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भैंस के मरने का दु:ख – अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ एक घटना


अटल बिहारी वाजपेयी जीभैंस के मरने का दु:ख - अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ एक घटना

अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म ग्वालियर, म0प्र0 में 25 दिसम्बर, 1924 को हुआ था। वे उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली से सांसद चुने गये। इसके साथ ही वे तीन बार  एवं भारत के प्रधानमंत्री भी बने और 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के रूप में भी सम्मानित किये गये। पहली बार वे 15 दिन (16-31 मई, 1996) के लिए प्रधानमंत्री बने।  उसके बाद लगातार दो बार (19 मार्च 1998 से 13 मई 2004 तक) उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री का पद संभाला।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने दिनांक 27 मार्च  2015 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, राजनीतिज्ञ और कवि अटल बिहारी वाजपेयी को उनके आवास पर जाकर ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। वे यह सम्मान पाने वाले छठे प्रधानमंत्री हैं।

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उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत सन 1942 में भारत छोडो आंदोलन से की थी। वे एक नेक दिल, कुशल प्रशासक और बेहतरीन कवि के रूप में जाने जाते हैं। बढती उम्र के कारण उन्हें स्वास्थय सम्बन्धी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है इअलिये वे राजनैतिक जीवन से दूर रहते हुए एक सदा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

उनके जीवन के बारे में किसी को भी सरलता से जानकारी मिल सकती है। वे अक्सर अपने साथ घटी घटनाओं को दूसरों से बांटा करते थे। उनके साथ घटी एक घटना को हम आपके साथ बाँटने जा रहे है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

भैंस के मरने का दु:ख

सन 1980-81 की घटना है। अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने निजी सहायक शिव कुमार के साथ कार से आगरा जा रहे थे। रास्ते में फरा गांव के पास अचानक एक भैंसों का झुंड आ गया, जिससे कार की भैंसो से टक्कर हो गयी। इस टक्कर के कारण वाजपेयी जी की कार पलट गयी। हालांकि कार में सवार किसी भी व्यक्ति को चोट तो नहीं लगी, किन्तु जिस भैंस से कार की टक्कर हुई थी, वह मर गयी। यह देखकर कार को गांव वालों ने घेर लिया और शोर शराबा करने लगे।

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भीड़ किसी तरह से कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। वह बेहद आक्रामक हो उठी। मजबूरन उनके निजी सहायक शिव कुमार को अपनी रिलाल्वर निकाल कर हवाई फायर करना पड़ा। तक जाकर किसी तरह से स्थिति संभली। उसके बाद वे पास में ही स्थित सिकंदरा थाने पर पहुंचे और सारी बात बताई। साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भैंस के मालिक को बुलाकर उसे हर्जाना देने का भी आग्रह किया।

किन्तु थानेदार ने उसे अपने स्तर से निपटा लेने की बात कहकर उन्हें जाने का आग्रह किया। पहले तोअटल बिहारी वाजपेयी जी उसकी बात से नहीं माने, पर जब थानेदार ने उन्हें बार-बार विश्वास दिलाया कि किसान को मुआवजा दिला दिया जाएगा, तो वे आश्वस्त हो गये और आगरा चले गये। उसके बाद काफी दिनों तक वह बात उन्हें सालती रही। लेकिन धीरे-धीरे वक्त आगे बढ़ता रहा और वह बात आई-गई हो गयी।

लगभग दो साल के बाद एक दिन अटल जी के पास एक नेत्रहीन कवि आया और उसने गणतंत्र दिवस पर लालकिले में होने वाले कवि सम्मेलन में कविता पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। जब उससे पूछा गया कि आप कहां से आए हो, तो वे झट से बोल उठा- मैं उसी गांव से हूं, जहां आपकी कार से भैंस मर गयी थी।

यह सुनकर अटल बिहारी वाजपेयी जी के मन में दबा पड़ा पाप-बोध जाग उठा। वे बोले- मैं एक शर्त पर तुम्हारी सिफारिश करूंगा। पहले तुम्हें उस भैंस के मालिक को मेरे सामने लेकर आना होगा। उसकी भैंस के मरने का दु:ख मुझे आज तक साल रहा है। मैं उसका हर्जाना देकर अपना पाप-बोध मिटाना चाहता हूं। यह सुनकर वह कवि गदगद हो उठा। उसने भैंस के मालिक को लाकर अटल जी के सामने हाजिर कर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भैंस के मालिक से क्षमा मांगते हुए उसे 10 हजार रूपये हर्जाना दिए। (घटना हिंदुस्तान से साभार)

इस तरह हम देख सकते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी जी बहुत ही नेक दिल और सच्चे इन्सान थे। वो उन चुनिन्दा राजनेताओं में से एक हैं जिनके दमन किसी भी इलज़ाम से दागदार नहीं हुए हैं। अपने नाम कि तरह उन्होंने अपने चरित्र को भी अटल रखा और लोगों को सादगी से महान जीवन जीवन जीने के लिए प्रेरित भी किया।

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