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भगत सिंह, एक ऐसा देश भक्त जिसने अपने देश की आजादी के लिए अपना परिवार, अपना घर और अपना तक त्याग दिया। फिर भी कभी भी वह अंग्रेजों के सामने झुका नहीं। फांसी पर चढ़ते समय भी उन्होंने ने अंग्रेजों को खुद को हाथ नहीं लगाने दिया और फांसी का फंदा बिना किसी डर के अपने गले से लगाया। ये कविता 28 सितंबर 1907 को जन्मे भारत के सच्चे शहीद देशभक्त भगत सिंह को समर्पित है। आइये पढ़ते हैं भगत सिंह पर कविता :-
भगत सिंह पर कविता
फांसी पर हंस कर झूला वो
मस्तानों का टोला,
मुंह पर बस यह बोल थे
मेरा रंग दे बसंती चोला।
बचपन से दिल में पलती रही थीं
देशभक्ति की बातें
देश के नाम ही दिन थे उसके
देश के नाम ही रातें,
रगों में लहू न बहता था
बहता था, देशभक्ति का शोला
मुंह पर बस यह बोल थे
मेरा रंग दे बसंती चोला।
देश की आज़ादी की खातिर
जद्दो-जहद थी जारी
अंग्रेजों ने कर दी थी
सन 1919 में गद्दारी,
जलियांवाला बाग़ देखकर
था खून फिर उनका खौला
मुंह पर बस यह बोल थे
मेरा रंग दे बसंती चोला।
सरेआम ही अंग्रेजों को
उसने फिर ललकारा था
अंग्रेजी अफसर सांडर्स को
बीच सड़क पर मारा था,
इंकलाब का नारा तब
सरे हिंदुस्तान ने बोला
मुंह पर बस यह बोल थे
मेरा रंग दे बसंती चोला।
मगर खुले न कान तो
बम असेंबली में फेंका था
भारत माता के पूतों का
जलवा अंग्रेजों ने देखा था,
नारे लगता खड़ा रहा वह
न अपने स्थान से डोला
मुंह पर बस यह बोल थे
मेरा रंग दे बसंती चोला।
आवाज सुनी न फिर भी क्योंकि
वो सर्कार तो बहरी थी
गवाह भी उनके, वकील भी उनके
उनकी ही तो कचहरी थी
फांसी के आदेश ने जन-जन में
क्रांति का रस था घोला
मुंह पर बस यह बोल थे
मेरा रंग दे बसंती चोला।
फांसी पर हंस कर झूला वो
मस्तानों का टोला,
मुंह पर बस यह बोल थे
मेरा रंग दे बसंती चोला।
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धन्यवाद।
3 comments
बहुत बहुत धन्यवाद अमर शहीद लोगो की सोच और कर्म पर ,
सुन्दर कविता देश भक्ति से ओत प्रोत भगत सिंह पर
धन्यवाद रेनू जी…..