Home » कहानियाँ » मनोरंजक कहानियाँ » लक्ष्य ही जीवन है बताती ज्ञान देने वाली शिक्षाप्रद ज्ञान देने वाली कहानी

लक्ष्य ही जीवन है बताती ज्ञान देने वाली शिक्षाप्रद ज्ञान देने वाली कहानी

by Sandeep Kumar Singh
16 minutes read

बहुत पुरानी बात है या नयी बात ये तो पता नहीं लेकिन मेरे दिमाग में कुछ ही दिन पहले आई थी। तो मैं आप सबके सामने अपनी इस कल्पना को शब्दों के रूप में बयान करने वाला हूँ। इस कहानी में शिक्षाएं बहुत हैं। वैसे तो जितनी शिक्षाएं मुझे मिलीं वो मैंने लिख दीं। इसके इलावा अगर आपके दिमाग में कोई अद्भुत शिक्षा आये तो हमसे जरूर बतायें। तो आइये पढ़ते हैं ‘ लक्ष्य ही जीवन है ‘ कहानी :-

लक्ष्य ही जीवन है

लक्ष्य ही जीवन है

ये कहानी है स्वप्न्पुर की, जी हाँ जहाँ वो पहली गलती वाली घटना घटित हुयी थी। अगर न पढ़ी हो तो पहले जाइए वो “पहली गलती” पढ़ कर आइये। वहाँ भी आपको एक बहुत बड़ी शिक्षा मिलेगी। उसके बाद फिर से यहाँ आ जाइएगा और पढियेगा लक्ष्य ही जीवन है । तो बात ऐसी थी कि उसे गाँव में अंकुर नाम का एक लड़का रहता था। नाम की तरह वो जीवन में भी अंकुर ही था। फूटने का नाम ही नहीं ले रहा था। मतलब बड़ा हो गया था लेकिन कोई काम कार न करता था। फ़ालतू के काम जितने मर्जी करवा लो लेकिन काम का काम कोई भी नहीं करता था।

घर वाले समझा-समझा कर थक गए थे। पर उसके कान पर जूं तक न रेंगती थी। वैसे जूं क्या अगर कोई हाथी भी होता तो उसे कोई फर्क न पड़ता। तो उसे समझाते-समझाते एक दिन उसके माता-पिता इस संसार को अलविदा कह गए। अब सब को ऐसी उम्मीद थी की शायद ये अंकुर अपनी जिंदगी की गहराई में जाएगा और एक नया पौधा बन के निकलेगा। लेकिन रहा वो वही अंकुर जो जमीं पर इधर-उधर भटकता फिरता।

धीरे-धीरे उसकी जो इज्ज़त उसके माँ-बाप के कारण थी वो उसकी नौटंकियों से मिट्टी में मिलने लगी। लेकिन वो तो अभी भी मिट्टी से कोसों दूर था। पहले तो कहीं से इस उम्मीद में खाना मिल जाता था कि बेचारे के माँ-बाप भरी जवानी में छोड़ के चले गए। कुछ दिन तक सहायता कर देते हैं। बाद में खुद समझ जाएगा। पर कोई भी परिवर्तन ना आता देख उसे लोगों ने किसी ऐसे अंकुर की तरह फैंका। जो किसी भी काम का ना था।

अब खुद को इतना बेइज्जत होता देख अंकुर से ये सहन न हुआ। उसने गाँव छोड़ कर जाने और खुद का वजूद तलाशने का मन बना लिया। लेकिन ये अंकुर बिना किसी खाद या पानी के अंकुरित कैसे होता। तो हुआ कुछ ऐसा कि रात को चुप-चाप गाँव से बाहर जाते समय उसे एक आवाज सुनाई पड़ी।

