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“आपने प्रेम कहानियाँ तो बहुत पढ़ी होगी, पर आपने कभी ऐसा कोई किस्सा कविताओं के संग्रह के रूप में पढ़े है?” ये बात कहती सुब्रत सौरभ जी की किताब “कुछ वो पल” उनके ५० कविताओं का संग्रह है। और इसी के साथ ये उनका पहला किताब है। आइये जानते है क्या है खास और आम इस किताब में। एक आम पाठक के नजर से।
कुछ वो पल : पुस्तक समीक्षा
किताब एक नजर में:-
शीर्षक: कुछ वो पल
लेखक: सुब्रत सौरभ
प्रारूप: कविता संग्रह
पृष्ठ: ७३
किताब (कविता संग्रह) का मुख्य सार:
लेखक के अनुसार, ये किताब आपको एक ऐसे सफ़र में ले जायेगा जिसमे आपको पढने मिलेगा एक नौजवान लड़के के जीवन में आने वाली अलग-अलग पड़ाव और संघर्षो के अनुभव। जैसे,
पढाई के लिए घर से दूर जाना,
“ज़िन्दगी के ऐसे मोड़ पे खड़ा था,
हाथ में थी किताबे और घर छुट रहा था।”
वहां नए दोस्त बनाना,
“सपनो का क्या है हम नये बन लेंगे,
मगर मिलते नही दोस्त बिछड़ने के बाद।”
प्यार ढूंढना,
“चल छोड़ दुनिया को दूर कही हम चलते है,
थाम के हांथो में हाथ, दो बातें युहीं करते है।”
इसके बाद अधिकतर कविताएँ प्यार के अलग-अलग अनुभव, ब्रेकअप, दुःख, गुस्सा, हताशा, आदि भावनाओ को कविता के रूप में संजोया गया है।
लेखन :
सुब्रत सौरभ जी ने ये कविताएँ बहुत ही सरल शब्दों और आसान लाइनो में लिखी है। इसमें ज्यादा बड़े शब्द नही मिलते और साधारण हिंदी शब्द जो हम बोलचाल में उपयोग करते है उन्ही शब्दों से पूरी कविताएँ बनी है। सामान्य धाराप्रवाह में लिखा गया ये छोटी-छोटी कविताएँ आसानी से हर पाठक को समझ आ सकती है। कही-कही जरुर कुछ लाइन प्रवाह से अलग प्रतीत जरुर होता है। शायद इसलिए क्योकि पुस्तक लेखन में ये लेखक का पहला अनुभव है।
किताब की खास बातें :
अधिकतर पाठको को इस किताब की कुछ बातें जरुर पसंद आयेगा। जैसे की, कविता लिखने का बहुत ही सरल अंदाज, छोटी-छोटी कविताएँ (लम्बी कविताएँ अक्सर बोरियत पैदा करती है अगर बहुत जबरदस्त ना हो तो)। इन कविताओं में कुछ लाइने मुझे बहुत ही अच्छी लगीं जो शायद आपको भी पसंद आये। उनमे से है,
- कमरे की वो चारपाई,
अब आँगन में लगा रखा है,
चौपाल पे आये यारों से,
दिल लगा रखा है।- ख्वाहिशों से भरी झोली है हमारी,
देखो तुम हमें फ़क़ीर न समझना,
मुट्ठी में कैद है किस्मत हमारी,
देखो तुम उसे सिर्फ लकीर न समझना।
- ख्वाहिशों से भरी झोली है हमारी,
- ख्वाबो ने उड़ा दी है,
अब नींदे हमारी,
देखो तुम हमें आशिक न समझना- कुछ तिनके संभाल के रखे है झरोखे पे,
उन्हें जोड़ के परिंदों को घोसला मिलता है,
और जब देखता हूँ उनमे बसे बेघर परिंदों को,
तो जीने का एक हौसला मिलता है।
- कुछ तिनके संभाल के रखे है झरोखे पे,
- इतना इतरा मत महफ़िल में देख के हमें,
फिजूल बैठे थे घर पे तो चले आये है,
यूं न नजरे चुरा के देख हमें,
ग़लतफ़हमी है की तुझे देखने आये है।
इनके अलावा किताब का बाहरी बनावट भी आकर्षक और गुणवत्ता पूर्ण है।(जैसे की, कवर, पेज, फोंट्स आदि।)
किताब की कमजोरियां:
वैसे तो किताब छोटी है सिर्फ ७३ पेज का जिसमे ५० कविताएँ है। और ऐसे में इसमें कोई कमजोरी मुझे तो नही दिखता। सिर्फ दो बाते है जो मुझे कहीं-कहीं लगा की उनको कुछ अच्छा किया जा सकता था। जैसे की, कुछ कविताएँ ऐसी है जिनमे ज्यादा खास भावनापक्ष मुझे नही महसूस हुआ इसलिए उनका “कुछ वो पल” की सफ़र में होना नही जंचता और दूसरी ये की कही-कही एक दो शब्द कविता के प्रवाह को थोड़ा बिगाड़ देता है।
वैसे ये बस कुछ ही जगह मुझे महसूस हुआ किताब में। जो ये महसूस कराता है की लेखक का ये पहला किताब है।
अंत में:
जैसा की सुब्रत सौरभ जी ने अपने ब्लॉग में कहा है की, “कौन पढता है आजकल, हिंदी में कौन पढ़ेगा।” इन समस्याओ के बावजूद उन्होंने अपनी हिंदी कविताओं को किताब के रूप में पाठको के सामने लाया जोकि बहुत ही सराहनीय कार्य है। किताब में छोटी-छोटी और भावनापूर्ण कविताएँ है। जो सरल शब्दों में लिखी गयी है वो किसी भी पाठक को पसंद आ सकती है। अंत में उन्होंने कुछ शायरियाँ भी लिखी है। कविता और शायरी पढने के इच्छुक पाठको को ये किताब जरुर पढना चाहिए।
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उम्मीद है सुब्रत सौरभ जी की ये पहली किताब आपको जरुर पसंद आयेगा।
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