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एकाग्रता की शक्ति – किसी भी कार्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है, कि वो कार्य कितनी कुशलता से किया गया है। कुशलता से हम कोई कार्य तभी कर सकते हैं, जब हमारी एकाग्रता हमारे साथ हो। बिना एकाग्रता की शक्ति के हमारा मन इधर-उधर भटकता रहता है। और हम किसी भी कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाते। इस बात को साबित किया महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकट रमन ने, जब उन्होंने जाना एकाग्रता के रहस्य को। एक छोटी सी घटना ने उनको ऐसा बदला कि उन्होंने अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा दिया।
एकाग्रता की शक्ति
बचपन में चन्द्रशेखर वेंकटरमन हर काम बड़े जोश और उत्साह से करते थे। वो काम शुरू तो कर लेते लेकिन बहुत जल्दी ही उनका मन भटकने लगता और उस काम में उनका मन न लगता। काम चाहे कोई भी हो। अगर किताब भी पढ़ते तो आधी-अधूरी पढ़ कर छोड़ देते। इसी कारण उन्हें कुछ याद भी न रहता। चाहे वो चीज उन्होंने कई बार पढ़ी हो। उनकी इस आदत से उनके पिताजी बहुत परेशान थे। वे किसी तरह चन्द्रशेखर वेंकटरमन को सुधारना चाहते थे। अगर समय रहते ऐसा न किया जाता तो ना जाने वो किस रास्ते पर चल पड़ते और न जाने किस मंजील पर पहुँचते।
उनके पिता ने उन्हें सुधारने कि एक तरकीब सोची। एक बार जब वो अख़बार पढ़ रहे थे। तब उनके पिता जी ने उनको आवाज लगायी,
“रमन बेटा, यहाँ आओ मैं तुम्हें एक ऐसा जादू दिखता हूँ जो तुमने आज तक नहीं देखा होगा।”
रमन इतना सुनते ही दौड़े-दौड़े अपने पिता के पास गए। उन्होंने देखा की उनके पिता के हाथ में एक आतिशी शीशा ( Magnifier Glass ) है। उनके पिता ने अख़बार मेज पर रख कर उस आतिशी शीशे को उसके ऊपर घुमाया और रमन से बोले,
“ये देखो क्या हो रहा है?”
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रमन अपने पिता के पास खड़ा कुछ देर ये सब देखता रहा फिर बोला,
“पिता जी मुझे तो इसमें कुछ ख़ास दिख नहीं रहा। आप मेरा समय व्यर्थ कर रहे हैं।”
“अच्छा! अब देखना जादू। जो तुमने कभी नहीं देखा होगा।”
रमन उत्सुकतावश देखने लगा। रमन के पिता जी ने उस आतिशी शीशे को अख़बार पर एक जगह टिकाया और सूरज से आने वाली बिखरी हुयी किरणें इकट्ठी होकर एक बिंदु के रूप में दिखने लगी। धीरे-धीरे व जगह जहाँ वो बिंदु दिख रहा था, भूरी होने लग गयी। अचानक उसमे बदबू आने लगी और वो जगह जलने लगी। वहा से हल्का-हल्का धुआं भी निकलने लगा। अंततः अख़बार में एक छेद हो गया।
रमन ये सब बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसके पिताजी ने अख़बार से वो आतिशी शीशा हटाया और रमन से बोले,
“देखा तुमने कैसे इसने अपनी एकाग्रता की शक्ति से एक अख़बार को जला कर अपनी ताकत दिखा दी। लेकिन जब मैं तुम्हारे सामने इसे इधर-उधर घुमा रहा था। तब इसने कोई असर नहीं दिखाया या यूँ कहो कि ये अपनी ताकत दखाने में असमर्थ था। जैसे ही इसने एकाग्रता बनायीं और सूरज की किरणों को इकठ्ठा कर उसकी शक्ति को बढाया, और एक जगह पर पहुंचाया। इसके कारण इस अख़बार में छेद हो पाया।
इसी तरह हम भी अपने जीवन में सफलता तभी प्राप्त कर सकते हैं, जब हम अपनी एकग्रता को बढ़ा पाएँगे। जब हम अपना ध्यान अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित करेंगे। तभी हम उसे प्राप्त कर सकते हैं। यदि हमारा मन इधर-उधर भटकता रहेगा तो हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। “
रमन को एकग्रता की शक्ति के बारे में समझने में देर न लगी। उस दिन के बाद उनके जीवन में ऐसा बदलाव आया, कि अपनी जिंदगी की महत्वता समझते हुए वे एक के बाद एक सफलता हासिल करते चले गए। आगे चल कर उन्होंने संसार को प्रकाश के बिखरने के कारण की खोज को “रमन प्रभाव” नाम के रूप में दिया। जो कि उनके नाम को संबोधित करता है।
मित्रों इसी तरह हम भी अपनी एकाग्रता की शक्ति को बढ़ा कर हर चीज प्राप्त कर सकते हैं। हम कोई भी लक्ष्य निश्चित कर लें, जब तक हम एकाग्रचित्त होकर उसे लक्ष्य कि प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं करेंगे तब तक हमे सफलता प्राप्त नहीं होगी। तो सबसे पहले अपनी एकाग्रता बढ़ाएं।
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धन्यवाद।
7 comments
Nice
Thanks Deepak G
Supar hit story
Thanks shakib ji….
Thanks shakib ji…
gud
Thanks dear…….