उसने ध्यान से सुना तो वहीं एक घर के बहार एक बुजुर्ग अपने पोतों को कहानी सुना रहा था। अंकुर भी वहाँ जाकर ये कहानी सुनने लगा। लेकिन वो कुछ दूरी पर बैठा था। कहानी अभी शुरू ही हुयी थी। तो अंकुर के साथ क्या हुआ उससे पहले आप भी अंकुर के साथ बैठ कर ये कहानी सुन लें।

पास के जंगल के उस पार एक गाँव है। जहाँ एक हीरालाल नामक हीरे का व्यापारी रहता था। वो आस-पास के गाँवों में सबसे बड़ा व्यापारी था। एक बार इस गाँव में जब मेला लगने वाला था तो वो व्यापर के सिलसिले में इस गाँव में आया था। जब वो उसी जंगल से वापस जा रहा था तो रास्ते में अचानक उसका हाथ उसकी जेब में गया। जिसमे एक हीरा था। जो अब नहीं था। उसके तो प्राण ही सूख गए। रंग पीला पड़ गया। संध्या भी हो रही थी। तो वो और भी डर गया।



मगर इतना कीमती हीरा छोड़ कर वो कैसे जा सकता था। तो फिर वो हीरे की तलाश में फिर वापस के रस्ते पर हो लिया। अचानक उसकी नजर एक तरफ से आते प्रकश पर पड़ी। जब उसने थोड़ा आगे जाकर देखा तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गयीं। उसने देखा की एक साधू ने वो हीरा पकड़ा हुआ है और अपनी कुटिया के सामने खड़ा है। उसे देख कर व्यापारी से रहा न गया। वो तुरंत बोल उठा,

” ढोंगी,तो तुम साधू के भेष में ये काम करते हो। मुझे पता भी न चला कि कब तुमने मेरी जेब पर हाथ साफ़ कर लिया और यहाँ आकार छिप गए।”

साधू कुछ बोल पाता इस से पहले ही उसने फिर बोलना शुरू कर दिया,

“तुम मुझे जानते नहीं हो। तुम्हारा तो मैं वो हाल करूँगा कि तुम भी याद रखोगे।”

साधू की सहनशक्ति जब ख़त्म हो गयी तो साधू ने कहा,

” रे दुष्ट! नीच! पापी! तूने बिना कुछ जाने समझे इस हीरे के कारण हम पर ये लांछन लगाया है। जा हम तुझे श्राप देते हैं कि तुम अभी तत्काल राक्षस बन जाएगा और तेरे प्राण इसी हीरे में बस जाएंगे। “

पहले तो व्यापारी को लगा कि ये ढोंगी बाबा है। लेकिन श्राप के कारण जब उसकी चमड़ी मोटी और बाल वाली होने लगी तो उसे उसकी गलती का एहसास हुआ। फिरे उसने अपनी गलती की माफ़ी मांगना शुरू कर दिया। काफी देर तक तो साधू पर कोई प्रभाव न पड़ा। लेकिन फिर उनका दिल पिघला और वे उसे लेकर एक गुफा के पास गए।

गुफ़ा के बीच में जाकर उन्होंने वो हीरा एक पत्थर पर रखा। उसके बाद वो हीरा लाल जो कि अब हीरासुर बन चुका था, से बोले,

“हीरासुर, अब मैंने ये हीरा इस पत्थर पर रख दिया है। याद रहे अगर इसे किसी जीवा जंतु या मानव ने अपने किसी अंग से हिलाया या फिर किसी और चीज से हिलाने का प्रयास किया तो तुम्हारे प्राण तुरंत निकल जाएंगे। याद रहे अगर ये अनजाने में कोई हिलाता है या फिर कुदरत के किसी करिश्मे से हिलता है तो तुम पुनः हीरालाल बन जाओगे।”

“लेकिन महाराज ऐसा कैसे हो सकता है कि ये हीरा गुफा के अन्दर अपने आप अपना स्थान बदल ले। ये तो असंभव है। कृपा कीजिये महाराज। कुछ तो रहम कीजिये।”

