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हिंदी कविता चार चोर ( पद्य कथा ) | Hindi Kavita Char Chor


 ‘ हिंदी कविता चार चोर ‘ पद्य कथा में चार चोर मिलकर एक गाँव में चोरी करने जाते हैं। एक घर के रसोईघर में  जब इन्हें खीर बनाने की सामग्री दिखाई देती है तो स्वादिष्ट भोजन खाने की इनकी कमजोरी उभर आती है और ये चूल्हा जलाकर खीर बनाने में लग जाते हैं। पास ही सोई एक बुढ़िया के हाथ में भी ये गर्म खीर रख देते हैं जिससे बुढ़िया का हाथ जल जाता है। बुढ़िया के चिल्लाने पर चारों चोर पकड़े जाते हैं गाँव वालों द्वारा पीटे जाने पर इन्हें समझ में आता है कि चोरी का रास्ता अपमानजनक है और मेहनत करके पेट भरना ही उचित है। इस प्रकार इस पद्य कथा में मनोरंजन प्रदान करने के साथ ही श्रम का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है।

हिंदी कविता चार चोर

हिंदी कविता चार चोर

चोरों की दुनिया होती है
आम जनों से तनिक निराली,
नहीं सुहाती इन्हें चांदनी
अच्छी लगती रातें काली। 1।

दिन में तो ये सोये रहते
साँझ ढले लगते हैं उठने,
रात गहन होती जैसे ही
लग जाते चोरी में जुटने। 2।

गली – गली भटका करते हैं
दर – दर की हैं ठोकर खाते,
कर प्रयास पर बार – बार ये
चीज चुरा कुछ ले ही आते। 3।

मिलकर रहते खाते – पीते
आपस में ना करे बुराई,
इसीलिए कहते हैं शायद
चोर – चोर मौसेरे भाई ।4।

लोग रात में सोते रहते
सर्दी में जब ओढ़ रजाई,
कभी-कभी तब पूरे घर की
कर जाते हैं चोर सफाई। 5।

गर्मी में जब लोग घरों के
खुले भाग में बाहर सोते,
सेंध लगाकर पिछवाड़े में
चोर घरों के अन्दर होते। 6।

बरसाती रातों में कुत्ते
दुबक कहीं पर जब हैं जाते,
बिना डरे तब चोर – उचक्के
फाँद दिवारें घर में आते। 7।

साथ-साथ चौकीदारों के
रहते आए चोर सदा ही
वर्षों से चलता आया है
खेल जगत में चोर – सिपाही। 8।

वैसे तो ये चोर बहुत ही
सावधान होकर हैं रहते,
लेकिन हालातों के आगे
इनके स्वप्न – महल भी ढहते। 9।

फिर सबके अन्दर होती है
छुपी हुई कोई दुर्बलता,
जो अच्छे – अच्छे लोगों को
अक्सर देती है बता धता। 10।

सुन्दरपुर के चोरों की भी
ऐसी ही इक रही कहानी,
अपनी कमजोरी के कारण
पड़ी जिन्हें थी मुँह की खानी। 11।

करते आए कई लोग थे
चोरी से ही वहाँ कमाई,
लेते थे सामान छीन वे
कर पथिकों से हाथापाई। 12।

इसके कारण हुई गाँव की
दूर – दूर तक थी बदनामी,
अतः मदद इनकी करने को
कभी न कोई भरता हामी। 13।

इसी गाँव में राजू का था
चार चोर का छोटा – सा दल,
छोटी-छोटी चोरी में जो
हो ही जाता था कभी सफल। 14।

मात – पिता का तो राजू से
बचपन से ही छिना सहारा,
अब मौसी के घर रह करता
चोरी से ही कहीं गुजारा। 15।

तीन मित्र थे उसके पक्के
रामू श्यामू एवं कालू,
पेटू थे वे बड़े गजब के
थे स्वभाव से भी वे टालू। 16।

एक बार राजू चोरी की
बना रहा था बैठ योजना,
सोचा – आज अमावस है तो
चोरी की भी युक्ति खोजना। 17।

चारों मिलकर जाएँगे हम
हाथ कहीं मारेंगे भारी,
पिछली बार जरा चूके थे
किन्तु सफल होंगे इस बारी। 18।

बुलवा भेजे तीनों साथी
लगा स्वयं करने तैयारी,
मुँह बाँधा काले कपड़े से
ली बाजू में छुपा कटारी। 19।

रामू श्यामू तो आ पहुँचे
पर कालू ना पड़ा दिखाई,
पूछताछ से पता चला था
मोच पाँव में उसके आई। 20।

दो दिन पहले जगन सेठ के
चुरा बाग से कई संतरे,
फिसल पेड़ से गया अचानक
जब उतर रहा था डरे – डरे। 21।

