त रखी कि विवाह के बाद शांतनु उन्हें कुछ भी करने से नहीं रोकेंगे। यदि उन्होंने कभी उन्हें रोकने का प्रयास किया तो वे उसी समय उन्हें छोड़ कर चली जाएंगी।
शांतनु को प्रेम के आगे कुछ नहीं सूझ रहा था सो उन्होंने गंगा जी की बात मान ली।
विवाह संपन्न हुआ। विवाह के बाद जब शांतनु के घर पुत्र ने जन्म लिया। तब गंगा जी उस पुत्र को जाकर गंगा की धारा में छोड़ आती। जिस से उसकी मृत्यु हो जाती। सात पुत्रों के साथ ऐसा होने पर शांतनु को बड़ी ग्लानी हुयी।
जब गंगा जी आठवें पुत्र के साथ भी ऐसा करने लगीं। तब शांतनु ने उन्हें रोका और उनसे ऐसा करने का कारण पूछा। गंगा जी ने उन्हें ऐसा करने का यह कारण बताया।
वशिष्ठ मुनि मेरु पर्वत के पास अपने आश्रम में रहते थे। उनके पास उस समय कामधेनु गाय की पुत्री नंदिनी भी थी।
एक बार पृथु और बाकी वसु ( हिन्दू धर्म में आठ वसु हैं जो इन्द्र या विष्णु के रक्षक देव हैं। ‘वसु’ शब्द का अर्थ ‘वसने वाला’ या ‘वासी’ है। ) अपनी पत्नियों के साथ उस वन में घूमने गए जहाँ वशिष्ठ जी का आश्रम था। तभी उनमें से एक वसु की पत्नी की नजर उस नंदिनी गाय पर पड़ी। उसी समय उसने अपने पति से उस गाय को लेकर आने के लिए कहा।
अपनी पत्नी की बात सुन कर उस वसु ने अपने बाकी वसु भाइयों को बुलाया और उन्हें उन्हें अपनी योजना बताई।
जब वशिष्ठ मुनि वन में फल और फूल लाने गए उसी समय में वे उस गाय को आश्रम से चोरी कर लाये। वन से वापस लौटने पर वशिष्ठ मुनि को नंदिनी गाय नहीं दिखी तब उन्होंने उसे ढूँढने का बहुत प्रयास किया।
अंत में जब वह नंदिनी को नहीं ढूंढ पाए तब उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा की वसुओं ने उनकी गाय चुरा ली है। यह जानते ही वशिष्ठ मुनि ने उन सभी वसुओं को मनुष्य के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
श्राप के बारे में जब वसुओं को पता चला तब वे वशिष्ठ मुनि के पास क्षमा याचना के लिए आये। साथ ही वे नंदिनी को भी ले आये। वशिष्ठ मुनि ने कहा,
“मेरे मुंह से निकली बात झूठी तो हो नहीं सकती। हाँ लेकिन ये हो सकता है कि तुम में से 7 की मृत्यु जन्म लेने के 1 साल के अन्दर हो हो जाएगी। और जिसने मेरी गाय चुराने की योजना बनाई थी वह वसु अपने कर्म भोगने के लिए बहुत सालों तक धरती पर रहेगा। अभी इसने जिस तरह अपनी पति के कहने पर यह गलत कर्म किया है। मानव लोक में यह अपने पिता के की प्रसन्नता के लिए कभी भी विवाह नहीं करेगा। ”
श्राप पाने के बाद सभी वसु गंगा जी के पास गए और उनसे आग्रह किया कि वे उन वसुओं को मानव रूप में जन्म दें और जन्म लेते ही उन्हें मार दें।
यही कारण था कि उन वसुओं को श्राप मुक्त करने के लिए गंगा जी ने ऐसा किया। इतना कह कर गंगा जी ने राजा शांतनु को उनका वचन याद दिलाया। जिसमे गंगा जी ने कहा था कि यदि शांतनु उनको कोई काम करने से रोकते हैं तो वे उन्हें छोड़ देंगी।
राजा शांतनु ने उन्हें बहुत रोकने की कोशिश की लेकिन गंगा जी उस आठवें पुत्र को लेकर चली गयी। थोड़ा बड़ा होने पर गंगा जी ने वह पुत्र शांतनु को वापस कर दिया। जो आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से जाने जाते हैं।
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धन्यवाद।