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मानव जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। यदि इन्सान के जीवन में संघर्ष ही न हो तो उसका जीना और न जीना बराबर है। जीवन के इन संघर्षों से पार होने के लिए हमें कर्म करना पड़ता है। फिर हमारी पहचान भी हमारे कर्मों के अनुसार ही बन जाती है। यदि कर्मा अच्छे तो पहचान अच्छी यदि कर्म बुरे तो फिर पहचान भी बुरी। आइये पढ़ते हैं इसी बात का ज्ञान देती जीवन संघर्ष पर कविता :-
जीवन संघर्ष पर कविता
कर्मों के फल से हमको
क्यूँ हर पल तौला जाता है,
दु:ख अब्धि का तट बढ़कर
क्यूँ हम तक फैला आता है।
बांवरिया मन सपनें बुनकर
झरने सा बहता है कल-कल,
तन आदत के हो अधीन
ढ़ोता रहता आँखों में जल,
मुख मंडल की छाया से
क्यूँ सुख को आँका जाता है।
कर्मों के फल से हमको,
क्यूँ हर पल तौला जाता है।
भावुक मन को जीते जी
हर संताप को सहना होगा,
मंजरी की आकांक्षा लेकर
शुलों के संग रहना होगा,
महकी बगिया को निर्दयता से
क्यूँ हर क्षण रौंदा जाता है।
कर्मों के फल से हमको,
क्यूँ हर पल तौला जाता है।
पंचतत्व का पाके जीवन
लोभ के मारे मन में सहसा,
जिस मिट्टी से बना हुआ हूँ
उससे घर आँगन है हर्षा,
शीतल सा जल अश्रु बनकर
क्यूँ हमको नहला जाता है।
कर्मों के फल से हमको,
क्यूँ हर पल तौला जाता है।
पढ़िए :- संघर्षमयी जीवन पर कविता “सूरज निकल गया”
मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।
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