साधू ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वो ऊपर वाले पर विश्वास रखे। एक दिन उस पर जरूर कृपा होगी। तब से वो राक्षस हीरासुर वहीं गुफा के बाहर बैठा रहता है और उससे निकलने वाले हीरे के प्रकाश से सब आकर्षित होते हैं। पर अपने जीवन के लालच के कारण हीरासुर किसी को उस गुफा के अन्दर जाने नहीं देता।

“हाहाहाहाहा, वाह! क्या कहानी सुनाई है ? बाबा, मजा आ गया। लेकिन इसका अंत कुछ अच्छा न हुआ।”

अंकुर ने कहानी सुनते हुए खा। तब उस बूढ़े बाबा ने जवाब दिया,

“अंत तो तब होगा न जब वो हीरा हिलेगा या फिर उसे कोई चुरा लाएगा जिससे वो राक्षस मर जाएगा।”

“अच्छा तो, मतलब उसे चुराया भी जा सकता है।”

“हाँ बिलकुल, लेकिन ये काम असंभव है क्योंकि हीरासुर किसी को वहां जाने नहीं देगा।?

“मैं जाऊँगा ना हीरा लाने।”

“हाँ-हाँ चले जाना अभी हमें सोने दो।”

इतना कहते हुए वो बूढ़ा सोने लगा।

इधर अंकुर की आँखों के सामने वो हीरा ही घूमने लगा। हीरे की एक आस लिए अंकुर रात को ही जंगल के लिए रवाना हो गया। रात को ढूंढते-ढूंढते उसे वो हीरे वाली गुफा मिल ही गयी। अब लगने लगा था की अंकुर फूटेगा और एक नया पौधा जन्म लेगा। लेकिन बहुत प्रयासों के बावजूद भी वो उस गुफा में हीरासुर के कारण जा न सका।

सुबह हो चुकी थी। गाँव वालों को अंकुर कहीं न दिखा। उन्होंने सुख की सांस ली। उधर अंकुर रात भर की मेहनत से थक हार कर जंगल में किसी को ने में सोया पड़ा था। उसे बूढ़े ने सबको बताया कि रात को अंकुर हीरासुर की कहानी सुन कर कह रहा था कि मैं हीरा लेकर आऊंगा। लगता है उसी की तलाश में वो वहां गया है।

उस बूढ़े की बात को सुन कर सबने राहत की सांस ली और खुश भी हुए। क्योंकि वो हीरा लाना किसी के बस की बात न थी। इधर अंकुर हर रात एक नई योजन बनाता लेकिन कभी सफल न होता। अपना पेट वो जंगल में फल खाकर भर रहा था।



कई दिन तक लगातार कोशिश करने के बाद जब बात न बनी तो वो वापस घर पहुँच गया। सब गाँव वालों को ये पता चल गया कि अंकुर वापस आ गया है। उसे देखते ही सबसे पहले वो बूढ़ा बोला,

“हाँ बरखुरदार, हीरा लाये। हमें तो लगा कि तुम अब बहुत ठाठ-बाट से आओगे। लेकिन तुम तो ऐसे ही चले आये।”

ये सुनकर सब गाँव वाले उस पर हंसने लगे। ये पहली बार था जब अंकुर को ग्लानी का अनुभव हुआ। पर उसने इस बात का बुरा ना माना। चुपचाप दरवाजा बंद किया और सो गया। एक बार फिर अंकुर पौधा न बन सका।

अगले दिन गाँव वालों ने देखा कि अंकुर के घर का दरवाजा खुला था। फिर वो बूढ़ा चिल्लाते हुए आया और कहने लगा,

“ये नालायक तो चोर बन गया। मेरे बेटे की छेनी हथौड़ी ही चुरा कर ले गया। भगवान् इसका कभी भला न करेंगे।”

