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घनाक्षरी छंद कविता “विडंबना”, जो कर रही है समाज की हकीकत को बयान। समाज में होने वाले भेदभाव, नेताओं के झूठ और भ्रष्टाचार के बारे में एक सुन्दर कविता के रूप में प्रस्तुत करते 2 छंद :-
घनाक्षरी छंद कविता
छंद -१
जात धर्म भेद भाव, नित्य दे रहे है घाव।
इनका बूरा प्रभाव, आप जान जाइये।।
राजनेता देता घाव, नित्य चले नया दाव।
इनके कुप्रभाव से , राष्ट्र को बचाइये।।
साम दाम दण्ड भेद, मन में रहें न खेद।
राष्ट्र को बचाना है तो, कारवां बनाइये।।
रहे नहीं भेद – भाव, मन में न कोई दाव।
सफर भाईचारे का, आप अपनाइये।।
छंद – २
धर्म पे न हो बवाल, खुद से करें सवाल।
देश तोड़ने की बात, मन में न लाइये।।
सफर सदभाव का, विचार न दुराव का।
सबमें लगाव रहे, राह तो बनाइये।।
भ्रष्टाचारियों से लड़, इनके न पाव पड़।
किस्से सारे इनके जो, राष्ट्र को सुनाइये।।
व्यभिचार घूसखोरी, राष्ट्रद्रोह करचोरी।
इनके करतूत जो, सब को दिखाइये।।
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यह कविता हमें भेजी है पं. संजीव शुक्ल “सचिन” जी ने। आपका जन्म गांधीजी के प्रथम आंदोलन की भूमि बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के मुसहरवा(मंशानगर ग्राम) में 07 जनवरी 1976 को हुआ था | आपके पिता आदरणीय विनोद शुक्ला जी हैं और माता आदरणीया कुसुमलता देवी जी हैं जिन्होंने स्वत: आपको प्रारंभिक शिक्षा प्रदान किए| आपने अपनी शिक्षा एम.ए.(संस्कृत) तक ग्रहण किया है | आप वर्तमान में अपनी जीविकोपार्जन के लिए दिल्ली में एक प्राईवेट लिमिटेड कंपनी में प्रोडक्शन सुपरवाईजर के पद पर कार्यरत हैं| आप पिछले छ: वर्षों से साहित्य सेवा में तल्लीन हैं और अब तक विभिन्न छंदों के साथ-साथ गीत,ग़ज़ल,मुक्तक,घनाक्षरी जैसी कई विधाओं में अपनी भावनाओं को रचनाओं के रूप में उकेर चुके हैं | अब तक आपकी कई रचनाएं भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने के साथ-साथ आपकी “कुसुमलता साहित्य संग्रह” नामक पुस्तक छप चुकी है |
आप हमेशा से ही समाज की कुरूतियों,बुराईयों,भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर कलम चलाते रहे हैं|
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धन्यवाद।
1 comment
भारतीय समाज पर बहुत ही खूबसूरत छन्द हैं ।