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हम सबको बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि अगर हम बहुत पढ़ेंगे तो हमें अच्छी नौकरी मिलेगी। बस तब से ही सब जुट जाते हैं हमें अच्छी नौकरी दिलाने के लिए। लेकिन जब हम बड़े होकर नौकरी हासिल कर लेते हैं तो हमारे सामने जो समस्याएँ आती हैं और उस नौकरी के प्रति जो विचार बन जाते हैं। आइये जानते हैं वो सब इस हास्य व्यंग्य कविता नौकरी पर “नौकरी देगी मार ओ भैया” में :-
हास्य व्यंग्य कविता नौकरी पर
पैसे लेकर सह लेता है
तू जो अत्याचार,
नौकरी देगी मार ओ भैया
नौकरी देगी मार।
मेहनत करता तू है, क्रेडिट
कोई चमचा ले जाता है,
चाटता है तलवे वो ऐसे
मालिक को भा जाता है,
किया कराया तेरा सब
वो कहता है बेकार
नौकरी देगी मार ओ भैया
नौकरी देगी मार।
छुट्टी करना आफत है
चैन से रहना पाप
काम जरूरी है इनका
चाहे मरे किसी का बाप,
रिश्ते-नाते टूटे सब
अब यही अपना संसार
नौकरी देगी मार ओ भैया
नौकरी देगी मार।
रोटी के चक्कर में रोटी
खाने को नहीं मिलती है,
जाने कैसी दाल हो गयी
कभी भी जो न गलती है,
काम समय पर चाहिए
पर मिलती लेट पगार
नौकरी देगी मार ओ भैया
नौकरी देगी मार।
इस कविता का विडियो देखने के लिए नीचे क्लिक करें :-
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