सब गाँव वाले बूढ़े को सांत्वना देने लगे और अंकुर को बुरा भला कहने लगे।

इधर फिर से रात हुयी और गाँव के कुछ लोग इस उम्मीद से जाग रहे थे कि शायद अंकुर फिर से चोरी करने आएगा तब हम उसे दबोच लेंगे। लेकिन कई दिन बीतने पर भी वो वापस नहीं आया।

आखिर कहाँ गया होगा अंकुर? सबके मन में बस यही सवाल था। वहीं जंगल में अंकुर ने हीरा चोरी करने का एक नायब तरीका निकाल लिया था। वह उस गुफा के ऊपर गया और वहां से चट्टान को तोड़ना शुरू कर दिया। हाँ, आ रही है ना मांझी वाली फीलिंग। यार कहानी के साथ रियल लाइफ का भी मजा लेते रहो।

तो अपनी ताकत के अनुसार और छोटे औजार होने के कारण उसे इस काम में कई दिन लगे। लगभग 2 महीने बीतने को आये थे। हाँ, हीरासुर को इसकी भनक इसलिए न लगी क्योंकि उस गुफा की छत बहुत मोटी थी। जिसके कारण ऊँचाई बहुत थी। और हथौड़ी चलने की आवाज हीरासुर तक न पहुँच पाती थी। और जैसे-जैसे छत के अन्दर गड्ढा बनता गया आवाज धीमी होती गयी।

उधर हीरासुर अपने इंसान बनने का इन्तजार कर रहा था। लेकिन उसे उम्मीद की कोई किरण नजर ना आ रही थी। उसे तो इतना भी न पता था कि उसकी पीठ पीछे धीरे-धीरे मौत दस्तक दे रही थी।

फिर अचानक एक रात को मौसम खराब होने लगा। रात को बरसात शुरू हो गयी। हीरासुर गुफा के द्वार पर ही टिका रहा कहीं कोई जानवर बरसात से बचने के लिए गुफा के अन्दर प्रवेश न कर जाए। उधर छत के ऊपर अंकुर बरसात में ही लेता रहा उसे भी पता था कि गुफा के अन्दर वह जा नहीं सकता और जंगल में उसे इस समय कहीं पनाह मिलने नहीं वाली।

बरसात तेज होती चली गयी। जंगल में तो पानी भरा ही साथ में उस गड्ढे में भी भर गया जो अंकुर ने हीरा प्राप्त करने के लिए खोदा था। सारी रात बरसात के बाद जब सुबह हुयी तो मौसम शांत हो चुका था। सारे जंगल में पानी भरा हुआ था। धूप की किरने अंकुर के मुंह पर पड़ीं। वो धीरे-धीरे उठा। उठ कर उसने सबसे पहले गढ़हे को देखा। उसे गड्ढे के पानी में कुछ हलचल दिख रही थी। इससे पहले वो कुछ समझ पाता। पानी झट से नीचे चला गया। अब गुफा की छत से गुफा के अन्दर सब कुछ साफ़-साफ़ दिख रहा था।

असल में हुआ कुछ ऐसा था कि अंकुर द्वारा छत की खुदाई करने से छत की मोटाई कम रही गयी थी। और जब पानी भर गया तो छत नम हो गयी। नम हो जाने के कारण छत पानी का वजन न सह सकी और छत गिर गयी। उसके साथ ही हीरा भी बह गया।

जब अंकुर ने ये सब देखा तो उसे कुछ न सूझा और वो भागता हुआ नीचे गुफा के दरवाजे पर गया। वहां एक आदमी हीरा पकडे हुए खड़ा था।

“मेरा हीरा?”

अंकुर ने घबराई हुयी आवाज में कहा।

“तुम्हारा हीरा? ये कब से तुम्हारा हीरा हो गया?”

“मैंने ही तो इसके लिए इतने दिन खुदाई की थी और आज तुमने इसे उठा लिया। (कुछ सोचते हुए अंकुर फिर बोला ) अरे ! यहाँ तो हीरासुर रहता था वो कहाँ गया?”

