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आज घोर कलयुग चल रहा है। इतना घोर कलयुग कि हम अपने लिए ही कुआँ खोद रहे हैं और उसमे गिरने के बाद भगवान् को दोष दे देते हैं। लोग धार्मिक कार्यों में लिप्त तो हैं परन्तु धर्मस्थलों तक ही। ज्ञान की बातें सुनते तो हैं लेकिन सिर्फ ज्ञान के लिए। यूँ तो ज्ञान की बातें हमें अपनी जिंदगी में अपनानी ही चाहिए लेकिन अगर कभी ऐसा हो कि इन्हें न मानना हमारे लिए समस्या खड़ी कर दे। तब आप क्या करेंगे? आपका तो पता नहीं लेकिन इस लघु कथा में राहुल और प्रिया के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। क्या हुआ इनके साथ आइये पढ़ते हैं इस लघु कथा में :-
ज्ञान की बातें लघु कथा
फोन की घंटी बजी। प्रिया ने फोन उठाया। सामने से आवाज आई,
– क्या आप अरमान के घर से बोल रही हैं?
– जी हाँ, आप कौन?
– हम अरमान के स्कूल से बोल रहे हैं।
– जी कहिये।
– आपको उसके पापा के साथ अभी स्कूल आना होगा।
– क्यों क्या हुआ? अरमान ठीक तो है ना?
— जी हाँ, वो बिलकुल ठीक है आप अभी स्कूल आइये। हमें आपसे जरूरी बात करनी है। जो हम फ़ोन पर नहीं कर सकते।
इतना कह कर उन्होंने फ़ोन काट दिया और प्रिया को टेंशन होने लगी।
अरमान प्रिया और राहुल का इकलौता बेटा था। जिसे दोनों ने बड़े लाड प्यार के साथ पाला था। उसकी परवरिश में कोई कसर न रह जाए इसलिए उसे शहर के सबसे बड़े स्कूल में डाला था। आज तक स्कूल वालों ने हमेशा उसकी प्रशंसा ही की है। यह पहली बार था जब कोई ऐसा फ़ोन आया जिसमें बिना किसी और बात के अरमान के माता-पिता को सीधा स्कूल ही बुलाया गया।
अरमान एक बहुत ही सुलझा हुआ लड़का है। उसे कभी कोई भी सवाल तंग करता है तो वह तुरंत अपने टीचर या माता-पिता से पूछ लेता है। कभी भी कोई बात दिल में नहीं रखता। उसे जैसा पढाया या समझाया जाता है वो वैसा ही करता है। इसीलिए तो हर कोई उसकी प्रशंसा करता नहीं थकता है। फिर आज ऐसा क्या हुआ होगा जो स्कूल वालों ने उन्हें अभी बुलाया है। खैर, अब फ़ोन आया था तो जाना तो था ही। प्रिया ने अरमान के पापा को फ़ोन लगाया और स्कूल जाने के लिए बुलाया।
– आखिर ऐसा क्या हो गया जो स्कूल वालों ने हमें तुरंत बुलाया है?
प्रिया से पूछते हुए राहुल प्रिंसिपल ऑफिस की तरफ बढ़ रहा था।
– मुझे क्या पता ? बस कॉल आया स्कूल से कि आप दोनों को स्कूल आना होगा।
प्रिया ने जवाब दिया और ऑफिस की तरफ बढती रही।
– मे आई कम इन सर?
राहुल ने प्रिंसिपल से पूछा। उसके बाद दोनों अन्दर जाकर बैठे। दोनों के दिल जोर-जोर से धड़क रहे थे। उन्हें ज़रा सा भी अंदाजा नहीं था कि क्या होने वाला है।
– मिस्टर राहुल, क्या आपको पता है आप की पारिवारिक बातें आपके बेटे पर क्या प्रभाव डाल रही हैं?
घबराते हुए राहुल ने पूछा, “क्या हुआ सर? आप ऐसे बात क्यों कर रहे हैं?”
“क्योंकि हम उसे जो पढ़ा रहे हैं वह उसको गलत बता रहा है। और इसका कारन आप हैं।”
प्रिंसिपल के ऐसा कहने पर राहुल और प्रिया सोच में पड़ गए। घर में तो ऐसी कोई बात नहीं होती जिस से अरमान की परवरिश पर कोई बुरा असर पड़े। फिर आज ऐसा क्या हो गया की उसकी तारीफ करने वाले प्रिंसिपल भी आज उसे गलत बता रहे हैं। यही सब सोचती हुयी प्रिया बोली,
“सर आप साफ़-साफ़ कहिये क्या कहना चाहते हैं। क्या हुआ है राहुल को? क्या कर दिया है उसने?”