पैर मुड़ गया इस चक्कर में
चलता अब भी लचक – लचक कर,
रोज – रोज के काम जरूरी
करना भी अब उसको दूभर। 22।

पकड़ लिया था अपना माथा
सुन राजू ने यह बुरी खबर,
बोला – उचित नहीं है चलना
हम तीनों का ऐसे अवसर। 23।

नहीं तीन की है शुभ संख्या
होता इससे नुकसान बड़ा,
‘तीन तिगाड़ा – काम बिगाड़ा’
का तर्क दिया उसने तगड़ा।24।

वह बोला – है बहुत जरूरी
साथी एक ढूँढ कर लाना,
समय चूक जो गए आज तो
रह जाएगा बस पछताना। 25।

वे तीनों घर बाहर बैठे
इस संकट का ढूँढ रहे हल,
तभी उन्हें था दीखा चन्दू
जो इसी गली से रहा निकल। 26।

राजू बोला – चन्दू तो यह
अपनी ओर चला है आता,
इससे बिगड़ा काम हमारा
लगता है अब सुधरा जाता। 27।

ले चलते हैं संग इसी को
पुनः चार हम हो जाएँगे,
ले लेगा उसमें से यह कुछ
माल आज जो हम पाएँगे। 28।

और नहीं तो खड़ा रहेगा
घर बाहर करने रखवाली,
करो न चिंता है इसकी तो
चाल – ढाल सब देखी भाली। 29।

चन्दू नामक लड़का था वह
उसी गाँव का रहने वाला,
पिता अंध थे बेचारे के
कर मजदूरी माँ ने पाला। 30।

लोगों के वह छोटे – मोटे
काम सभी हँस – हँस कर देता,
बदले में यदि देता कोई
तो रोटी कपड़ा ले लेता। 31।

राजू ने तब कहा प्रेम से
कहाँ चले हो चन्दू भाई,
अगर तुम्हारी इच्छा हो तो
साथ हमारे करो कमाई। 32।

चोरी का जो माल मिलेगा
होगा भाग तुम्हारा उसमें,
काम करो कुछ ऐसा भैया !
हाथ लगे दो पैसा जिसमें। 33।

चोरी का जब नाम सुना तो
चन्दू मन ही मन घबराया,
पर शातिर थे तीनों साथी
बातों से उसको बहलाया। 34।

गए पास के गाँव सभी मिल
ढूँढ रहे चोरी का अवसर,
सूना – सा घर एक देखकर
चले गए सब उसके अन्दर। 35।

चन्दू खड़ा हुआ चौकन्ना
घर के मुख्य द्वार से सटकर,
इस बेढंगे गलत काम से
काँप रहा था लेकिन थर – थर। 36।

तीनों गए रसोईघर में
देखे चावल दूध शर्करा,
अपनी खुशकिस्मत पर अब वे
मन्द – मन्द थे रहे मुस्करा। 37।

देख – देखकर यह सामग्री
मुँह में उनके आया पानी,
तीनों ने अब मिलकर पहले
खीर बनाने की ही ठानी। 38।

जला लिया जल्दी से चूल्हा
फिर एक पतीला दिया चढ़ा,
उबले चावल की खुशबू ने
दी उन चोरों की भूख बढ़ा। 39।

चूल्हे से ही कुछ दूरी पर
सोई थी खटिया पर बुढ़िया,
पौष माह की उस ठिठुरन में
नींद उसे आई थी बढ़िया। 40।

लिपट रजाई में सोई थी
भरती थी गहरे खर्राटे,
करती थी वह सुध – बुध भूले
स्वप्न – लोक के सैर-सपाटे। 41।

तभी नींद में उस बुढ़िया का
निकल हाथ आया था बाहर,
चौंक गए पहले तो तीनों
सावधान फिर बैठे होकर। 42।

सोचा – बेचारी बुढ़िया यह
खीर चाहती शायद खाना,
हो सकता है इसको भोजन
मिलता ना हो मनमाना। 43।

रामू बोला – तनिक ठहर जा ,
खीर जरा दे पक भी जाने,
फिर देंगे हम ठंडी करके
खीर बहुत तुझको भी खाने । 44।

इतना कहकर उस बुढ़िया का
हाथ रजाई में फिर डाला,
लेकिन अगले पल बुढ़िया ने
फिर से बाहर हाथ निकाला। 45।

अबकी श्यामू ने बुढ़िया का
हाथ रखा था फिर से अन्दर,
लेकिन जैसे ही मुँह फेरा
निकल हाथ फैला खटिया पर। 46।

अब राजू से रहा गया ना
पैर पटक कर वह झल्लाया,
और हथेली पर बुढ़िया की
गर्म खीर वह जा रख आया। 47।

