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इन्सान के जीवन से सम्बंधित सच को शब्दों में पीरों कर कविता के रूप में प्रदर्शित करती ” जीवन के सच पर कविता ”
जीवन के सच पर कविता
धोखा फ़रेब और झूठ की
हर पल जहाँ जयकार होती है,
सच के जीतने की हर
कोशिश वहाँ बेकार होती है।
मुझे तो कोई फर्क ही नज़र
नही आता चमचों व भक्तों में,
दल कोई भी हो हमारे देश मे
सदा एक सी सरकार होती है।
जिन्हें दी जिम्मेदारी पेड़ लगाने
की, वे ही कटवा रहे जंगल,
परिंदों को आशियाने, हमें
ऑक्सीजन की दरकार होती है।
वोट लेने को तो दिखाए जाते हैं
हमको ख्वाब हज़ारों में,
मगर क्यों आरज़ू हमारी एक भी
कभी ना साकार होती है।
भरोसा है ईश्वर देगा कभी तो
अक़्ल धोखेबाज़ लोगों को,
हमारी मिन्नतें मानने की गर्ज़
उसकी आख़िरकार होती है।
नहीं है ख़ौफ़ कोई भी मुझे
चंदनवन व जंगल के साँपों से,
सहम जाता हूँ जब कोर्ट व
सत्ता से कोई फ़ुफ़कार होती है।
समझदारी से मसले हल हों
तो ही आता है देश में विकास,
अमन , एकता , और ख़ुशी के
पायलों की वहीँ झंकार होती है।
पढ़िए :- सच और झूठ के दोहे ‘सत्य पर दोहे’
मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।
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