“देखिये जो हुआ है अभी आपके सामने आ जायेगा।”
प्रिंसिपल ने कॉलबेल बजायी और जब चपड़ासी आया तो उसे राहुल और उसके टीचर को बुलाने को कहा।
कुछ देर बाद राहुल और उसकी टीचर प्रिंसिपल ऑफिस में दाखिल होते हैं।
“मिस स्वाति, बताइए इन्हें क्या किया आज राहुल ने।”
प्रिंसिपल ने अरमान की टीचर को कहा। तब अरमान की टीचर ने कहा,
“आज हम क्लास में पढ़ा रहे थे कि हमें अपने बड़ों की इज्ज़त करनी चाहिए और अपने माता-पिता का हर कहना मानना चाहिए। हमें उनकी सेवा करनी चाहिए। और तभी…..”
“क्या? क्या हुआ फिर?”
टीचर के एकदम चुप होने के बाद प्रिया ने चिंताम्यी भाव में पूछा।
“ये कहने लगा कि ऐसा नहीं है। हमें माता-पिता की सेवा नहीं करनी चाहिए।”
इतना सुनते ही राहुल और प्रिया एक-दूसरे की और देखने लगे और उसके बाद अरमान की तरफ।
“बेटा ऐसा क्यों कहा तुमने? किसने सिखाया तुम्हें ऐसा बोलना?”
राहुल प्यार से पूछने लगा। अरमान एक सच्चे बच्चे की तरह अपनी सफाई देने लगा।
“मैंने क्या गलत कहा पापा? आपने भी तो दादा-दादी को वृद्धाश्रम भेज दिया। अगर अपने माता-पिता की सेवा करना ही हमारा फर्ज है। तो आपने उन्हें अपने से दूर क्यों भेजा?”
इतना सुन कर राहुल के पैरों तले की जमीन खिसक गयी। उसे लगने लगा जैसे उसके गाल पर किसी ने बहुत जोर से तमाचा मारा हो। प्रिया से ये सब सहा न गया और वह उठ कर अरमान को थप्पड़ मारने ही वाली थी कि राहुल ने उसका हाथ पकड़ लिया। यह देख अरमान बेचारा डर के मारे सहम गया।
“मिस्टर राहुल शायद वक़्त आ गया है कि आप अपने बच्चे को जो पढ़ाना चाहते हैं उसे अपनी जिंदगी में कर के भी दिखाइए। आशा करता हूँ कि आप इस बात पर अम्ल करेंगे।”
इस घटना के बाद राहुल सीधा वृद्धाश्रम पहुंचा और अपने माता-पिता, जिन्हें वह कुछ महीने पहले वृद्धाश्रम सिर्फ इसलिए छोड़ आया था कि उनकी जिम्मेवारियां उसे बोझ लगने लगी थीं। पढ़ाया तो उसे भी बचपन में यही गया था। धर्म का ज्ञान भी उसे यही सिखाता था। परन्तु इस बदलते हुए युग में शायद इन्सान ज्ञान की बातें सुनना और पढ़ना ही जनता है। उन्हें अपनी जिंदगी में अपनाना नहीं। फिर भी वह अपने आप को समझदार मानने लगा है।
कितने ही लोग सत्संग जाते हैं। बड़े-बड़े साधुओं से प्रवचन सुनते हैं। अंत में होता क्या है? वो समझते हैं कि उन्होंने ने धार्मिक और ज्ञान की बातें सुन ली तो बस हो गया उद्धार। भला दूर पड़े पानी से भरे हुए गिलास को देख कर भी किसी की प्यास बुझी है आज तक? आज हमें जरूरत है तो खुद को मिले हुए ज्ञान अपनी जिंदगी में शामिल करने की। नहीं तो जिस मार्ग पर हम चल रहे हैं। हमारी आने वाली पीढ़ी भी हमारा ही अनुसरण करेगी।
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माता-पिता हमारे लिए बोझ नहीं बल्कि उस वृक्ष के सामान हैं जिसके नीचे हम अपनी जिंदगी की भागदौड़ से कुछ पल निकल कर अपने मन को शांति व आराम दे सकते हैं। जिंदगी के इस सफ़र में माता-पिता ही हैं जिन्होंने जो भी रास्ते तय किये सिर्फ हमारे लिए किये। इसलिए आज हमारा भी फर्ज बनता है कि अपने जन्मदाताओं को अपने घर ही नहीं अपने दिलों में भी जगह दें।
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धन्यवाद।
1 comment
बहुत ही बेहतरीन लेख ….. सादर धन्यवाद व आभार। :) :)