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बेटी घर का मान और एक पिता की राजकुमारी होती है। ऐसा कहा जाता है और ये सच भी है कि बेटी दो घर में उजाला करने वाला चिराग होती है। बेटी ही होती है जो सामाज बनाती है। जो महापुरुषों को जन्म देती है। यदि बेटी न हो तो शायद इस दुनिया का भी कोई अस्तित्व न हो। बेटी का महत्त्व देवी के बराबर है। फिर भी आज कई नादान लोग न जाने किस वहम में जीते हैं और बेटी की कदर नहीं करते। बेटियां आज हर मैदान में बेटों से आगे जा रही हैं। बस उन्हें जरूरत है तो हमारे और आप के हौसले की। इसी विषय को मुख्य रखते हुए रचनाकार ने तैयार किया है 22 सिंतबर को भारत में मनाये जाने वाले बेटी दिवस को समर्पित यह दोहा संग्रह ” बेटी दिवस पर दोहे “
बेटी दिवस पर दोहे
बेटी को अधिकार दो, करो न कन्यादान ।
पराया न घर बाप का, इसको अपना मान ।
रूढ़िवाद को तोड़ के, बात करूँ इस बार ।
जब तुम संकट में पड़ो, खुला बाप का द्वार ।।
सोना उसे भले न दो, दिल में दो फौलाद ।
हर संकट में साथ दो, वह भी तो औलाद ।।
बेटा गर कुल दीप है, बेटी कुल का मान ।।
दोनों एक बराबर हैं, फर्क न कोई जान ।
नौ-कन्या भोजन करा, पूजा करता इंसान ।
फिर कल बेटी का वही, करता है अपमान ।
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रचनाकार का परिचय
यह रचना हमें भेजी है आदरणीय विनय कुमार जी ने जो की अभी रेलवे में कनिष्ठ व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैं।
रचनाएं व अवार्ड : इनकी रचनाएं देश के 50 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। जिस के फलस्वरूप आप कई बार सम्मानित हो चुके हैं। गत वर्ष 2018 का रेलमंत्री राष्ट्रीय अवार्ड भी रेल मंत्री ने दिया था।
लेखन विद्या: गीत, ग़ज़ल, दोहा, कुण्डलिया छन्द, मुक्तक के अलावा गद्य में निबंध, रिपोर्ट, लघुकथा इत्यादि। तकनीकी विषय मे हिंदी में लेखन।
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धन्यवाद।