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माँ की महिमा को सारा जहां गाता है। माँ पर रचनाएं भी रची गयी हैं। लेकिन जिस प्रकार की रचना आज आपके लिए शुभा पाचपोर जी ने भेजी है। वैसी रचनाएँ बहुत ही कम और अद्भुत लोग लिखते हैं। जी हाँ, ये कविता उन लम्हों की है जब हम इस दुनिया में आये भी नहीं होते। तो आइये पढ़ते हैं शुभा पाचपोर जी की माँ पर ये रचना माँ की कोख :-
माँ की कोख
ईश्वर ने रचना की अदभुत
वही एक जगह जहां
जगदीश है सब कुछ,
सृष्टि ने मुझको
माँ की कोख में लाया
स्वर्ग सी जगह मैंने
अपने को पाया
मद्धम प्रकाश उजला साया
प्रेम के रक्त से सिंचित मेरी काया,
मैं अकेला…..
पर माँ थी मेरा संसार
भयानक जग से छुपाकर
रखा था मेरा अवतार,
मां के ह्रदय की धड़कन का माधुर्यपन
प्रत्येक धड़कन में था मेरा जीवन
माँ से जोड़ने वाली थी एक डोरी सुन्दर
नाल मुझे बेल की तरह लिपटी अन्दर,
माँ की आवाज़ से
ओंठ मुस्कराते
कान केवल तुम्हारी
आवाज़ सुनने को तरस जाते,
अपने को कितने जतन से रखती
मुझे जिंदगी मिले
इसी कशमकश में रहती,
जन्म देते वक्त
झेले अनेक त्रास
मुझे मिले नयी जिंदगी
यही था अट्टहास,
ये महीने दुबारा नहीं आयेंगे
तुम्हारे बिना हम भी
जी नहीं पाएंगे
जी नहीं पाएंगे… माँ।
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मेरा नाम शुभा पाचपोर है । मैं रायपुर, छत्तीसगढ़ में रहती हूँ। मैं एक गृहणी हूँ। मैंने गृह विज्ञान में परास्नातक (Masters in Home Science) की डिग्री ली है। इसके साथ-साथ मुझे कवितायें लिखने का शौंक है।
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धन्यवाद।