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कर्मठ चींटी: चींटी पर कविता

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चींटी पर कविता

‘कर्मठ चींटी’ कविता में नन्हे – से जीव चींटी के कर्मशील और निश्चिंत जीवन पर प्रकाश डालते हुए उसे मानव के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया गया है। अपने शरीर के वजन से कई गुना अधिक भार ढोने वाली चींटी एक सामाजिक प्राणी है जो बिना थके अनुशासन में रहकर अपना काम करती है। वह समूह में रहकर बदले में बिना कुछ पाने की आशा करते हुए सबका सहयोग करती है । चींटी की जिजीविषा और कर्मठता हमें सुखमय जीवन जीने की राह दिखाती है।

कर्मठ चींटी

कितनी छोटी होती चींटी
रात – दिवस फिर भी है चलती,
काम हमेशा करती रहती
लगता जैसे कभी न थकती।

चाह न रखती कभी और से
ध्यान काम पर अपने देती,
सबके हित में श्रम करती है
पर बदले में कुछ ना लेती।

चींटी है अनुशासित प्राणी
संयम से है जीवन जीती,
खुश रहती वह वर्तमान में
याद न रखती बातें बीती।

चींटी अपने सब कामों को
मौन भाव से करती आई,
मिल जाए जो भी खाने को
रहती उसमें खुशी समाई।

चींटी से सीखें हम मानव
आपस में बनना सहयोगी,
सदा रहेगा कर्मशील जो
सुखी जिन्दगी उसकी होगी।

हों प्रयत्न जब सामूहिक तो
जीवन – राह सरल हो जाती,
कर्मठता का यही पाठ तो
चींटी हमको है सिखलाती।

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