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दीपावली, जिसके प्रति सभी लोगों के मन में एक अलग ही उत्साह रहता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जब राम अयोध्या में आये होंगे। उस वक़्त उनके मन में पुरानी यादें भी आई होंगी। ठीक उसी समय उन्हें अपने पिता की भी याद आई होगी। उस समय को इस ‘ श्री राम की स्थिति पर कविता ‘ में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। आइये पढ़ते हैं कविता :-
श्री राम की स्थिति पर कविता
अवध लौट दशरथ सुत
जब न पिता को पाते हैं
राजीवलोचन के नयनों से
अश्रु बहते जाते हैं।
जगमग-जगमग दीप हैं जलते
दूर अमावस का अन्धकार हुआ
जब याद पिता की आई तो
फिर सब कुछ ही बेकार हुआ,
चौदह वर्ष पूर्व के दृश्य
जैसे ही सामने आते हैं
राजीवलोचन के नयनों से
अश्रु बहते जाते हैं।
बालपन जहाँ निकला था
खेल पिता की गोद में
साथ उन्हीं का होता था
जीवन के हर आमोद में,
उसी स्थान पर बैठ प्रभु
अपना समय बिताते हैं
राजीवलोचन के नयनों से
अश्रु बहते जाते हैं।
जिसके लेख में जो है लिखा
कोई उससे बच नहीं पाता है
काल न छोड़े कभी किसी को
चाहे इंसा चाहे विधाता है,
कैसे त्यागे थे प्राण पिता ने
प्रभु राम को सभी सुनाते हैं
राजीवलोचन के नयनों से
अश्रु बहते जाते हैं।
उनकी कमी यूँ पीड़ा देती
होता कष्ट अपार है
आज अनाथ पाते हैं स्वयं को
जो हैं जग के पालनहार,
बैठ एकांत में आज वो
हृदय का शूल मिटाते हैं
राजीवलोचन के नयनों से
अश्रु बहते जाते हैं।
आशा करते हैं कि जो भावनायें हमने इस ‘ श्री राम की स्थिति पर कविता ‘ में व्यक्त करने का प्रयास किया है उसमें हम सफल हुए होंगे। यदि आपको यह कविता पसंद आई तो इस कविता के बारे में अपने अनमोल विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
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धन्यवाद।