बोला – सब्र नहीं है तुझको
जो खाने को मरी जा रही,
ले पहले तू ही खा जी भर
हम लेंगे तेरे बाद सही। 48।

गर्म खीर से हाथ जला तो
लगी शीघ्र बुढ़िया चिल्लाने,
हाय हाय कर पूरे घर में
जोर जोर से शोर मचाने। 49।

घबराए वे तीनों साथी
अरे ! कहाँ का आया संकट,
देख रहे थे इधर-उधर वे
जगह कहीं छुपने की झटपट। 50।

इसी हड़बड़ी में राजू तो
जा छुपा खाट के ही नीचे,
रामू श्याम दरवाजे के
पल्लों से थे खुद को भींचे। 51।

सोच रहा था छुपूँ किधर को
खड़ा खड़ा चन्दू बेचारा,
छत पर ही वह जा पहुँचा था
पास लगी सीढ़ी के द्वारा । 52।

बुढ़िया का जब शोर सुना तो
घर के लोग सभी थे जागे,
जहाँ चीखती थी वह बुढ़िया
उसी ओर थे वे सब भागे। 53।

पहुँच रसोईघर में देखा
खीर चढ़ी जलते चूल्हे पर,
अस्त व्यस्त थी सारी चीजें
बर्तन भी सारे रहे बिखर। 54।

देखा सबने बुढ़िया की थी
सनी खीर से एक हथेली,
समझ नहीं उनको आता था
है कैसी यह अजब पहेली। 55।

बुढ़िया की जो पुत्रवधू थी
वह बोली तब देती ताना,
यहाँ रसोईघर में आकर
क्यों सोती अम्मा अब जाना। 56।

रोज यहाँ यह हमसे छुप – छुप,
बना बनाकर चीजें खाती,
हाय ! चटोरी बूढ़ेपन में
जीभ हुई इसकी है जाती। 57।

वह बेचारी बुढ़िया तो थी
पहले ही जलने से पीड़ित,
तिस पर बातें कड़वी कहकर
करती उसको बहू प्रताड़ित। 58।

झल्लाकर तब बुढ़िया बोली
अरी बहू ! तू यह क्या कहती,
कमी जगह की है घर में तो
पड़ी यहाँ आकर मैं रहती। 59।

बना सभी जब तुम देती हो
फिर क्यों मैं छुपकर खाऊँगी,
चोरी से ना पेट भरूँगी
चाहे भूखों मर जाऊँगी। 60।

कुछ तो अब उपचार करो रे
पड़ा हथेली में है छाला,
कैसे यह सब हुआ अचानक
यह तो जाने ऊपर वाला। 61।

छुपा हुआ जो चन्दू ऊपर
बुढ़िया की बातें सुन चौंका,
सोचा झूठा दोष मढ़ रही
यह मुझ पर पाते ही मौका। 62।

झट से नीचे उतर पड़ा वह
गुस्से से होंठों को भींचे,
बोला – क्यों री ! सब मैं जानूँ
क्या जाने ना वह जो नीचे। 63।

यह सुनते ही बाहर आया
खटिया नीचे दुबका राजू,
बोला – वे भी सब जाने जो
छुपे द्वार के आजू – बाजू। 64।

अचरज से भर देखा सबने
राजू करता जिधर इशारा,
खड़े वहाँ थे रामू श्यामू
दरवाजे का लिए सहारा। 65।

देख चार चोरों को घर में
घरवालों ने शोर मचाया,
जिसने भी आवाज सुनी यह
वह जल्दी से दौड़ा आया। 66।

मिलकर लोगों ने कर डाली
उन चोरों की खूब धुनाई,
सिर भी उनके मुड़ा दिए थे
बुला गाँव से राधे नाई। 67।

कहा एक ने – ले चलते हैं
इन चारों चोरों को थाने,
लेकिन घरवाले बोले थे
बहुत हुआ अब दो भी जाने। 68।

छोड़ दिया फिर उन चारों को
देकर सबने सख्त हिदायत,
और कहा अब इधर गाँव में
कभी फटकना भूले से मत। 69।

जान बचाकर भागे चारों
जैसे – तैसे उठते पड़ते,
सुन्दरपुर जाकर ही ठहरे
वे प्रातः सूरज के चढ़ते। 70।

देख देखकर उनकी सूरत
लोग सभी मन में मुस्काते,
वे चारों अब गड़े शर्म से
छुपा चेहरा घर को जाते। 71।

कोस रहे थे चोर – कर्म को
मन ही मन वे भरतेआहें,
आज समझ में आया उनको
सदा सुखद हैं श्रम की राहें। 72।

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धन्यवाद।

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