Home » हिंदी कविता संग्रह » भारतीय समाज पर कविता – मत बांटो इन्सान को | आज का सच बताती कविता

भारतीय समाज पर कविता – मत बांटो इन्सान को | आज का सच बताती कविता

by Sandeep Kumar Singh
2 minutes read

भारतीय समाज पर कविता :- आज के दौर में समाज में जो घट रहा है उस से कोई भी अनजान नहीं है। जिसे देख ओ अपने फायदे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। और इन में सबसे आगे हैं राजनीतिज्ञ और वो लोग जो धर्म के नाम पर लोगों को भड़काते हैं।

इन्हीं कारणों से समाज में अराजकता और अशांति फैली हुयी है। इंसानों को बाँट दिया गया है कभी जाती के आधार पर, कभी धर्म के आधार पर, कभी सरहद की लकीरों से और कभी किसी और ढंग से। ऐसी ही परिस्थिति को बयान करती ये कविता आप के सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ भारतीय समाज पर कविता – मत बांटों इन्सान को ।

भारतीय समाज पर कविता

भारतीय समाज पर कविता

मानो राम रहमान को, मानो आरती और अजान को
मानो गीता और कुरान को पर मत बांटो इन्सान को।

ये धरती है सबकी एक सी, अम्बर भी है एक सा
है सूरत सबकी एक सी और लहू का रंग भी एक सा
फिर क्यों बांटे हैं मुल्क सभी? क्यों सरहद की लकीरें खींची हैं?
क्यों द्वेष, अहिंसा और नफरत से, ये प्यार की गलियाँ सींची हैं?
क्यों बाँट दिए हैं धर्म सभी? क्यों जात-पात का खेल रचा?
इसी के अंतर्गत ही अब, इन्सान में न ईमान बचा।

सरकारें वोटों की खातिर, शैतान का रूप हैं धार चुकी,
बची खुची जमीर जो थी अब उसको भी है मार चुकी,
वोटबैंक की राजनीति में, धर्म को सीढ़ी बनाते हैं,
पहले तो छिपते फिरते हैं फिर अपने रंग दिखाते हैं,
छोड़ के हाई सोसाइटी को दलित के यहाँ ये खाते हैं,
समाचार वाले भी उसको दलित बताकर खबर बनाते हैं,
अगर बराबर समझे तो क्यों घर न उनको बुलाते हैं,
बाद में मिलने वालों को भी मार के फिर यर भगाते हैं।

हरिजन, दलित, अनुसूची, पिछड़ी जाति शब्दों का क्यों प्रयोग करें?
क्यों न ये सरकारें इनको इंसानों के योग्य करें,
धर्म के नाम पे देखो कुछ तो बिन मतलब ही घमासान करें,
इंसानियत ही मकसद है सबका इस बात से फिर अनजान करें,
बांटनी है तो खुशियाँ बांटो, गरीबों में बांटों मुस्कानों को,
मानो एक इन्सान को पर अब तुम मत बांटो भगवान् को
मानो राम रहमान को, मानो आरती और अजान को
मानो गीता और कुरान को पर मत बांटो इन्सान को।

आपको यह भारतीय समाज पर कविता कैसी लगी? अपने विचार हम तक जरूर पहुंचाएं।

पढ़िए हमारे समाज से जुड़ी और भी रचनाएं :-

 

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

7 comments

Avatar
Mahi फ़रवरी 13, 2022 - 10:41 अपराह्न

Me bhi kavita likhna pasand karti hu samajik sudhar ke liye meri age 15 hai kya aap meri help karenge

Reply
Avatar
Rohini Rangarh अप्रैल 3, 2020 - 11:49 पूर्वाह्न

बेहतरीन ????

Reply
Avatar
ratan जून 11, 2019 - 7:45 अपराह्न

HAME APKI SABHI KAVITA SAYRI BAHUT PARSAND THANKS

Reply
Avatar
Piyush Somani जनवरी 20, 2019 - 7:51 अपराह्न

Bhaiisaab आपकी लेखनी बहुत ही सुंदर है। उम्मीद है कि आप भविष्य में भी ऐसी ही कविताएं लिखे और अपना नाम रोशन करे।

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जनवरी 21, 2019 - 8:00 अपराह्न

धन्यवाद पियूष जी….

Reply
Avatar
chandrashekhr अप्रैल 5, 2018 - 6:35 अपराह्न

I appreciate those who has written this poem on humanity. Thank you. I hope you will write such type poems for changing India.
thanks…

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 11, 2018 - 9:36 अपराह्न

Thanks chandrashekhr ji for appreciating our work…

Reply

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.