सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है
जिसने भी प्यार में धोखा खाया हैं उनको पता है की इस दर्द से उबरना कितना मुश्किल होता है। दुनिया में ऐसे-ऐसे भी उदाहरण देखने को मिल जाते है, जब लोग इस दर्द से उबर ही नही पाते और एक संभावनाओ से भरे जीवन को व्यर्थ कर देते है। प्यार में धोखा खाए हुए लोगो को, दिल टूटने के दर्द से उबरने, और एक बार फिर से नए जीवन के लिए शुरुवात करने को प्रेरित करने के लिए ये कविता लिखी गयी है। प्यार के दर्द से भरे उस अतीत का अंतिम संस्कार करके भविष्य में सफलता पाने के लिए एक बार फिर से तैयार होने को प्रेरित करती ये कविता पेश है।
अतीत का अंतिम संस्कार
आरम्भ हुआ उस अतीत का
कहानी बनी थी सुंदर,
था वो इत्तेफाकों का सिलसिला
या दुखों का समंदर।
आई एक ख़ुशी मेरे जीवन में
जिससे था मैंने अब तक मुंह मोड़ा,
लाई थी एक परी उसको
जिसके लिए खुद के उसूलों को मैंने तोड़ा।
उसकी खुमारी ऐसी छाई
मैं उसमें ही बहता गया,
सारी दुनिया को भूल के मैं
उसके रंग में रंगता गया।
हर एक पल लगता था
जैसे खुशियों का समंदर,
बस वो ही बसी थी मेरे
रोम-रोम के अन्दर।
ना थी किसी और की चाह
ना लक्ष्यों की परवाह,
बनाने में लगा था मैं
उसकी ही खुशियों की राह।
मैंने लोगो को छोड़ा
जिसके लिए मन में सपने,
किसी जनम में दूर ना जाने
की खाई थी उसने कसमें।
रास्ते की सारी रूकावटों में
मैंने उसका हाथ था थामा,
जीवन में उसे खुशियाँ देना ही
मैंने अपना धरम था माना।
विश्वास के पट्टी से अँधा मैं
देख न सका उसकी हांथो में खंजर,
शायद अब देने वाला था,
ईश्वर मुझे संघर्षो का मंजर।
आरम्भ हुआ उस अतीत का
कहानी बनी थी सुंदर,
था वो इत्तेफाकों का सिलसिला
या दुखों का समंदर।
बदलने लगा था अब इमान उसका
मुझे छोड़ रही थी किसी पराये के लिए,
धीरे धीरे भूलने लगी थी वो
जो वादे थे उसने मुझसे किये।
देखी न गयी मुझसे
यूँ बेरुखी उसकी,
तड़पता रहा प्यार को मैं
मुझे थी आदत जिसकी।
याद दिलाने को उसके वादे उसे
मैं उसकी तरफ था दौड़ा,
बिन पानी मछली की तरह
अब उसने मुझे था छोड़ा।
फिर दौर चला लंबा एक
आरोपों और प्रत्यारोपों का,
ख़तम हुआ प्यार उसका
जैसे मारा हो दिल के रोगों का।
प्यार के इस खेल ने
दिया न मुझको जीने,
कर के बेवफाई उसने
मारा है खंजर मेरे सीने।
उजड़ गये अब ख्वाब मेरे
और टूटा खुशियों का आधार,
आया तूफान वो बनकर ऐसा
दिखा गया दुनिया का संस्कार।
क्यों करते हैं लोग ऐसा?
क्यों देते है धोखा अपनों को?
क्यों बेंच देते है ईमान अपना?
क्यों रौंद देते है किसी के सपनों को?
क्यों दिलों में लोगों के ईमान नहीं?
क्यों बेईमानी है दुनिया में छाई?
जब कर न सकती वो वादे पूरे
तो क्यों मेरी जिंदगी में आई?
आरम्भ हुआ उस अतीत का
कहानी बनी थी सुंदर,
था वो इत्तेफाकों का सिलसिला
या दुखों का समंदर।
टूटा दिल, हुआ बेजान शरीर
पल-पल ऐसे मरा था मैं,
दुखों से भरी जिंदगी लगती
प्यार में गिरा था मैं।
ना कोई आस, ना कोई पास,
हर पल रहता था मैं उदास,
आँखों से बहती अश्कों की धारा
मैं दुनिया से हुआ निराश।
पर कहाँ नियति को मंजूर ये
टूटे दामन फौलादों का,
धोखा भी मिला दुःख भी मिला
अब बनना था चट्टानों का।
खुद को संभाला मैंने
पीछा छुड़ाया आंखों के नीर से,
भरने को ठाने घाव वो मैंने
जो मिले धोखे के तीर से।
यूँ ही नहीं मिला ये जीवन
जो बेईमानों के लिए बर्बाद करें,
देके सहारा बेसहारों को,
हम उनका जीवन आबाद करें।
कर माँ-बाप का ऊँचा नाम हमें
कठिनाइयों से लड़ना है,
रुख हवाओ का मोड़ हमें
हर सपना पूरा करना है।
भूल के सारे दुःख और हार
मैं आज नए जोश से आगे बढ़ता हूँ,
भविष्य का सपना लिए आज मैं
उस अतीत का अंतिम संस्कार करता हूँ….।
पढ़िए: कर्म करने की प्रेरणा देती कविता
सम्बंधित कवितायें और शायरियां :-
3 comments
गज़ब की शायरी है। बहूत खूब
चन्दन जी बहुत ही अच्छी कविता लिखी हैं.
धन्यवाद शशांक शर्मा जी,