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आज का मनुष्य इतना लोभी हो गया है कि अपने सुखमयी जीवन के लिए धरती माँ का शोषण कर रहा है। एक ओर जहाँ प्रदूषण फैला रहा है वहीं दूसरी ओर वायु शुद्ध करने वाले पेड़-पौधों को भी काट रहा है। इतना ही नहीं वह नदियों को भी बुरी तरह दूषित कर रहा है। अपना आज तो उसने सांवर लिया है लेकिन आने वाला कल आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत भयंकर बना रहे हैं। आज इन्सान को अपनी धरती के प्रति सजग करने के लिए कई संस्थाएं सामने आई हैं। हमारा भी फर्ज बनता है कि हम धरा की हालत सुधारने में अपना योगदान दें। इस कविता के माध्यम से भी यही सन्देश देने का प्रयत्न किया गया है। आइये पढ़ते हैं जल प्रदूषण पर कविता :-
जल प्रदूषण पर कविता
वसुधा के आँचल पर, क्यों दाग लगाते हो।
नदियों का कर दोहन, क्यों गरल पिलाते हो।।
मेघ घुमड़ कर आते, निष्ठुरता दिखलाते ;
सरिता रूठी रहती, सब खेत उजड़ जाते।
कभी क्रोध यदि आता, बाढ़ लिए बढ़ती-
तुम काट घने जंगल, क्यों मृत्यु बुलाते हो।।
नदियों का कर दोहन, क्यों गरल पिलाते हो।।
तुम बैठ किनारे पर, बर्तन धोकर लाते;
तन-मन के मैल सहित, डंगर भी नहलाते।
मूरख अज्ञानी हो, इतना भी ज्ञात नहीं-
पानी को कर गंदा, तुम असर गँंवाते हो।।
नदियों का कर दोहन, क्यों गरल पिलाते हो।।
माँ पोषण करती है, हर धान्य उगाती है;
इसकी मीठी धारा, मन प्राण बचाती है।
खुशियों के कूपों में, दुख की काली छाया-
तुम अपने ही सुख में, क्यों आग लगाते हो।।
नदियों का कर दोहन, क्यों गरल पिलाते हो।।
जगती का यह रेला, चार दिवस का जीवन;
विश्वास रखो लेकिन, पानी है संजीवन।
कल अपनी करनी का, फल खुद ही भोगोगे-
कैसे साधन होगा, फिर प्रश्न उठाते हो ।।
नदियों का कर दोहन, क्यों गरल पिलाते हो।।
✍ अंशु विनोद गुप्ता
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अंशु विनोद गुप्ता जी एक गृहणी हैं। बचपन से इन्हें लिखने का शौक है। नृत्य, संगीत चित्रकला और लेखन सहित इन्हें अनेक कलाओं में अभिरुचि है। ये हिंदी में परास्नातक हैं। ये एक जानी-मानी वरिष्ठ कवियित्री और शायरा भी हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें गीत पल्लवी प्रमुख है।
इतना ही नहीं ये निःस्वार्थ भावना से साहित्य की सेवा में लगी हुयी हैं। जिसके तहत ये निःशुल्क साहित्य का ज्ञान सबको बाँट रही हैं। इन्हें भारतीय साहित्य ही नहीं अपितु जापानी साहित्य का भी भरपूर ज्ञान है। जापानी विधायें हाइकू, ताँका, चोका और सेदोका में ये पारंगत हैं।
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