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‘ बाल कविता – मुस्काते गमले ‘ एक प्रकृतिपरक बालोपयोगी कविता है जिसमें घर के आँगन के कोने में रखे फूलों के गमलों के माध्यम से मानव को हर स्थिति में प्रसन्न रहने की सीख दी गई है।
खिलते फूलों से सजे – धजे फूलों के गमले बगीचे का ही लघु रूप हैं, जो अपने अस्तित्व से घर की शोभा को ही नहीं बढ़ाते हैं, बल्कि अपने सौन्दर्य से मन को भी आनन्द से भर देते हैं। ऋतुएँ आती – जाती रहती हैं, लेकिन ये गमले हरदम खिले हुए फूलों के साथ मुस्कराते हुए प्रतीत होते हैं। हमें भी अपने जीवन को सदैव हँसी – खुशी से बिताने का प्रयास करना चाहिए।
बाल कविता – मुस्काते गमले
सजे हुए नन्हे पौधों से
गमले प्यारे – प्यारे,
इनमें खिले फूल लगते ज्यों
रंग- बिरंगे तारे।
तितली भँवरे आ फूलों पर
रहते हैं मँडराते,
मधुमक्खी भी दिख जाती है
इनपर चक्कर खाते।
इन गमलों के रहने भर से
खुश रहता मन अपना,
लगता खुली आँख से सुन्दर
देख रहे हैं सपना।
हरी पत्तियाँ कोमल – कोमल
कितनी हैं मनभावन,
इन पर बिखरी जल की बूँदें
याद दिलाती सावन।
गमले की गीली मिट्टी से
गंध उठ रही भीनी,
झाँक रही खेतों गाँवों की
इसमें छवियाँ झीनी।
इन गमलों से निखर गया है
घर का सूना आँगन,
दूर कहीं से जैसे चलकर
आया हम तक उपवन।
धूप सुनहरी जब बिखराती
इन गमलों पर सोना,
भर जाता तब उजियारों से
मन का कोना – कोना।
लघु जीवन में खुश रहने का
हमको मंत्र बताते,
बदले मौसम में भी रहते
ये गमले मुस्काते।
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2 comments
बहुत सुंदर
Babut badiya