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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता :- आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह पर कविता

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को -6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। उनका जन्म 9 सितंबर 1850 में वाराणसी में हुआ था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य में बहुत योगदान दिया है। इनका मूल नाम ‘हरिश्चन्द्र’ था, ‘भारतेन्दु’ उनकी उपाधि थी। भारतीय साहित्य के उसी ( Bhartendu Harishchandra Par Kavita ) वीर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता :-

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता

दीप निराशा – निशा काल के
काव्य गगन के निर्मल इन्दु,
निज भाषा के दीर्घ पथों के
रहे तुम्हीं प्रारम्भिक बिन्दु।

देख दुर्दशा भारतजन की
उठा हृदय में गहन विषाद,
किया संग वाणी आराधन
राष्ट्र जागरण का भी नाद।

हिन्दी के हित सहन किए थे
भारतेन्दु तुमने बहु कष्ट,
चाह रही बस यह जीवन में
शूल विदेशी का हो नष्ट।

काल आधुनिक जो हिन्दी का
तुम उसके पहले सोपान,
विविध विधाओं में सर्जन का
रहा बहुत अनुपम अवदान।

नव प्राचीन समन्वय करके
रचा नया भाषा इतिहास,
खड़ा रूप बोली का अपना
जन मानस हित किया विकास।

जीवन कुल चौंतीस वर्ष का
लेकिन कृतियों का अम्बार,
दृग होते विस्मय – विस्फारित
भारतेन्दु का कर्म निहार।

प्राणों में जिनके बसते थे
हर क्षण हिन्दी हिन्दुस्तान,
करते रहे सजग जन जन को
पाने को खोया सम्मान।

किया समर्पित जीवन जिसने
करने हिन्दी का उत्थान,
यशगाथा उस भारतेन्दु की
गाता सारा हिन्दुस्तान।

पढ़िए :- हिंदी भाषा को समर्पित छोटी कविताएँ


‘ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता ‘ के बारे में अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

धन्यवाद।

Image Source : सत्याग्रह

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