ढल चुका है सूरज हो चली है शाम धीरे-धीरे
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ढल चुका है सूरज, पंछी हैं घर चले
इक मैं रुका शहर में, अकेला दिन ढले,
कर इंतजार खत्म कि हो चली है
शाम धीरे-धीरे।
खत भी लिखे थे मैंने संदेश भी थे भेजे,
पवन संग बरसने को मेघ भी थे भेजे,
न जाने कब मिलेगा भेजा है जो तूने
पैगाम धीरे-धीरे।
महफ़िलें सजेंगी तो राज सब खुलेंगे,
सच्चाइयों के आईनों को तब हम धुलेंगे,
सुना है हो रहा है आशियाने में तेरे
इंतजाम धीरे-धीरे।
तब दौर वो चलेगा जो न सोचा होगा तुमने,
तब हम बताएंगे कि क्या देखा है जी हमने,
चलती रहेंगी बातें और चलते रहेंगे
जाम धीरे-धीरे।
सुनकर दलीलें मेरी तू मुख न फेर लेना,
जो दिल तेरा करेगा तू फैसला वो देना,
हम भी देखेंगे क्या होता है इस महफ़िल का
अंजाम धीरे-धीरे।
ढल चुका है सूरज, पंछी हैं घर चले
इक मैं रुका शहर में, अकेला दिन ढले,
कर इंतजार खत्म कि हो चली है
शाम धीरे-धीरे।
⇒सुबह की खूबसूरती पर एक कविता⇐
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धन्यवाद।