“ये खड़ा है ना तुम्हारे सामने।”

– तुम ?

-हाँ मैं, आज तुम्हारी वजह से ही मैं हीरासुर से हीरालाल बन पाया।

फिर दोनों ने वहाँ खड़े होकर काफी बातें की और अपनी ज़िन्दग के बारे में बताया। बाद में हीरासुर, ओह! माफ़ कीजियेगा। हीरालाल अंकुर को अपने घर ले गया।

अब अंकुर को फलने-फूलने के लिए एक उपजाऊ जमीं मिल चुकी थी शायद। उस व्यापारी हीरलाल ने अंकुर को अपने व्यवसाय का आधा हिस्सा दे दिया और उसके साथ ही काम करने लगा।

और हां, एक दिन वो उस छेनी-हथौड़ी का दाम भी चुका आया था जो व्बो चुराकर लाया था। वो भी दुगना दाम। किसी को उसकी कहानी पर विश्वास नहीं हो रहा था। क्योंकि उसने एक ऐसा काम कर दिया था। जिसके बारे में कभी किसी ने सोचा तक नहीं था।


तो ये थी कहानी स्वप्न्पुर के अंकुर की। अब जैसा की हर कहानी के बाद होता है। हमें एक शिक्षा मिलती है। लेकिन ये एक ऐसी शिक्षाप्रद कहानी है जिसमे एक, दो नहीं बल्कि कई शिक्षायें मिलेंगी।

अब आइये पढ़ते हैं कि इस शिक्षाप्रद कहानी से हमें क्या शिक्षा मिली :-

* कभी किसी को कम नहीं समझना चाहिए। जैसा की गाँव वाले अंकुर को समझते थे। कोई भी कभी भी कुछ भी कर सकता है।

* कभी भी बिना सच्चाई जाने किसी भी बात पर कोई प्रतिक्रिया न दें। जैसा की हीरालाल ने साधू को देखकर किया। इससे बहुत हानि हो सकती है।

* जिंदगी में जब तक कोई मंजिल न चुनी जाए। हम सिर्फ भटकते हैं कहीं पहुँचते नहीं। जैसा की अंकुर के जीवन में था। जब उसने हीरा प्राप्त करने की सोची तभी उसका जीवन बदला।

* जिंदगी में अचानक आगे वही बढ़ते हैं जो वो कर के दिखाते हैं जिसे करना सब को असंभव लगता है। जैसा की अंकुर ने कर के दिखाया।

* जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है। जैसा की जब बारिश हुयी तो अंकुर को लगा की उसने हीरा गँवा दिया। लेकिन वो एक व्यापारी बन गया। अगर वो हीरा उसे बिना कुदरत की सहायता के मिलता तो हो सकता है की वो उसका सही उपयोग न कर पाता। क्योंकि उसने पूरा जीवन कुछ भी नही किया था।

* भगवान ने आपके लिए क्या सोच रखा है ये आपको भी नहीं पता। इसलिए अपना कर्म करें और फल का इन्तजार करें। जैसे की हीरासुर के साथ हुआ। हीरा तो अंकुर अपने फायदे के निकल रहा था। लेकिन भगवान ने दोनों की किस्मत पलट दी।

* कोई कार्य असंभव नहीं। बस जरूरत है तो नजरिये को बदलने की।

तो ये थी लक्ष्य ही जीवन है कहानी। इस कहानी के बारे में अपने बहुमूल्य विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

पढ़िए लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करती ये कहानियां :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

2 comments

Avatar
Rakesh/AchhiAdvice अक्टूबर 22, 2017 - 5:45 अपराह्न

बहुत ही अच्छी कहानी ऐसे ही लिखते रहिये

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अक्टूबर 22, 2017 - 8:19 अपराह्न

धन्यवाद राकेश जी…

Reply

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.