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माँ भगवान् का दूसरा रूप है। वो चाहे पास रहे या दूर उसकी दुआएं सदा हमारे साथ रहती हैं। माँ का स्थान इस संसार में कोई दूसरा नहीं ले सकता। माँ के जाने के बाद माँ को भगवान् का रूप मानते हुए रचनाकार जब माँ की भी मूर्ति बनाने का प्रयास करता है तो उसके मन में क्या भाव आते हैं? आइये पढ़ते हैं दिवंगत माँ पर कविता में :-
दिवंगत माँ पर कविता
इक तेरे रूप के ख़ातिर माँ
कितने संगमरमर रोये है,
मैं तो फिर भी इंसा हुँ
कितने अरमान पिरोये है।
औजारों की क्या बात कहुँ
निज हाथ कांपने लगते है,
रूप ना दे पाया मैं तुझसा
पत्थर भी हांफने लगते है,
कैसे रूप संवारू तेरा
जज़्बात भी मेरे सोये है,
इक तेरे रूप के ख़ातिर माँ
कितने संगमरमर रोये है।
पंच तत्व व सप्त रंग में
तूने रंग के दिखाया है,
रह गया उलझ के एक रंग में
मन मेरा भरमाया है,
कहाँ से लाऊं वो शिल्प माँ
जो कुक्षि में तेरे समाये है।
इक तेरे रूप के ख़ातिर माँ
कितने संगमरमर रोये है।
हर सांस मेरी न्यौछावर तुझपे,
चौखट तक दुआएं आयेगी,
पुजूं इसी रूप में तुझको
जन्म-जन्म मन भायेगी,
जन्नत का पथ दिखाला देना
चरणों में शीश झुकाये है।
इक तेरे रूप के ख़ातिर माँ
कितने संगमरमर रोये है।
पढ़िए :- माँ की याद में कविता “तू लौट आ माँ”
मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।
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