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Hindi Poem On Maa Beti – बेटी पर कविता / जीवन में बेटियां तो बेटों का स्थान ले सकती हैं लेकिन बेटे कभी बेटियों का स्थान नहीं ले सकते। एक माँ के दिल में बेटी के लिए ख़ास स्थान होता है। क्योंकि वो सिर्फ माँ नहीं बेटी की सहेली भी होती है। जिससे बेटी अपने दिल की बात कर लेती है। बेटी कितनी भी बड़ी हो जाए लेकिन माँ के लिए बेटी ही रहती है। लेकिन बेटी की ज़िंदगी में एक दिन आता है जब माँ को बेटी बड़ी लगने लगती है। कैसे आइये जानते हैं इस कविता के जरिये :-
बेटी पर कविता
पहन कर मेरी सैंडिल
मेरी बिटिया कहने लगी
माँ देखो मैं बड़ी हो गई,
माँ -माँ -माँ -माँ कहती थी
डगमग -डगमग चलती थी
फिर धप्प से गिर कर
टुकर टुकर मुझे देखती थी,
फिर अपने आप उठ कर
मानों मुझसे कहने लगी
माँ देखो मैं बड़ी हो गई।
स्कूल कब खत्म
कब कॉलेज शुरू
नटखट सी किशोरी
कब तरुणी हुई
शैतानी खत्म,
अब सीरियस हुई
भला बुरा अब समझने लगी
माँ देखो मैं बड़ी हो गई।
बाबुल छोड़ चली पी संग
नाच उठे मन मयूर अंग,
अपने कुल की लाज बचाने
दूसरे कुल की लाज निभाने
बेटी से बहु बनने लगी
माँ देखो मैं बड़ी हो गई।
चूल्हा- चौका सेवा पानी
मधुर मुस्कान आँख में पानी
कहते -कहते आँख चुराना
अपना दर्द हँसी में उड़ाना
दूसरों के लिए खुद को मिटाना,
मुझे दुनिया दारी
समझाने लगी
हाँ – हाँ -हाँ-हाँ मेरी बेटी
अब बड़ी हो गई।
मैं रेणु गाँधी सिखी परिवार से सम्बन्ध करती हूँ छोटी उम्र से लिख रही हूँ मैं एक खिलाड़ी हूँ जुडो-कराटे में मैडल्स भी जीते हैं। कबड्डी में ओलंपिक एसोसिएट चैंपियनशिप और इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप थर्ड प्लेस में जीत चुकी हूँ। फायरिंग एन.सी.सी. में बेस्ट। दिल्ली में रहती हूँ। हँसमुख मिलनसार हूँ।
‘ बेटी पर कविता ‘ ( Hindi Poem On Maa Beti ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
धन्यवाद।
3 comments
you are really awesome, keep doing great
ek no
Adbhut hai ye kavita , sach mein shi karah se buna hai ise